क्या है वक्फ संशोधन बिल? क्यों मचा है घमासान! सरकार की रणनीति से लेकर प्रावधान तक डालें नजर

नई दिल्ली। जबरदस्त हंगामे के बीच आज बुधवार 2 अप्रैल को वक्फ संशोधन बिल लोकसभा में पेश हो गया है। इस दौरान केन्द्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त समिति ने वक्फ संशोधन बिल पर सबसे विस्तृत चर्चा की है। इससे पहले इतनी लंबी चर्चा कभी नहीं हुई। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि वक्फ क्या है और इसपर इतना घमासान क्यों मचा हुआ है। बता दें कि वक्फ धार्मिक, धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए चल या अचल संपत्ति का स्थायी दान है। वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन वक्फ अधिनियम, 1995 द्वारा शासित होता है, और इसकी देखरेख राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद द्वारा की जाती है। देश में 37.39 लाख एकड़ क्षेत्र में फैली 8.72 लाख पंजीकृत वक्फ संपत्तियां हैं। हालांकि सिर्फ 1,088 संपत्तियों ने वक्फ दस्तावेज पंजीकृत किए हैं और 9279 अन्य के पास स्वामित्व अधिकार बताने वाले दस्तावेज हैं।
क्या है सरकार की योजना?
केंद्र सरकार ने अब वक्फ डॉक्यूमेंट्स को अनिवार्य कर दिया है और संपत्ति के सभी विवरणों को छह महीने के भीतर ही एक पोर्टल पर अपलोड करना भी जरूरी बना दिया है। कानून के मुताबिक कलेक्टर के पद से ऊपर के अधिकारी द्वारा जांच भी किए जाने का प्रावधान है। जांच इस चीज की होगी कि वक्फ संपत्ति सरकारी है या नहीं। इस जांच का उद्देश्य अनावश्यक मुकदमेबाजी से बचना है। इस बदलाव के बाद अब ट्रिब्यूनल के फैसले अंतिम नहीं रह जाएंगे यानी कि 90 दिनों के अंदर हाईकोर्ट में अपील दायर करने का प्रावधान है और जिला कलेक्टरों द्वारा पंजीकरण आवेदनों की वास्तविकता की पुष्टि की जाएगी। केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में कम से कम दो महिलाओं को भी रखना होगा। राज्य और केंद्र शासित प्रदेश वक्फ बोर्ड में बोहरा और अघाखानी समुदाय के एक-एक व्यक्ति को भी जगह देनी होगी। अहम ये है कि अब पिछड़े वर्गों से संबंधित मुस्लिम भी बोर्ड का हिस्सा बनेंगे और उसमें दो गैर.मुस्लिम सदस्यों को भी जगह देनी होगी।
वक्फ बिल पर सियासी घमासान
वक्फ बिल को लेकर सियासी घमासान छिड़ा हुआ है। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि नया कानून मुस्लिमों के खिलाफ है। कई विपक्षी शासित राज्यों ने बिल के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए हैं, जबकि संसद में विपक्षी दल इसके खिलाफ एकजुट हैं। एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता तो यहां तक कह रहे हैं कि अगर जनता दल (यूनाइटेड), तेलुगु देशम पार्टी, चिराग पासवान और जयंत चौधरी जैसे एनडीए के सहयोगी इसका समर्थन करते हैं, तो मुसलमान उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे। इन सब बातों ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है क्या नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के पैमाने पर ही इसके विरोध की भी योजना बनाई जा रही है? संयुक्त संसदीय समिति ने करीब छह महीने बाद विपक्षी दलों की असहमति के बीच 300 पन्नों सहित 944 पन्नों की रिपोर्ट पेश की है। वक्फ संशोधन विधेयक यकीनन भाजपा के नए कार्यकाल में अब तक का सबसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील कानून है।