आवाज खुलासाः शिक्षा विभाग की चहेती शिक्षिका का षड्यंत्रकारी गुनाह! ट्रांसफर रुकवाने को बनवाया फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट

हल्द्वानी। हल्द्वानी जीजीआईसी की एक शिक्षिका जिस पर गंभीर आरोपों के चलते शिक्षा विभाग ने विभागीय स्तर पर कई जांचे करवाईं, जिसमें दोषी पाते हुए शिक्षिका का ट्रांसफर हल्द्वानी से बागेश्वर कर दिया गया, लेकिन शिक्षिका ने शिक्षा विभाग के आदेश का पालन करने की जगह ट्रांसफर रुकवाने के लिए फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाया और हाईकोर्ट पहुंच गई।
मामले के अनुसार जीजीआईसी हल्द्वानी की शिक्षिका वंदना चौधरी पर कर्मचारी सेवा नियमावली की धज्जिया उड़ाने, कॉलेज का माहौल खराब करने, सीनियर अधिकारियों पर झूठा आरोप लगाने, बैक डेट में जाकर एटटेनडेन्स रजिस्टर में साइन करने और सोशल मीडिया में विभाग की छवि को ख़राब करने का दोषी पाए जाने पर निदेशालय ने वन्दना चौधरी का ट्रांसफर बागेश्वर के जीजीआईसी दोफाड़ में कर दिया। जिसके बाद वंदना चौधरी ने फर्जी विकलांगता सर्टिफिकेट बनवाकर ट्रांसफर रुकवाने के लिए हाईकोर्ट में आवेदन किया और अपने खिलाफ चल रही कार्यवाही के खिलाफ शिक्षा महानिदेशक से भी गुहार लगाई।
बता दें कि 6 सितंबर को वंदना चौधरी को रिलीव किया गया था और ठीक एक दिन बाद 7 सितंबर की तारीख का 42 प्रतिशत विकलांगता मेडिकल सर्टिफिकेट वंदना चौधरी जिला अस्पताल के सरकारी डॉक्टर से बनवा लाई, जो कि आरटीआई के जवाब में फर्जी साबित हुआ। शिक्षिका वंदना चौधरी फर्जीवाड़ा करने में यहीं नहीं रुकी और फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट की आड़ में शिक्षा महानिदेशक के पास पहुंच गई, जिसके बाद शिक्षा महानिदेशक झरना कमठान ने वंदना चौधरी प्रकरण पर फिर से जांच करने के आदेश दे दिए, जबकि शिक्षा विभाग द्वारा पूर्व में तीन बार जांच कराई जा चुकी है और सभी जांचों में वंदना चौधरी को दोषी पाया गया है। यहां तक कि माध्यमिक शिक्षा निदेशक अजय कुमार नौडियाल ने 02 सितंबर 2024 को शिक्षिका वंदना चौधरी पर शास्ति लगाने और ट्रांसफर करने की अनुमति दी थी। ट्रांसफर रुकवाने और खुद को दोषमुक्त करवाने के लिए वंदना चौधरी ने फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट का उपयोग हाईकोर्ट और शिक्षा महानिदेशक को गुमराह करने के लिए किया, जिस पर हाईकोर्ट ने वंदना चौधरी को ट्रांसफर रुकवाने के लिए स्टे नहीं दिया, लेकिन विद्यालयी शिक्षा महानिदेशक ने वंदना चौधरी के आवेदन पर एक नई जांच के आदेश दे दिए, जबकि मामला हाईकोर्ट में लंबित था। विद्यालयी शिक्षा महानिदेशक झरना कमठान को दिए पत्र में वंदना चौधरी ने सिमपैथी कार्ड खेलते हुए बताया है कि उनके इकलौते भाई की मृत्यु पिछले वर्ष हुई है, लेकिन सूत्रों की मानें तो वंदना चौधरी के भाई की मृत्यु 10 वर्ष पूर्व हो चुकी है। इसी तरह अन्य तथ्य जो कि महानिदेशक को वंदना चौधरी के द्वारा दिए गए हैं सभी भ्रामक और झूठे हैं।
शिक्षिका वंदना चौधरी जो कि सरकारी डॉक्टर से फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट बनवा सकती है और किसी भी अधिकारी पर उत्पीड़न के झूठे आरोप लगा सकती है। इसलिए शिक्षा विभाग के आला अधिकारी उस पर कार्रवाही करने से कतरा रहे हैं और महानिदेशक झरना कमठान भी वंदना चौधरी के द्वारा लगातार किए जा रहे फर्जीवाड़े पर कार्रवाही करने के बजाय एक नई जांच करवाने पर तुली हुई हैं।
उत्तराखंड में लगातार शिक्षा विभाग में फर्जी टीचरों के मामले निकलते जा रहे हैं, लेकिन शिक्षा विभाग मूक दर्शक बनकर तमाशा देख रहा है। वंदना चौधरी प्रकरण में मीडिया के हस्तक्षेप के बाद ही जांच में तेजी आई, लेकिन खानापूर्ति के लिए वंदना चौधरी का केवल ट्रांसफर कर दिया गया। एक शिक्षिका के फर्जीवाड़े का आलम ये है कि वो फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाने से भी परहेज नहीं करती और शिक्षा विभाग के काबिल अधिकारी फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर वंदना चौधरी को बरी करने के लिए एड़ी से लेकर चोटी तक का जोर लगा देते हैं। ऐसे में उत्तराखंड के स्कूलों में पढ़ने वाले नौनिहालों का भविष्य क्या होगा? आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं। शिक्षिका वंदना चौधरी की तरह फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाने वाले दर्जनों टीचर मीडिया की रडार में है साथ ही वो सरकारी अस्पताल के डॉक्टर जो पैसे लेकर फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट बना रहे हैं।