न भीड़, न शोर… फिर भी लहराया तिरंगा!ज्योति याराजी की स्वर्णिम उड़ान,आंसुओं के बीच बजा राष्ट्रगान,ज्योति याराजी ने तोड़ा चैम्पियनशिप रिकॉर्ड
कुछ चैंपियन तालियों की गड़गड़ाहट के बीच दौड़ते हैं, तो कुछ चैंपियन इतिहास की खामोशी में अपनी पहचान बनाते हैं। भारतीय एथलेटिक्स की उभरती हुई स्टार ज्योति याराजी ने ऐसा ही एक अविस्मरणीय अध्याय रच दिया है।

दक्षिण कोरिया के गुमी में 29 मई 2025 को आयोजित एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भारत की ज्योति याराजी ने महिला 100 मीटर बाधा दौड़ का स्वर्ण पदक बचाकर इतिहास रचा था। लगातार बारिश के कारण खाली स्टेडियम में हुए इस मुकाबले में ज्योति ने 12.96 सेकेंड का समय निकालते हुए नया चैंपियनशिप रिकॉर्ड बनाया। जापान की युमी तनाका और चीन की यानि वू ने तेज शुरुआत की, लेकिन अंतिम हर्डल्स के बाद ज्योति की जबरदस्त फिनिश ने उन्हें पीछे छोड़ दिया। आज ज्योति का वह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यूजर भावुक अंदाज में ज्योति की तारीफ कर रहे हैं।उनका यह प्रदर्शन सिर्फ एक जीत नहीं, बल्कि भारतीय खेल इतिहास में एक मजबूत संदेश है संघर्ष, समर्पण और आत्मविश्वास का।

जब ज्योति याराजी के सम्मान में भारत का राष्ट्रीय गान बजा, तो उनकी आंखें भर आईं। कारण सिर्फ जीत नहीं था, बल्कि वह दृश्य था—खामोश स्टेडियम, खाली दर्शक दीर्घाएं, न तालियां, न शोर, न जश्न। लेकिन उस सन्नाटे के बीच भी ज्योति के साथ था भारत का तिरंगा और 140 करोड़ भारतीयों का आत्मसम्मान।
बता दें कि संघर्ष से शिखर तक आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम से ताल्लुक रखने वाली ज्योति याराजी भारतीय एथलेटिक्स की सबसे भरोसेमंद बाधा धाविकाओं में गिनी जाती हैं। उन्होंने लगातार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया है। इससे पहले भी ज्योति एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ और अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में प्रभावशाली प्रदर्शन कर चुकी हैं। उनकी खासियत है—तेज शुरुआत, बेहतरीन तकनीक और मानसिक मजबूती। सीमित संसाधनों और कड़े प्रशिक्षण के बावजूद उन्होंने खुद को एशिया की शीर्ष एथलीट्स में स्थापित किया है।
यह विडंबना ही है कि इतनी बड़ी उपलब्धि के बावजूद ज्योति याराजी पर चर्चा सीमित नजर आती है। लेकिन सच यह है कि जब इतिहास लिखा जाता है, तो शोर नहीं, कर्म बोलते हैं।
खामोश स्टेडियम में दौड़कर भी ज्योति याराजी ने यह साबित कर दिया कि भारत की बेटियां सिर्फ पदक नहीं जीततीं, बल्कि प्रेरणा बनती हैं।