इगास आजः देवभूमि में आस्था और उत्साह के साथ मनाया जा रहा पर्व! जानें दीपावली के 11 दिन बाद क्यों मनाई जाती है इगास बग्वाल

Igas today: Festival being celebrated with faith and enthusiasm in Devbhoomi! Know why Igas Bagwal is celebrated 11 days after Diwali

रुद्रपुर। उत्तराखण्ड में आज मंगलवार को इगास का पर्व आस्था और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। बता दें कि उत्तराखण्ड के पर्वतीय जिलों में दीपावली के 11 दिन बाद इगास पर्व मनाया जाता है। इगास बग्वाल का अपना खास महत्व और सांस्कृतिक धरोहर है। इसे ‘बूढ़ी दीपावली’ भी कहते हैं। बताया जाता है कि इस पर्व का उद्देश्य न केवल पुरानी परंपराओं का सम्मान करना है, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को जिंदा रखना भी है।

इगास बग्वाल का सांस्कृतिक महत्व
इगास बग्वाल केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रतीक है। दीपावली के 11 दिन बाद इस पर्व को मनाने के पीछे प्राचीन मान्यता है कि गढ़वाल में भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने का समाचार देरी से पहुंचा था और गढ़वालवासियों ने इस खुशी में अपनी दीपावली बाद में मनाई। इसके अलावा वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में तिब्बत युद्ध में विजय के बाद जब गढ़वाली सैनिक 11 दिन बाद अपने गांव लौटे, तब दीप जलाकर उत्सव मनाया गया, जो इगास का रूप बन गया।

इगास की खास परंपरा
भैलो खेल इस पर्व का मुख्य आकर्षण है। इस खेल में चीड़ की लकड़ी से बने मशाल जैसे भैलो जलाए जाते हैं और उन्हें घुमाते हुए लोक गीतों और नृत्य का आनंद लिया जाता है। लोग “भैलो रे भैलो,” “काखड़ी को रैलू,” और “उज्यालू आलो अंधेरो भगलू” जैसे पारंपरिक गीत गाते हैं और ‘चांछड़ी’ व ‘झुमेलो’ नृत्य करते हैं। यह पर्यावरण-हितैषी उत्सव भी है, क्योंकि इसमें पटाखों का उपयोग न के बराबर होता है।