उत्तराखंड यूसीसी को चुनौती देती याचिकाओं पर हाईकोर्ट में सुनवाई

Hearing in the High Court on the petitions challenging the Uttarakhand UCC

नैनीताल। उत्तराखंड समान नागरिक संहिता 2025 को चुनौती देती कई याचिकाओं समेत प्रभावित लोगों की तरफ से दायर याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में एक साथ सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने हाईकोर्ट से प्रार्थना की कि ये मामला नागरिकों के अधिकारों से जुड़ा हुआ है। इस पर विस्तार से सुनवाई होनी जरूरी है। इसलिए मामले की अगली सुनवाई हेतु मई महीने के आखिरी हफ्ते की तिथि नियत की जाए। जिस पर कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं से कहा है कि मामले की अगली सुनवाई के लिए सभी अपनी सहमति से एक तिथि नियत कर कोर्ट को अवगत कराएं। 

बता दें कि उत्तराखंड यूसीसी 2025 को प्रभावित समेत अन्य समुदायों की ओर से नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। जिस पर सुनवाई करते हुए पूर्व से अब तक कोर्ट ने जवाब पेश करने के निर्देश राज्य सरकार को दिए थे।  राज्य सरकार ने अब इसमें अपना जवाब पेश कर दिया है। अभी तक जो याचिकाएं दायर की गई हैं,उनमें से खासकर मुस्लिम समुदाय और लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे लोगों की ओर से दायर की गई है। लिव इन रिलेशनशिप' में रह रहे लोगों का कहना है कि जो फार्म रजिस्ट्रेशन के लिए उनसे भरवाया जा रहा है, उसमें उनसे कई तरह की पूर्व की जानकारी मांगी गई हैं।  अगर वो पहले की जानकारी फार्म में भरते हैं तो उन्हें जानमाल का खतरा भी हो सकता है। वर्तमान की जो शर्तें हैं,वो सब ठीक हैं, लेकिन पूर्व की जानकारी देना, उनकी व्यक्तिगत प्राइवेसी के खिलाफ है, इसको संशोधित किया जाए। 

इससे पहले भीमताल निवासी सुरेश सिंह नेगी ने यूसीसी के विभिन्न प्रावधानों को जनहित याचिका के रूप में चुनौती दी थी। जिसमें उनकी ओर से खासकर 'लिव इन रिलेशनशिप' के प्रावधानों को चुनौती दी गई। इसके अलावा यूसीसी में मुस्लिम, पारसी आदि के वैवाहिक पद्धति की अनदेखी किए जाने समेत कुछ अन्य प्रावधानों को भी चुनौती दी गई है।  इसके अलावा देहरादून के एलमसुद्दीन सिद्दीकी ने नैनीताल हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर 'उत्तराखंड यूसीसी 2025' के कई प्रावधानों को भी चुनौती दी गई, जिसमें कहा गया कि अल्पसंख्यकों के रीति-रिवाजों को अनदेखा किया। जबकि सुरेश नेगी की जनहित याचिका में 'लिव इन रिलेशनशिप' को पूरी तरह से असंवैधानिक ठहराया है। याचिका में कहा गया कि जहां नॉर्मल शादी के लिए लड़के की उम्र 21 और लड़की की 18 वर्ष होनी आवश्यक है। जबकि, 'लिव इन रिलेशनशिप' में दोनों की उम्र 18 वर्ष नियत की गई है। इसके साथ ही सवाल ये है कि उनसे होने वाले बच्चे कानूनी बच्चे कहे जाएंगे या वे वैध माने जाएंगे? दूसरा ये भी है कि अगर कोई व्यक्ति अपनी लिव इन रिलेशनशिप से छुटकारा पाना चाहता है तो वो एक साधारण से प्रार्थना पत्र रजिस्ट्रार को देकर करीब 15 दिन के भीतर अपने पार्टनर को छोड़ सकता है या उससे छुटकारा पा सकता है। जबकि साधारण शादी में तलाक आदि लेने के लिए पूरी न्यायिक प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। 

दशकों के बाद तलाक होता है, वो भी पूरा भरण पोषण और हर्जाना देकर। कुल मिलाकर देखा जाए तो राज्य के नागरिकों को जो अधिकार संविधान की ओर से प्राप्त हैं। राज्य सरकार ने उसमें हस्तक्षेप करके उनके अधिकारों का हनन किया गया है। राज्य के नागरिकों को यूसीसी में जो अधिकार संविधान ने दिए हैं, उनको भी अनदेखा किया गया है। याचिकाकर्ता का ये भी कहना है कि आने वाले समय यानी भविष्य में इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं। सभी लोग शादी न करके 'लिव इन रिलेशनशिप' में ही रहना पसंद करेंगे। क्योंकि, जब तक संबंध अच्छे हों, तब तक रहें, नहीं रहने पर पर छोड़ दें। इतना ही नहीं साल 2010 के बाद इसका रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है, न करने पर 3 महीने की सजा या 10 हजार रुपए का जुर्माने तक का प्रावधान रखा गया है। कुल मिलाकर देखा जाए तो लिव इन रिलेशनशिप एक तरह की वैध शादी ही है, बस कानूनी प्रक्रिया अपनाने में ही अंतर है। वहीं दूसरी याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार ने यूसीसी बिल पास करते वक्त इस्लामिक रीति-रिवाजों, कुरान समेत उसके अन्य प्रावधानों की अनदेखी की है। जैसे कि कुरान के आयातों के अनुसार, शौहर की इंतकाल के बाद बीबी उसकी आत्मा की शांति के लिए 40 दिन तक प्रार्थना करती हैं, यूसीसी में उसको भी प्रतिबंधित करता है। दूसरा शरीयत के अनुसार संगे संबंधियों को छोड़कर इस्लाम में अन्य से निकाह करने का प्रावधान है, लेकिन यूसीसी में उसकी अनुमति नहीं है। तीसरा शरीयत के अनुसार, संपत्ति के मामले में पिता अपनी संपत्ति का सभी बेटों को बांटकर उसका एक हिस्सा अपने पास रखकर जब चाहे दान दे सकता है,लेकिन यूसीसी उसकी भी अनुमति नहीं देता है,इसलिए इसमें संशोधन किया जाए।