इतिहास के पन्नों सेः 13 मार्च 1940 में आज़ादी के दीवाने क्रांतिकारी उधमसिंह ने लिया था जलियांवाला बाग़ नरसंहार का बदला! लंदन जाकर इस तरह ली थी माइकल ओ डायर की जान

भारतीय इतिहास में 13 मार्च, 1940 का दिन बड़ी अहमियत रखता है। उस दौरान भारत पर ब्रिटेन का शासन था,और भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ आजादी की राह देख रहा था, देश के सैकड़ों-हजारों क्रांतिकारियों ने आजादी के लिए जान की बाजी लगा दी थी। ऐसे ही एक आजादी के दीवाने क्रांतिकारी ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग नरसंहार के कर्ता धर्ता तत्कालीन अविभाजित पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर से बदला लेने के लिए 13 मार्च, 1940 ताबड़तोड़ गोलियां मारकर उसकी हत्या कर दी थी। ये हत्या उन बेगुनाहों को श्रद्धांजलि दी जिनकी जान जलियांवाला बाग़ नरसंहार में मारे गए थे।
दिन था 13 अप्रैल 1919 का जब अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के करीब जलियांवाला बाग में बैसाखी के दिन रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी, इस सभा को रोकने के लिए ब्रिटिश अधिकारी जनरल लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर ने अंधाधुंध गोलियां चलवा दी थीं, इस हमले में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे, जबकि 2,000 से ज्यादा घायल हुए. सैकड़ों महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों ने जान बचाने के लिए वहां बने गहरे कुएं में छलांग लगा दी, इस घटना ने भारत की आजादी की आग को हवा दे दी थी। कई क्रांतिकारियों के भीतर इस नरसंहार का बदला लेने की ज्वाला भड़क उठी थी। और 13 मार्च 1940 को 21 सालो के इंतजार के बाद उधमसिंह ने बदला लिया।
जलियांवाला बाग़ नरसंहार के समय शहीद उधम सिंह की उम्र महज 20 साल थी, जिनका इकलौता मकसद इस घटना का बदला लेना था। वह 1934 में लंदन जाकर रहने लगे,रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की 13 मार्च, 1940 को लंदन के कॉक्सटन हॉल में बैठक थी, इस बैठक में डायर को भी शामिल होना था ऊधम सिंह भी वहां पहुंच गए,जैसे ही डायर भाषण के बाद अपनी कुर्सी की तरफ बढ़ा किताब में छुपी रिवॉल्वर निकालकर ऊधम सिंह ने उस पर गोलियां बरसा दीं। डायर की मौके पर ही मौत हो गई, ऊधम सिंह पर मुकदमा चला,इसके बाद 31 जुलाई, 1940 को पेंटोनविले जेल में उन्हें फांसी दे दी गई,उधमसिंह देश के लिए शहीद हो गए और आने वाली पीढ़ियों के लिए देश के प्रति समर्पण त्याग और संघर्ष की मिसाल बन गए।
भारतीय क्रांतिकारी उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को लाहौर से 130 मील दूर पिलबाद में हुआ था,उधम सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन और गदर पार्टी से जुड़े थे। उधम सिंह का शुरूआत में नाम शेर सिंह था, जो कि बाद में बदलकर उधम कर दिया गया था,सिंह के पिता का नाम तहल सिंह और माता का नाम नारायण कौर था। उधम दो भाई थे और वह छोटे थे, उनके माता-पिता की मृत्यु तब ही हो गई थी जब वह बहुत छोटे थे, जिसके कारण दोनों भाईयों की परवरिश अनाथालय में हुई थी,सिंह के भाई की गंभीर बीमारी के कारण मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उधम ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा की।
बचपन में ही मां-बाप को खो चुके ऊधम सिंह की परवरिश अनाथालय में हुई थी,लेकिन वो देश को अपना परिवार मानते थे,जलियांवाला बाग़ नरसंहार की वीभत्स घटना ने उनके मन में भी गुस्सा भर दिया,पढ़ाई-लिखाई के दौरान ही वह आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे।