भ्रष्टाचार की इंतहाः उत्तराखण्ड में कृषि विभाग का गजब कारनामा! चुनिंदा डीलरों के लिए ‘हैक’ किया जाता है पूरा का पूरा सिस्टम, किसानों को नहीं मिल पा रहे कृषि यंत्र

रुद्रपुर। इसे भ्रष्टाचार की इंतहा कहें या फिर ऊपर से लेकर नीचे तक सेटिंग-गेटिंग का खेल! जो भी हो, उत्तराखण्ड कृषि विभाग की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आती जा रही है। हैरानी की बात ये है कि शिकायतों के बावजूद कृषि विभाग की कार्यप्रणाली में कोई सुधार नहीं आ रहा है। यही नहीं सोशल मीडिया से लेकर समाचार पत्रों में तक इस विभाग को लेकर सवाल उठ रहे हैं, बावजूद इसके शासन-प्रशासन के कानों में जू तक नहीं रेंग रही। ताजा मामला किसानों को सब्सिडी पर मिलने वाले कृषि यंत्रों से जुड़ा हुआ है। अभी हाल ही में 18 अक्टूबर 2024 को कृषि विभाग द्वारा ऑनलाइन माध्यम से वेबसाइट पर टारगेट दिए गए, ताकि किसानों को इस योजना का लाभ मिल सके, लेकिन विभाग की मेहरबानी से इस योजना का लाभ उन्हीं किसानों को मिल सका, जिनके डीलरों की पहचान विभाग के बड़े अधिकारियों से थी।
केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं को पलीता लगा रहे अधिकारी और दलाल
दरअसल कृषि विभाग के माध्यम से केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा 50 प्रतिशत और राज्य सरकार द्वारा कुछ पर्वतीय जिलों में अधिकतम 30 प्रतिशत तक खेती से संबंधित यंत्रों पर अनुदान राशि दी जाती है। ताकि किसानों को कृषि यंत्र आसानी से उपलब्ध हो सकें। इसके लिए साल में दो से तीन बार कृषि विभाग के वेबसाइट पर ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से टारगेट दिए जाते हैं, जिसके लिए रजिस्टर्ड डीलर खासी मेहनत कर किसानों के संबंधित कागजात जमा करवाते हैं और टारगेट अपलोड होने पर किसानों को यंत्र मुहैय्या कराने के भरसक प्रयास करते हैं। बकायदा कृषि विभाग द्वारा समाचार पत्रों के माध्यम से किसानों को अवगत कराया जाता है कि इस तारीख और दिन को वेबसाइट पर टारगेट अपलोड़ किए जायेंगे, लेकिन हैरानी की बात ये है कि जिस दिन वेबसाइट पर टॉरगेट अपलोड़ किए जाते हैं उसी दिन कृषि विभाग की वेबसाइट काम करनी बंद कर देती है। जिसके चलते अधिकांश डीलर कृषि यंत्रों की बुकिंग नहीं कर पाते हैं ऐसे में कई किसानों को सिर्फ और सिर्फ निराशा ही हाथ लगती है। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कृषि विभाग के अधिकारियों और दलाली करने वाले डीलरों द्वारा किसानों का हक मारा जा रहा है।
वेबसाइट ‘हैंग’ होने के बावजूद पूरे हो जाते हैं टारगेट
हैरान करने वाली बात ये है कि वेबसाइट ‘हैंग’ होने बावजूद कुछ ही समय में टॉरगेट पूरा हो जाता है और अधिकांश कृषि यंत्रों की बुकिंग हो जाती है।
अब यहां सवाल यह उठता है कि जब प्रस्तावित तिथि पर वेबसाइट ही काम नहीं कर रही है तो टॉरगेट कैसे पूरे हो जाते हैं? ऐसे में जब पड़ताल की गयी तो पता चला कि कृषि विभाग के अधिकारियों और चुनिंदा डीलरों की सांठ-गांठ के चलते ये सब खेल चलता है। पड़ताल में पता चला कि कुछ चुनिंदा डीलरों द्वारा कृषि विभाग के अधिकारियों की मेहरबानी से अपने मनमाने ढंग से वेबसाइट चलवाई जाती है, जिसकी जानकारी उन्हीं के पास होती है कि कब वेबसाइट काम करना शुरू करेगी।
धामी जी ये कैसा जीरो टॉलरेंस
यूं तो एक तरफ प्रदेश की धामी सरकार जीरो टॉलरेंस की बात करते हुए भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखण्ड का दावा करती है, वहीं दूसरी तरफ सरकारी विभागों में इस तरह का घालमेल अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। सूत्रों की मानें तो कृषि विभाग के अधिकारियों की सांठ-गांठ के चलते भ्रष्टाचार का खुला खेल चलता है। सूत्रों का यहां तक कहना है कि राजधानी दून से भी चुनिंदा डीलरों के सपोर्ट में कृषि विभाग में फोन घुमाए जाते हैं, ताकि उन्हीं के डीलरों को इसका फायदा पहुंच सके। बता दें कि इस मामले में आवाज 24x7 पहले भी कृषि विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा चुका है, यही नहीं किसानों द्वारा भी इसकी शिकायत की जाती है और समाचार पत्रों में भी इसको लेकर सवाल उठते हैं, बावजूद इसके कृषि विभाग के जिम्मेदार अधिकारी टस से मस नहीं होते।
कृषि विभाग पर उठते हैं कई सवाल?
कृषि विभाग के इस भ्रष्टाचार को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं। जब तय तिथि पर वेबसाईट में दिक्कत थी और किसान आवेदन ही नहीं कर पाए तो सभी लक्ष्य कैसे पूरे हो गए, क्या कुछ खास डीलरों या यंत्र निर्माताओं के लिए वेबसाईट को हैक किया गया?
क्या कुछ खास डीलरों या यंत्र निर्माताओं के लिए वेबसाइट की स्पीड नियत की गई और कुछ खास कंप्यूटरों का आईपी अड्रेस कृषि यंत्रों के आवेदन के लिए वेबसाइट पर सेट किया गया, ताकि उन्हीं कंप्यूटर से यंत्रों का आवेदन हो सके जिसे वेबसाइट पर सेट किया गया हो।
कई जिलों में कई कृषकों ने बताया है कि डीलरों ने उनके ब्लॉक में आवेदन से पहले ही सैकड़ों की संख्या में कृषि यंत्र बांट दिए हैं जो कि इस बात का प्रमाण है कि डीलरों और विभाग के अधिकारियों की मिली भगत से वेबसाइट का संचालन किया जा रहा है ताकि विभाग के खास डीलरों और यंत्र निर्माताओं को फायदा मिल सके।