बड़ी उपलब्धिः इसरो ने अंतरिक्ष में रचा इतिहास! स्पैडेक्स सैटेलाइट ने पूरा किया डॉकिंग प्रोसेस, दुनिया में ऐसा करने वाला चौथा देश बना भारत

Big achievement: ISRO created history in space! Spadex satellite completes the docking process, India becomes the fourth country in the world to do so

नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इतिहास रचते हुए स्पैडेक्स सैटेलाइट की डॉकिंग प्रोसेस को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। बता दें कि इसरो 7 जनवरी और 9 जनवरी को तकनीकी समस्याओं के कारण स्पैडेक्स सैटेलाइट की डॉकिंग प्रोसेस को तय समय पर पूरा नहीं कर पाया था। इन सैटेलाइट को इसरो ने 30 दिसंबर को लॉन्च किया था। ISRO ने 12 जनवरी को बताया था कि दो सैटेलाइट्स को 15 मीटर और 3 मीटर की दूरी तक लाने का परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है। ISRO ने पहले घोषणा की थी कि इन दोनों सैटेलाइट्स की डॉकिंग एक सार्वजनिक कार्यक्रम में होगी लेकिन लगातार दो बार इस मामले में दिक्कत आ गई थी। बीते दिनों इसरो में नेतृत्व परिवर्तन हुआ था और इस वजह से SpaDex (Space Docking Exercise) डॉकिंग कार्यक्रम को टालना पड़ा था। केंद्र सरकार ने 7 जनवरी को वी. नारायणन को इसरो का नया निदेशक नियुक्त किया था और उन्होंने 14 जनवरी को कार्यभार संभाल लिया था। SpaDex मिशन वास्तव में तकनीक का एक प्रदर्शन है, जिसके तहत PSLV द्वारा 30 दिसंबर को लॉन्च किए गए दो छोटे सैटेलाइट्स की डॉकिंग की जानी है। भारत का पहला ऐसा मिशन, जिसमें डॉकिंग की आवश्यकता होगी, वह चंद्रयान-4 हो सकता है। यह मिशन चांद से नमूने लेकर पृथ्वी पर आएगा। इस मिशन के रिएंट्री मॉड्यूल को पृथ्वी के वायुमंडल में गर्मी सहन करने के लिए डिज़ाइन किया जाएगा। चांद से नमूने लाने वाला ट्रांसफर मॉड्यूल पृथ्वी के वायुमंडल में रिएंट्री मॉड्यूल के साथ डॉक करेगा। भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना के लिए भी डॉकिंग की जरूरत होगी। ISRO ने 30 दिसंबर को दो छोटे सैटेलाइट्स- SDX01 (चेज़र) और SDX02 (टारगेट) को लॉन्च किया था। इन्हें लो-अर्थ सर्कुलर ऑर्बिट में 20 किमी. की दूरी पर रखा गया। इसके बाद, यह धीरे-धीरे एक-दूसरे के करीब आए और डॉकिंग की प्रोसेस की गई।

क्या है डॉकिंग और यह क्यों जरूरी है?
डॉकिंग में दो तेज़ी से चलने वाले अंतरिक्ष यानों (स्पेसक्राफ्ट) को एक ही कक्षा में लाया जाता है, फिर उन्हें धीरे-धीरे पास लाया जाता है और अंत में उन्हें आपस में जोड़ा जाता है। यह क्षमता उन मिशन को पूरी करने के लिए जरूरी है जिनमें भारी अंतरिक्ष यान की जरूरत होती है। ऐसे अंतरिक्ष यान जिन्हें एकल प्रक्षेपण यान से अंतरिक्ष में नहीं भेजा जा सकता।