लॉक डाउन - आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी से पशु पक्षी दूर क्यों ?

कोरोना वायरस जो दिखता भी नही है उसने आज पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया ,क्योंकि कोरोना एक जानलेवा वायरस है इसलिए पूरी मानवजाति उससे डर रही है कांप रही है।कितना स्वार्थी है ना मनुष्य? जो दिखता भी नही उससे डरता है और जो पशु पक्षी दिखते है ,नुकसान भी नही पहुंचाते उन्हें मार कर उनका भक्षण कर लेते हैं।कोरोना वायरस के खौफ से आज लगभग दुनिया के हर देश मे लॉक डाउन की स्थिति है ,भारत मे ही आप देख लीजिए जगह जगह कर्फ़्यू के हालात नज़र आ रहे है,मंगलवार को पीएम मोदी ने रात 12 से पूरे 21 दिन का लॉक डाउन करने की घोषणा की,कई शहरों में इस सुनकर रात को ही अफरातफरी मच गई लोग अपने घरों से निकल कर ज़बरदस्ती दुकानदारों से दुकान खोल कर ज़रूरत का सामान लेने की गुहार करने लगे,जबकि पीएम मोदी ने अपने भाषण में स्पष्ट कहा कि आवश्यक वस्तुओं की दुकानों को खोला जाएगा जिसका टाइम 7 से 10 सुबह का रहेगा,लेकिन स्वार्थी मनुष्य अपने लिए रात को ही निकल पड़ा,इनमें आप और हम भी शामिल हैं।पर क्या कोरोना वायरस का खतरा जानवरो पर नही मंडरा रहा? उनके लिए क्या व्यवस्था की गई है? क्या पशु पक्षी बीमार नही पड़ सकते? क्या उन्हें भूख प्यास नही लगती?
भारतीय संविधान हर नागरिक को जीने का अधिकार देता है यह बात आपने कई बार सुनी होगी। लेकिन भारत के संविधान ने जानवरों को भी जीवन जीने की आजादी दी है। अगर इनके जीवन को बाधित करने का कोई प्रयास करता है तो इसके लिए संविधान में कई तरह के दंड़ के प्रावधान हैं। प्रिवेंशन ऑन क्रूशियल एनिमल एक्ट 1960 की धारा 11(1) कहती है कि पालतू जानवर को छोड़ने, उसे भूखा रखने, कष्ट पहुंचाने, भूख और प्यास से जानवर के मरने पर आपके खिलाफ केस दर्ज हो सकता है। इसपर आपको 50 रुपए का जुर्माना हो सकता है। अगर तीन महीने के अंदर दूसरी बार जानवर के साथ ऐसा हुआ तो 25 से 100 रुपए जुर्माने के साथ 3 माह की जेल सकती है,ये प्रावधान पालतू पशुओं के लिए बना है।लेकिन जो पशु जंगल, सड़को पर रहते है उनकी भूख प्यास का इंतज़ाम देश मे लागू किये गए लॉक डाउन में कौन करेगा ?
ये धरती असल मे मनुष्य की थी ही नही इन्ही पशु पक्षियों की थी मानवजाति ने उन्हें खेदड़ कर खुद अपना कब्जा कर लिया,ज़रा सोच कर देखो अगर किसी और प्रजाति में म्यूटेशन हो जाये जिसके पास सोचने के लिए दिमाग भी हो और लड़ने की क्षमता भी तो इस स्वार्थी मानवजाति का क्या होगा।प्रकृति भी तालमेल बनाकर रखती है,वर्षा ऋतु, हो या बसन्त ऋतु,हर मौसम पर्यावरण के हिसाब से बदलता है,लेकिन क्या मनुष्य तालमेल बना कर रहता है? पशुओं की रहने की जगह को काट काट कर अपना घर बना लिया ,फिर अगर उस तरफ कोई जानवर आ जाये तो या तो उसे मारने की सोचता है या फारेस्ट विभाग में शिकायत कर उसे पकड़वाने की,लेकिन ये कभी नही सोचता कि ये जगह उसी का तो घर था मैंने ही जंगलों को काट कर उसका घर छीन लिया।
कोरोना ने आज जो सबक दिया है उससे अगर अब नही संभले तो आने वाले वक्त में इसका खामियाजा पूरी मानवजाति को भुगतना पड़ेगा,अब भी वक्त है कि हम प्रकृति के संतुलन का ध्यान रखें।