महाराष्ट्र में लगे राष्ट्रपति शासन के हाई टेक ड्रामे का असली हीरो तो पहाड़ी निकला।

भगत सिंह कोश्यारी वो नाम है जो सियासी हलचल पैदा करने के लिए काफी है,अब महाराष्ट्र को ही ले लीजिए,महज़ 20 दिनों के अंदर अंदर भगतसिंह कोश्यारी ने महाराष्ट्र में सरकार बनने की उठा पठक को शांत कर दिया,और उनकी ही सिफारिश के बाद अब तीसरी बार महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है।पहली बार महाराष्ट्र में 1980 में राष्ट्रपति शासन लगा था दूसरी बार 2014 मे और तीसरी बार अब यानी 2019 में, राष्ट्रपति शासन लगने से पहले एनसीपी ने कोश्यारी को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमे पार्टी के पास बहुमत आंकड़ा फिलहाल न होने की बात लिखी थी, और तीन दिन का अतिरिक्त समय भी मांगा था ,पर कोश्यारी ने समय न देकर सीधे गृह मंत्रालय को महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश ही कर डाली।सिफारिश पत्र में कोश्यारी ने लिखा था, कि सरकार बनाने की सारी कोशिशें की गई लेकिन कोई संभावना नही दिखी इसीलिए महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा की जाती है,इस रिपोर्ट के बाद पीएम मोदी ने कैबिनेट की इमरजेंसी बैठक बुलाई और राज्यपाल कोश्यारी की सिफारिश पर कैबिनेट ने अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत राष्ट्रपति शासन के लिए हामी भर दी।पूरे 72 घण्टे महाराष्ट्र की सियासी गलियों में ये हाई टेक ड्रामा चलता रहा,अब कांग्रेस का कहना है कि महाराष्ट्र में राज्यपाल कोश्यारी दलगत भावना से काम कर रहे हैं,यहाँ तक कि कांग्रेस ने ये आरोप तक लगा दिए कि महाराष्ट्र में भाजपा भी सरकार बनाने में सफल नही हुई तो कोश्यारी ने जल्दीबाजी दिखाते हुए राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की, ताकि कोई और पार्टी भी सरकार ना बना सके। इन सब के पीछे का मेन हीरो कोश्यारी को ही माना जा रहा है, उत्तराखंड के सीधे सादे माने जाने वाले कोश्यारी ने महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मचा कर रख दी, कोश्यारी 77 वर्ष के है ,और उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के रहने वाले है,उनका राजनीतिक कैरियर वैसे तो पहले से ही अपना रास्ता खुद ब खुद बनाता चल रहा था पर 1997 में अविभाजित उत्तर प्रदेश में एमएलसी रहने के बाद उत्तराखंड राज्य बनने के साथ ही वो नित्यानंद स्वामी की सरकार में मंत्री रहे और फिर राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले ही पार्टी ने एक अहम फैसला लेते हुए कोश्यारी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना दिया,कोश्यारी ने विपक्ष में रहते हुए भी अपनी पार्टी के किये अहम भूमिका निभाई ,2002 में विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था ,तब कोश्यारी को विपक्ष का नेता चुना गया था,कोश्यारी 2007 से 2009 तक पार्टी के अध्यक्ष भी रहे हैं,2014 में पहली बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वो लोकसभा पहुंचे,2019 में जब भाजपा ने कोश्यारी को टिकट नही दिया तो सियासी गलियारों में कोश्यारी के राजनैतिक कैरियर के खत्म होने तक की बातें सामने आई थी, पर असली राज़ तो तब खुला जब सितेम्बर के महीने में कोश्यारी को सीधे महाराष्ट्र का राज्यपाल बना दिया गया। 

कोश्यारी की सिफारिश के बाद महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन तो लग गया पर अब भी नई सरकार के गठन को लेकर खींचतान कम नही हुई है ,अब मुकाबला एनसीपी,कांग्रेस और शिवसेना के बीच उलझ रही है,भाजपा तो फ़िलहाल इस खेल में दूर दूर तक नज़र नही आती क्योंकि भाजपा और शिवसेना के पिछले 30 साल पुराने संबंधो में मुख्यमंत्री पद को लेकर दरार आ गयी,जब दोनों पार्टी के बीच सुलह नही हो पाई तो भाजपा ने सरकार बनाने से इंकार कर दिया ,अब टक्कर इन्ही बची हुई तीन पार्टी के बीच ही होनी है,आपको बता दे कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन 6 माह तक रहेगा और अगर इस बीच कोई पार्टी या बहुमत के समर्थन के साथ गठबंधन का दावा पेश करती है तो राज्यपाल इस पर विचार कर सकते हैं।