भाजपा के पितामह हुए 92 वर्ष के,पीएम मोदी ने भी दी शुभकामनाएं

राम मंदिर आंदोलन के सबसे ज़्यादा लोकप्रिय नेता रहे लाल कृष्ण आडवाणी आज 92 वर्ष के हो गए हैं। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में आडवाणी के आवास पर जाकर मुलाकात की और शुभकामनाएं दीं। इस दौरान उनके साथ उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद थे।
लाल कृष्ण आडवाणी का जन्म भारत जब अविभाजित था तब भारत के सिंध प्रांत में 8 नवंबर 1927 में हुआ था,उनके पिता कृष्ण चंद डी अडवाणी और माता ज्ञानी देवी थी अडवाणी पाकिस्तान स्थित कराची के स्कूल में पढ़े और बाद में उन्होंने सिंध कॉलेज में एडमिशन लिया ,हालांकि देश के विभाजन के बाद आडवाणी पूरे परिवार के साथ मुंबई आ बसे।मुम्बई में उन्होंने अपने आगे की पढ़ाई पूरी की और लॉ की शिक्षा भी ली ।मात्र 14 साल की उम्र में आडवाणी संघ में शामिल हो गए थे,भारतीय जनता पार्टी को भारतीय राजनीति में एक प्रमुख पार्टी बनाने में उनका योगदान सर्वोपरि कहा जा सकता है। वो कई बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके है। भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रीय स्तर तक लाने का पूरा श्रेय लाल कृष्ण आडवाणी को ही जाता है।आडवाणी को अगर भाजपा का पितामह कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी,आडवाणी का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली रहा है कि विपक्ष भी उनका लोहा मानता है,आज सभी आडवाणी को लोह पुरूष के नाम से भी जानते हैं।
सन 1992 में अयोध्या आंदोलन के सूत्रधार लाल कृष्ण आडवाणी ही थे,उन्होंने 1990 में गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या मंदिर के निर्माण को लेकर एक रथ यात्रा निकाली थी जिसने एक जन आंदोलन का रूप लेकर पूरे भारत के सामाजिक ताने बाने को ही बदल डाला था।शायद उसी रात यात्रा का असर था जो 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को फायदा मिला और पार्टी 120 के आँकड़े तक आ पहुंची थी,1991 के चार साल बाद जब पूरी पार्टी की निगाहें आडवाणी के पीएम बनने पर टिकी हुई थी तब आडवाणी ने अटल बिहारी वाजपेयी का नाम पीएम पद के किये लेकर सबको सकते में डाल दिया था,हर कोई हैरान था कि जिसने पार्टी का नेतृत्व किया उसकी दावेदारी बनती है पर उन्होंने पार्टी की कमान के साथ देश की बागडोर भी किसी और को देने की कैसे सोच ली,वैसे लाल कृष्ण आडवाणी का अटल बिहारी वाजपेयी को पीएम पद के लिए चुनना सही भी रहा,इससे यही पता चलता है कि आडवाणी को सत्ता का लालच कभी रहा है नही,जो देश हित मे हो वही उन्हें मंजूर था।1996 में हवाला कांड में आडवाणी के ऊपर उंगुलियां भी उठी आरोप लगे कि आडवाणी हवाला कांड में शामिल थे,ये आरोप उनसे बर्दाश्त नही हुआ तो उन्होंने संसद से अपनी सदस्यता से इस्तीफा ही दे दिया था।कुछ समय बाद हवाला कांड में शामिल होने के सभी आरोपों से आडवाणी बाइज्जत बरी भी हो गए थे।भाजपा के इतिहास को अगर खंगाला जाए तो आजतक इतना प्रभावशाली नेता शायद ही कोई रहा हो या यूं कह लो कि भाजपा नामक किताब का सबसे अहम अध्याय ही लाल कृष्ण आडवाणी हैं।