बद्रीनाथ के कपाट खुलते ही चारों धामों की भी यात्रा का हुआ आगाज़

कल सुबह ठीक 4.15 मिनट ब्रह्ममूर्त पर विधि विधान के साथ बद्रीनाथ के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं । इस अवसर पर देश विदेश से 10 हजार से अधिक श्रद्धालओ ने अखंड जोत के दर्शन किये। कल सुबह तड़के रावल की आगवाही में वेद पाठियों के साथ स्तुति गान गा कर बद्री धाम के कपाट खोले गये। इससे पूर्व गर्भ गृह से लक्ष्मी जी की मूर्ति को लक्ष्मी मंदिर में विराजमान किया गया। जबकि उद्धव भगवान व कुबेर जी की मूर्तियों को भगवान बद्री विशाल के विग्रह के साथ स्थापित किया गया, इस मौके पर भगवान बद्री विशाल को कपाट बंद होने के अवसर पर माणा की कुंवारी कन्याओं द्वारा अपने हाथों से बुना गया और घृत कम्बल को प्रसाद के रूप में वितरित किया गया।बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने से चारों धामों की यात्रा का भी आगाज हो गया।
मान्यता के अनुसार बद्रीनाथ में पहले भगवान शिव विराजमान थे,पर समय बितने के साथ साथ बद्रीनाथ पर भगवान विष्णु आकर रहने लगे।देवों के देव शिव शम्भू और भगवान विष्णु एक दूसरे के अराध्य थे, दोनो ही एक दूसरे को बहुत मानते थे।पर भगवान शिव का निवास स्थान आखिर विष्णु जी को कैसे और क्यों मिला ये बड़ी दिलचस्प बात है।पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ध्यान लगाने के लिये एकांत जगह की तलाश में थे, और वो एकांत जगह विष्णु जी को बद्रीनाथ में दिखाई दी,पर वहां तो महादेव का अपने परिवार के साथ डेरा डला हुआ था,अब क्या करें भगवान विष्णु?आपको तो पता ही है भगवान विष्णु युक्तियां निकालने में महराथ हासिल किये हुये थे, तो बस एक युक्ति उनके दिमाग में आई।उन्होंने एक छोटे बच्चे का रूप धारण किया और रोते रोते पहुंच गये बद्रीनाथ में मां पार्वती के पास।शिव शम्भू तो ठहरे अंर्तयामी वो जान चुके थे कि ये भगवान विष्णु भगवान की ही कोई लीला है, पर वो चुप रहकर देखना चाहते थे कि मां पार्वती क्या करेंगी।रोते हुये बच्चे को मां ने अपने पास बुलाया और थपकी देकर चुप कराने लगी।बच्चे के रूप में भगवान विष्णु सो गये।जैसे ही मां पार्वती बाहर गयी, विष्णु जी ने झट से अंदर से दरवाजा बंद कर लिया और आवाज देकर बोले मुझे ध्यान लगाने के लिये आपका ये धाम बहुत भा गया है,आप से हाथ जोड़ कर निवेदन है आप केदारनाथ को प्रस्थान कर वहीं अपना निवास स्थान बनायें ,मैं यहां रहकर ध्यान लगाउंगा और भविष्य में अपने भक्तों को यहीं दर्शन भी दूंगा।
शिव मुस्कुराये और पार्वती के साथ अपनी पंसदीदा जगह केदार नाथ को चले गये।शिव भी भोले बनकर यही चाहते थे कि केदारनाथ में वो जाकर रहें और भगवान विष्णु के माध्यम से ये हो भी गया।
प्रभू की लीला को उनके सिवा कोई नहीं जान पाया।आज भी केदार नाथ शिव शम्भू का देवस्थल और बद्रीनाथ भगवान विष्णु के धाम के नाम से प्रसिद्ध है।