देश में सरकार की अव्यवस्था की पोल खोलता लॉक डाउन

भारत में कोरोना वायरस से संक्रमण का पहला मामला 30 जनवरी 2020 को सामने आया था । कोरोना वायरस का ये पहला मामला दक्षिण भारतीय राज्य केरल से सामने आया था। शुरुआत में केरल में कोरोना वायरस से संक्रमित तीन संदिग्घ मरीज़ों का पता चला था, तीनो की रिपोर्ट भी पॉजिटिव आयी थी ।तब से लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार शनिवार यानी 28 मार्च 2020 तड़के 3 बजे तक भारत में कुल 834 मामले कोरोना वायरस के संक्रमित मरीजो के सामने आ चुके थे। देश में सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में सामने आए हैं।, यहां मरीजों की संख्या 180 हो गई है।
कोरोना का संक्रमण देश मे और ज़्यादा ना फैले इसके लिए पूरे देश मे लॉक डाउन कर दिया गया,आज 29 मार्च 2020 लॉक डाउन का 5वां दिन है और देश के अनुमानित करीब 20 करोड़ मजदूर कोरोना के डर से नही बल्कि लॉक डाउन में अपने घर ना जा पाने,रोजी रोटी ना कमा पाने की चलते परेशान हैं। पिछले 5 दिनों में अपने अपने शहर से दूरदराज अन्य शहरों में मजदूरी करने वाले लोगो के सामने सबसे ज़्यादा मुसीबत की घड़ी है,रहने के लिए घर नही,कमाने को काम नही,जेब खाली,पेट की भूख मिटाने को खाना ही नही,बस पैदल ही निकल पड़े पुलिस की मार खाते हुए अपने अपने घरों की ओर।
कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लॉक डाउन अच्छा उपाय है लेकिन इसके चलते भारत का एक बहुत बड़ा तबका जो हर रोज़ गढ्ढा खोदकर पानी पीने जैसी ज़िन्दगी जी रहे हैं आज इतने बुरे दिन देख रहे हैं। सड़को पर पैदल चलते और कंधे पर बच्चे हाथों में बैग लिए अपने घरों को जाते हुए दिखाई दे रहे हैं,इनमें कई लोग ऐसे भी हैं जो फुटपाथ पर ही रात काट कर रोजी रोटी कमा रहे थे, जब तक कमाया तभी तक खाया अब 21 दिन का लॉक डाउन और कोई सुविधा नही।हकीकत में इन्ही लोगो तक सुविधाएं नही पहुंच पा रही है।
फ़ोटो साभार ऐ एन आई
जनवरी में पहला मामला जब सामने आया था,तभी सरकार को लॉक डाउन के बारे में सोचना चाहिए था और लॉक डाउन करने से पहले बताया जाता कि आने वाले समय मे हम देश की सुरक्षा को देखते हुए लॉक डाउन करेंगे तब तक जो लोग दूर दराज काम करने आये हैं वो अपने घर चले जाएं । ऐसा अगर होता तो आज बस स्टेशनों में भारी भीड़ ना इक्कठी हुई होती,एक तरफ लॉक डाउन दूसरी तरफ भारी संख्या में भीड़ का एकत्रित होना,क्या आपको लॉक डाउन करने का कोई औचित्य अब दिखाई दे रहा है?
आवाज़ उत्तराखंड लॉक डाउन का समर्थक है लेकिन कुछ सवाल आज भी खड़े है जैसे :
1. जब 30 जनवरी को कोरोना का पहला केस मिला तब से 24 मार्च तक बचाव के लिए क्या कोई कार्यवाही हुई ?
2. अन्य देशों की अपेक्षा भारत में वायरस देर से पहुंचा लेकिंन क्या लॉक डाउन ही करना था तो क्या पहले से सावधान नही किया जा सकता था ?
3. जो गरीब मजदूर एक राज्य से दूसरे राज्य में है और उनके जीवन को बचाने के लिए संकट पैदा हो गया है और जिससे लॉक डाउन का उलंघन भी हो रहा है तो क्या पहले उनके घर लौटे की व्यवस्था नही हो सकती थी ?
4. भारत 19 मार्च तक स्वास्थ्य संबंधित वस्तुएं निर्यात कर रहा था तो क्या सरकार चला रहे ज्ञानी नेताओं और अधिकारियों किसी को ये समझ नही आया कि भारत भी इस महामारी का शिकार हो सकता है ?
5.एक बिना सोचे समझे लिया गया निर्णय बारम्बार लिए गए निर्णय में संशोधन लाता है क्या निर्णय संतुलित नही होना था ! और प्रधानमंत्री मोदी के अलावा अच्छी तरह से कौन जान सकता है कि बिना विचारे लिए गए निर्णयों में नुकसान देश का ही होता है ?
ऐसे बहुत सारे सवाल है लेकिन जिन लोगो के पेट भरे है और आराम से घर पर है और वहां से लॉक डाउन को सही ठहरा रहे है अरे जरा उनसे पूछों जो कई सौ किलोमीटर पैदल चल चुके है पुलिस की बर्बरता के शिकार हो चुके है ,और कई दिन भूखे ही गुजार चुके है ऐसा लगता है कोरोना महामारी से पहले कही भूख ही न इन्हें मार डाले ।।।
अंत में लॉकडाउन सही तरीके से सफल हो सकता था अगर सही समय पर सही प्रबंध करते हुए निर्णय लिए जाते तो ।