चुनावी मौसम में जीबी रोड की अंधेरी गलियों में भी वोट अपील?

चुनावी त्योहार में नागरिक का वोट प्रत्याशी की जीत या हार तय करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है,पर क्या आपने कभी सोचा है कि समाज से उपेक्षित एक ऐसा वर्ग भी है जो गुमनाम जिन्दगी जीते हुये भी देश के इस महापर्व में अपना योगदान देता है,वो भी तब जब शायद ही कोई प्रत्याशी उन गुमनाम गलियों में कभी वोट मांगने भी गया हो।रात के अंधेरे में भले ही सफेद पोशाक पहने कुछ लोग उन गलियों में अपनी रात बिताते हों, पर दिन के उजाले में अपनी इज्जत, अपने रुतबे के खातिर कोई वहां जाना भी पसंद ना करे।

ऐसा ही एक बदनाम और छोटा सा समाज दिल्ली के रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर जीबी रोड में ऐसी जिन्दगी जी रहा है, जिसकी कल्पना ही आपको झकझोर दे।यहां सौ साल पुरानी इमारतें हैं, जगह-जगह दलालों के झांसे में नहीं आने और जेबकतरों और गुंडों से सावधान रहने की चेतावनी लिखी हुई है।जीबी रोड दिल्ली की एक सड़क है, जिसका नाम सुनते ही लोगों की भौंहें तन जाती हैं।देहव्यापार का यहां सबसे बड़ा कारोबार होता है, नेपाल और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लड़कियों की तस्करी करके यहां के कोठों पर लाया जाता है।ज्यादातर लड़कियों को इस धंधे में जबरन डाला जाता है।  किसी को शादी का झांसा देकर यहां तक पहुंचाया जाता है तो किसी को नौकरी का लालच देकर यहां धकेल दिया जाता है और कुछ गरीबी के चलते मजबूर होकर यहां तक आ पहुंचती हैं।

हर रोज यहां औरतों और लड़कियों की तस्करी करके कितनी संख्या में लाया जाता है इसका कोई आंकड़ा नहीं है। पर यकीनन यह आंकड़ा बहुत ज्यादा होगा।हमारा समाज इस बदनाम समाज की औरतों को वैश्या नाम से पुकारता है। जो जीबी रोड के छोटे छोटे कमरों में भेड़ बकरियों की तरह रहने पर मजबूर हैं।



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वैसे तो पूरे भारत में ना जाने कितने ऐसे गली मौहल्ले होंगे जहां रात होते औरतों को भूखे भेड़िये की नजर से देखा जाता है।जिस दिल्ली की हम बात कर रहे हैं वहां आजकल चुनाव जीतने के लिये सभी पार्टियों की इज्जत दांव पर लगी है ,और उसी दिल्ली में रातों को कईयों की इज्जत ही नोच ली जाती है।




यहां लायी गयी लड़कियों के पास न तो राशन कार्ड होते हैं न आधार कार्ड।लेकिन जो औरते सालों से जीबी रोड में देहव्यापार में लिप्त हैं ,उनके राशनकार्ड और आधार कार्ड बने हुयें हैं ,पर वोट मांगने तो कोई यहां आता ही नहीं, बस जो प्रत्याशी पसंद आता है उसे ही ये औरतें वोट दे आती हैं।

चुनाव में कोई जीते कोई हारे देश में भले ही फर्क पड़ जाता हो, पर इन गलियों की बदनाम जिन्दगी सालों से ज्यों की त्यों ही बनी हुई है।अपना जीवन यापन करते हुये सेक्स वर्कर अक्सर मां भी बन जाती हैं, और सेक्स वर्करों की जिन्दगी का असर उनके बच्चों में भी पड़ता है।ना वो पढ़ ही पातें हैं और ना ही कोई ढंग की जाॅब उन्हें मिलती है ,जो बचपन से देखा होता है ,उसी जिन्दगी में वो भी ढल जाते है। कब जीते हैं कब मर जाते हैं पता ही नही चलता।क्या कभी कोई नेता सड़को पर वोट मांगते हुये जीबी रोड की इन सेक्स वर्करों के पास भी वोट अपील करने गया?जवाब में कटाक्ष हंसी हंस देंगे आप।लेकिन ये कड़वा सच है कि कोई भी नेता जीबी रोड की बदनाम गलियों में वोट मांगने आजतक नहीं गया होगा।

हमारे इज्जतदार समाज से ही कुछ लोग इन बदनाम गलियों में सेक्स वर्करों की इज्जत की धज्जियां उड़ाने जाते हैं।इन इज्जतदारों को जीबी रोड में रह रही सेक्स वर्करों की परेशानी से कोई लेना देना नही है।चुनावी मुद्दों में या चुनावी दलों के घोषणा पत्रों में आजतक किसी ने सेक्स वर्करों के हक की बात नही की जबकि देश को मजबूत लोकतंत्र प्रदान करने में इन सेक्स वर्करों का भी उतना ही योगदान होता है जितना आपका और हमारा।

जीबी रोड में रहने वाली महिलायें किसी दूसरे समाज से नहीं आयी बल्कि हमारे ही बीच से वहां तक पहुंची हैं।हमारे ही समाज का हिस्सा होने के बाद भी ऐसा लगता है जैसे ये बदनाम समाज देश में है ही नहीं।

कहा जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव इस बार ऐतिहासिक चुनाव होने जा रहे हैं पर हर बार की तरह बदनामी की जंजीरों में जकड़ी इन सेक्स वर्करों को न्याय अब भी नहीं मिलेगा। ये ऐसे ही जीयेंगे और ऐसे ही मर जायेंगे इनकी नयी पीढ़ी फिर तैयार हो जायेगी हमारी नयी पीढ़ी के नये भेड़ियों की दावत के लिये।