चारधाम श्राइन बोर्ड गठन को लेकर सरकार व तीर्थ पुरोहित आमने-सामने

चारधाम श्राइन बोर्ड गठन को कैबिनेट की मंजूरी के बाद सरकार विधानसभा सत्र में श्राइन बोर्ड प्रबंधन विधेयक 2019 लाने की तैयारी में है, वहीं दूसरी ओर चारों धामों के तीर्थ पुरोहित व हक हकूकधारी सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं गंगोत्री मंदिर समिति के अध्यक्ष सुरेश सेमवाल ने कहा कि हम लोग वर्षों से मंदिरों की सेवा कर रहे हैं और अब सरकार द्वारा श्राइन बोर्ड के गठन के जाने की घोषणा के बाद पूरा वर्चस्व सरकार अपने हाथ में लेगी जिससे पुरोहितों की रोजी-रोटी पर संकट पड़ जाएगा साथ ही उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि आगामी विधानसभा सत्र के दौरान हजारों की संख्या में चारों धामों के पुरोहित और श्रद्धालु विधानसभा का घेराव करेंगे।
वहीं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तीर्थ पुरोहितों व हक- हकूक धारियों द्वारा जताई जा रही आशंकाओं को निराधार बताया उनका कहना है कि सभी के हक हकूक पूरी तरह सुरक्षित रखे गए हैं। परंपराओं का पूरा ध्यान रखा गया है। मंदिरों के रावल और पुजारियों की नियुक्ति पहले से चली आ रही परंपराओं के अनुसार ही की जाएगी।तीर्थ पुरोहितों के हितों को सुनिश्चित किया गया है। भावी पीढ़ी की सुविधाओं को भी संरक्षित किया जाएगा। बोर्ड में चारों धाम के पुजारियों का भी प्रतिनिधित्व होगा।चारधाम श्राइन बोर्ड के गठन के बाद चारधाम निधि का गठन भी किया जाएगा। बोर्ड गठन से चारों धाम का सुनियोजित प्रबंधन और विकास होगा। सरकार का दावा है कि इससे वर्तमान में 1939 के ब्रिटिश कालीन अधिनियम के तहत बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति, बदरीनाथ और केदारनाथ मंदिरों की व्यवस्था देखती है। जबकि गंगोत्री और यमुनोत्री के लिए अलग से समिति हैं। ये समितियां केवल अपने-अपने मंदिरों तक सीमित हैं। इससे इनमें आपस में समन्वय का अभाव रहता है। त्रिवेंद्र सरकार ने महसूस किया कि इससे चारों धाम का सुनियोजित विकास और प्रबंधन में दिक्कत आ रही है।
सरकार का दावा है कि उन्होंने वैष्णो देवी और तिरुपति बालाजी की व्यवस्थाओं का गहन अध्ययन करने के बाद चारधाम श्राइन बोर्ड का गठन करने का निर्णय लिया। अध्ययन में पाया गया कि 1986 में वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के बनने के बाद वहां की यात्रा व्यवस्थाओं में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।सरकार का अभी सारा फोकस बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री पर ही रहता है। चारों धाम के निकटवर्ती मंदिरों के लिए भी व्यवस्था नहीं थी। श्रद्धालु केवल इन्हीं के दर्शन कर लौट जाते हैं। श्राइन बोर्ड के अंतर्गत अन्य मंदिरों को लिए जाने से श्रद्धालुओं को वहां के पौराणिक महत्व के बारे में जानकारी मिलेगी। इससे लोगों के लिए आजीविका के अवसर बढ़ेंगे और स्थानीय आर्थिकी सुधरेगी। श्राइन बोर्ड के बनने के बाद चली आ रही सभी समितियां इसमें समाहित हो जाएंगी। समितियों के कर्मचारी पहले की भांति काम करते रहेंगे। बोर्ड के काम का विस्तृत दायरा होने से नए पद सृजित किए जाएंगे। इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे। इसी के साथ सभी मंदिरों का नियोजित विकास होगा।