क्या आपको पता है क्यों पूरी दुनिया मे सुर्खी बंटोर रही है भारतीय दक्षिण केंद्रीय रेलवे की "उल्टा छाता"तकनीक।

छातों का उपयोग तो हर कोई जानता है ,बारिश और तेज़ धूप तरह तरह के छाते लोग इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अब छातों से ऊर्जा और पानी को बचाने के किये "उल्टे छाते" का प्रयोग दक्षिण भारतीय रेलवे विभाग ने शुरू किया है।

भारत का दक्षिण केंद्रीय रेलवे देश के सबसे बेहतरीन रेलवे स्टेशनों में गिना जाता है,चाहे साफ सफाई  का मामला हो या पर्यावरण के अनुकूल वातावरण बनाने का मामला।दक्षिण केंद्रीय रेलवे स्टेशन 2019 में फिर चर्चाओं में आया था,दक्षिण के आंध्रप्रदेश  का गुंतकल जिला भारत का ऐसा पहला रेलवे स्टेशन बन गया है जहॉ "उल्टा छाता"तकनीक इंस्टॉल की गई है,इस तकनीक की "कैनोपी" से बारिश के मौसम में बारिश का पानी संरक्षित हो रहा है,और धूप में "उल्टा छाता" का सौर पैनल बिजली का उत्पादन भी कर रहा है। यहाँ 6 उल्टे छाते लगे हैं।


उल्टे छातों का डिजाइन ज्यामितीय कोणों के कारण इन्हें "उल्टा छाता" नाम दिया गया,इसे मॉडल 1080 भी कहा जाता है।ये पूरी दुनिया का पहला एकीकृत प्लग एंड प्ले सिस्टम है जो पानी,बिजली,और छाया का एक साथ संयोजन करता है।

इस स्टेशन की खास बात ये भी है कि यहां एक सोलर पॉवर प्लांट भी है,जिससे पूरे दिनभर में 2500 यूनिट उर्जा उत्पन्न की जाती है,और इस ऊर्जा का उपयोग स्टेशन की 37 फीसदी बिजली की मांग को पूरा करती है।इतना ही नही यहां प्लास्टिक बोतल क्रशिंग मशीन,रेनवाटर हार्वेस्टिंग पिट,बायो टॉयलेट्स,और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी हैं।स्वच्छ भारत अभियान के तहत दक्षिण केंद्रीय रेलवे विभाग बहुत सारे सराहनीय हरित कदम उठा रहा है। 2017 में भी दक्षिण केंद्रीय रेलवे स्टेशनों में सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन को इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल ,कंफेडरेशन ऑफ इंडस्ट्री ने भारत का पहला "ग्रीन रेलवे स्टेशन" का अवार्ड दिया था,इस स्टेशन में 408 किस्म के पेड़ पौधे जैविक खाद के इस्तेमाल से लगाये गए थे।इस लिस्ट में दक्षिण रेलवे का हैदराबाद के काचेगुड़ा रेलवे स्टेशन भी शामिल है जहाँ कंपोस्ट मशीन से हर दिन 125 किग्रा वेस्ट प्रोसेस किया जाता है,और क्रशिंग मशीन से 2 से 3 किग्रा वेस्ट प्लास्टिक बोतल को क्रश किया जाता है।

दक्षिण केंद्रीय रेलवे के इन प्रयासों  के नक्शे कदम पर भारत के अन्य रेलवे विभाग को भी प्रेरणा लेकर चलना चाहिए।