उत्तराखंड:कोट भ्रामरी के मंदिर का निर्माण कब व किसने किस प्रकार किया, यह आज तक रहस्य का विषय बना हुआ है।

देवभूमि उत्तराखण्ड के पग-पग पर आध्यात्मिक तीर्थ स्थलों की एवं पौराणिक महत्व के देवालयों की भरमार है। जनपद बागेश्वर के गरुड़ नामक स्थान के समीप स्थित मां कोट भ्रामरी का दरबार एक ऐसा दरबार है जहां वर्ष भर स्थानीय श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वैसे देवभूमि की गरुड़ घाटी आध्यात्मिक रूप से पुराणों में विशेष रूप से उल्लेखित है। हमारे देश के महान ऋषि-मुनियों ने सदियों से हिमालय की गोद में बसे उत्तराखण्ड को अपनी तपस्थली के रूप में चुनकर संसार में ज्ञान का जो प्रकाश बिखेरा वह देवभूमि उत्तराखण्ड की महिमा का ही सार है। इन्हीं दिव्य मन्दिरो में से भ्रामरी मंदिर उत्तराखण्ड के बागेश्वर में विराजमान हैं। भ्रामरी मंदिर में नवरात्रीयों में विशेष पूजा होती है साथ ही लोगों का मानना है की सांसारिक मायाजाल में भटका मानव यदि इन देवालयों की शरण में आता है तो समस्त व्याधियों व संतापों से मुक्ति पा जाता है।
कहा जाता है कि माता कोटभ्रामरी के दरबार में जो भी भक्तजन आराधना के श्रद्धा पुष्प अर्पित करता है उससे रोग, शोक, संताप एवं विपदाओं का हरण हो जाता है। यहां पर मांगी गई मनौती कभी भी निष्फल नहीं जाती है। यही कारण है कि क्षेत्र के भक्तजन बड़ी श्रद्धा व आस्था के साथ मां के दरबार में आकर शीश नवाते हैं तथा इच्छा पूर्ण होने के पश्चात पुनः मंगल कामना के साथ बारम्बार यहां आने की इच्छा जताते हैं। इस देवी की पूजा मूल शक्ति पीठ के रूप में विराजमान होना बताया जाता है।
शक्ति रूप में स्थित इस देवी दरबार महात्म्य के बारे में कहा जाता है कि पूर्व में यहां पर केवल माता भ्रामरी की पूजा अर्चना होती थी, लेकिन अब वर्तमान में मां भ्रामरी के साथ भगवती नन्दा की पूजा का भी विधान है। इस दरबार में अनेकों देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं लेकिन प्रमुख रूप से मां कोट भ्रामरी एवं मां नन्दा की ही पूजा अर्चना होती है।
भ्रामरी मंदिर से जुडी कहानी----------
मां भ्रामरी देवी के साथ पौराणिक दैत्य अरुण राक्षस एवं शुंभ-निशुंभ के संहार करने की कथा जुड़ी है। इस संबंध में कहा जाता है कि इस घाटी में विशाल जलाशय था जिससे होकर अरुण नामक राक्षस इस जलाशय के भीतर से अपने राज्य में प्रवेश करता था। बताते हैं कि वह राक्षस बहुत ही बलशाली व खूंखार प्रकृति का था। उसे वरदान था कि वह न तो किसी देवता न ही किसी मनुष्य न ही किसी शस्त्र से मारा जा सकता था। इस वरदान के पाते ही उसके अहंकार व अत्याचार का बीज पनपने लगा तथा उसके संताप से तीनों लोक हाहाकार मय हो उठे। त्रस्त देवताओं व मनुष्यों ने भगवान शिव की आराधना की। शिव इच्छा से आकाशवाणी हुई कि इस महा दैत्य के संहार के लिए वैष्णवी का अवतरण होगा। वही अरुण नामक महादैत्य का बध करेगी। तत्पश्चात आकाशवाणी सत्य सिद्ध हुई। महामाया जगत जननी के अलौकिक प्रताप से समूचा आकाशमंडल बड़े-बड़े भ्रमरों से गुंजायमान होकर डोल उठा। यही बड़े-बड़े भ्रामर जलाशय मार्ग से होते हुए अरुण नामक महादैत्य के राजमहल में जा पहुंचे तथा अपने विष भरे दंशों से उस पर प्रहार करने लगे। भगवती के इसी भ्रामरी रूप से अरुण नामक महा दैत्य का अन्त किया तथा सभी प्राणियों को इस आततायी के आंतक से मुक्त कराया। तभी से इस महाशक्ति को भ्रामरी नाम दिया गया। यह शक्तिपीठ यंत्र के ऊपर पूर्ण विधि विधान से स्थापित है।
जनपद बागेश्वर के गरुड़ नामक स्थान के समीप स्थित मां कोट भ्रामरी का दरबार एक ऐसा दरबार है जहां वर्ष भर स्थानीय श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वैसे देवभूमि की गरुड़ घाटी आध्यात्मिक रूप से पुराणों में विशेष रूप से उल्लेखित है। माता कोट भ्रामरी के मंदिर का निर्माण कब व किसने किस प्रकार किया, यह आज तक रहस्य का विषय बना हुआ है।