उत्तराखंड:उत्तरायणी का त्यौहार!घुघुती यानी निर्भय!चंद्र वंश में कौन थे निर्भय?इसी दिन सूर्य जाते थे शनि से मिलने!इसी दिन को चुनकर भीष्म पितामह ने त्यागा था देह!

Uttarakhand:The festival of Uttarayani! Ghughuti means Nirbhaya! Who was fearless in the Chandra dynasty? Sun used to go to meet Shani on this day! By choosing this day Bhishma Pitamah left his body!

मकर संक्रान्ति का त्यौहार वैसे तो पूरे भारत वर्ष में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है और यही त्यौहार हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम और तरीके से मनाया जाता है।  इस त्यौहार को हमारे उत्तराखण्ड में "उत्तरायणी" के नाम से मनाया जाता है। कुमाऊं में यह त्यौहार घुघुतिया के नाम से भी मनाया जाता है तथा गढ़वाल में इसे खिचड़ी संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है। यह पर्व हमारा सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है।इस पर्व पर पिथौरागढ़ और बागेश्वर को छोड़कर कुमाऊं के अन्य क्षेत्रों में आटे के घुघुत बनाये जाते हैं और अगली सुबह को कौवे को आमंत्रित कर दिए जाते है।


घुघुती त्यार (त्यौहार)मनाने के पीछे एक लोकप्रिय लोककथा है। ऐसी कथा प्रचलित है कि जब कुमाऊँ में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे, तो उस समय राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी, संतान ना होने के कारण उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। उनका मंत्री सोचता था कि राजा के मरने के बाद राज्य उसे ही मिलेगा एक बार राजा कल्याण चंद अपनी पत्नी के साथ बागनाथ मंदिर के दर्शन के लिए गए और संतान प्राप्ति के लिए मनोकामना करी और कुछ समय बाद राजा कल्याण चंद को संतान का सुख प्राप्त हो गया जिसका नाम “निर्भय चंद” पड़ा।
राजा की पत्नी अपने पुत्र को प्यार से “घुघती” के नाम से पुकारा करती थी और अपने पुत्र के गले में “मोती की माला” बांधकर रखती थी। मोती की माला से निर्भय का विशेष लगाव हो गया था इसलिए उनका पुत्र जब कभी भी किसी वस्तु की हठ करता तो रानी अपने पुत्र निर्भय को यह कहती थी कि “हठ ना कर नहीं तो तेरी माला कौओ को दे दूंगी। उसको डराने के लिए रानी “काले कौआ काले घुघुती माला खाले” बोलकर डराती थी। ऐसा करने से कौऐ आ जाते थे और रानी कौओ को खाने के लिए कुछ दे दिया करती थी। धीरे धीरे निर्भय और कौओ की दोस्ती हो गयी। दूसरी तरफ मंत्री घुघुती(निर्भय) को मार कर राज पाठ हडपने की उम्मीद लगाये रहता था ताकि उसे राजगद्दी प्राप्त हो सके।

एक दिन मंत्री ने अपने साथियो के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा घुघुती (निर्भय) जब खेल रहा था तो मंत्री उसे चुप चाप उठा कर ले गया। जब मंत्री घुघुती (निर्भय) को जंगल की ओर ले जा रहा था तो एक कौए ने मंत्री और घुघुती(निर्भय) को देख लिया और जोर जोर से कॉव-कॉव करने लगा। यह शोर सुनकर घुघुती रोने लगा और अपनी मोती की माला को निकालकर लहराने लगा उस कौवे ने वह माला घुघुती(निर्भय) से छीन ली। उस कौवे की आवाज़ को सुनकर उसके साथी कौवे भी इक्कठा हो गए एवम् मंत्री और उसके साथियो पर नुकली चोंचो से हमला कर दिया। हमले से घायल होकर मंत्री और उसके साथी मौका देख कर जंगल से भाग निकले।राजमहल में सभी घुघुती(निर्भय) की अनूपस्थिति से परेशान थे। तभी एक कौवे ने घुघुती(निर्भय) की मोती की माला रानी के सामने फेक दी यह देख कर सभी को संदेह हुआ कि कौवे को घुघुती(निर्भय) के बारे में पता है इसलिए सभी कौवे के पीछे जंगल में जा पहुंचे और उन्हें पेड़ के निचे निर्भय दिखाई दिया उसके बाद रानी ने अपने पुत्र को गले लगाया और राज महल ले गयी। 

जब राजा को यह पता चला कि उसके पुत्र को मारने के लिए मंत्री ने षड्यंत्र रचा है तो राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्यु दंड दे दिया। घुघुती के मिल जाने पर रानी ने बहुत सारे पकवान बनाये और घुघुती से कहा कि अपने दोस्त कौवो को भी बुलाकर खिला दे और यह कथा धीरे धीरे सारे कुमाउं में फैल गयी और इस त्यौहार ने बच्चो के त्यौहार का रूप ले लिया। तब से हर साल इस दिन धूम धाम से इस त्यौहार को मनाया जाता है। इस दिन मीठे आटे से जिसे घुघुते भी कहा जाता है। उसकी माला बनाकर बच्चों द्वारा कौवों को खिलाया जाता हैं।

शास्त्रों के अनुसार घुघुतिया त्यौहार की ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते है इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति के नाम से ही जाना जाता हैं।

महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपने देह त्याग ने के लिए मकर सक्रांति का ही दिन चुना था। यही नहीं यह भी कहा जाता है कि मकर सक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथी के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी। साथ ही साथ इस दिन से सूर्य उत्तरायण की ओर प्रस्थान करता है, उत्तर दिशा में देवताओं का वास भी माना जाता है इसलिए इस दिन जप-तप, दान-स्नान, श्राद्ध-तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व हैं।

इस त्यौहार को उत्तराखंड में उत्तरायणी के नाम से मनाया जाता है एवम् गढ़वाल में इसे पूर्वी उत्तरप्रदेश की तरह खिचड़ी सक्रांति के नाम से मनाया जाता है। विश्व में पशु पक्षियों से सम्बंधित कई त्योहार मनाये जाते हैं पर कौओं को विशेष व्यंजन खिलाने का यह अनोखा त्यौहार उत्तराखण्ड के कुमाऊँ के अलावा शायद कहीं नहीं मनाया जाता है। यह त्यौहार विशेष कर बच्चो और कौओ के लिए बना है। इस त्यौहार के दिन सभी बच्चे सुबह सुबह उठकर कौओ को बुलाकर कई तरह के पकवान खिलाते है और कहते है-काले कौओ काले घुघुती बड़ा खाले,
लै कौआ बड़ा, आपु सबुनी के दिए सुनक ठुल ठुल घड़ा,
रखिये सबुने कै निरोग, सुख समृधि दिए रोज रोज।”

 

 

 

 

 

 

 

 

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