उत्तराखंड स्पेशल:कुमाऊं और गढ़वाल मंडल के इन स्थानों के नामों के अंत मे खाल शब्द क्यो जुड़ा है? जानिए उत्तराखंड की इस विशेषता को

Uttarakhand Special: Why is the word 'Khal' attached at the end of the names of these places of Kumaon and Garhwal divisions? Know this specialty of Uttarakhand

आवाज़24x7 इंडिया के पिछले आर्टिकल में आपने देवभूमि उत्तराखंड की उन जगहों के बारे में पढ़ा था जिनके नामों के अंत मे खान लगा हुआ है। इस बार हम आपको उत्तराखंड के उन स्थानों के बारे में बताएंगे जिनके नामों के अंत मे खाल लगा हुआ है। यूं तो आम बोलचाल की भाषा मे खाल का अर्थ त्वचा होता है, लेकिन उत्तराखंड में जगहों के नामों के अंत मे जो "खाल" शब्द जुड़ा है उसका अर्थ कुछ और है। उत्तराखंड में दो मण्डल है , कुमाऊं और गढ़वाल। इन दोनों ही मंडलों में जब किसी स्थान के नाम के साथ "खाल" जुड़ जाता है तो उसका अर्थ भूमि की एक खास तरह की स्थिति होती है। कुमाऊं और गढ़वाल में इस "खाल" शब्द का अर्थ अलग अलग ज़रूर है लेकिन ये शब्द भूमि से ही जुड़ा है।
कुमाऊं मंडल में किसी स्थान के साथ जब "खाल" जोड़ा जाता है जो इसका अर्थ पहाड़ी के बीच उस समतल (प्लेन)ज़मीन के लिए होता है जहां उस जमीन की नीचाई की वजह से वहां पानी इक्कठा हो जाता है। ऐसी कई जगहों पर आप एक न एक बार तो ज़रूर गए होंगे। कुमाऊं की इन जगहों में घोड़ाखाल सिर्फ उत्तराखंड ही नही बल्कि पूरे भारत मे प्रसिद्ध है क्योंकि यहां उत्तराखंड के गोल्ज्यू देवता के मंदिर के साथ-साथ देश की जांबाज भारतीय सेना भी तैयार की जाती है। जी हां आप बिल्कुल सही समझे, हम घोड़ाखाल सैनिक स्कूल की ही बात कर रहे हैं। घोड़ाखाल के अलावा कुमाऊं मंडल में सुंदरखाल,हाथीखाल,बुंगाखाल, गढ़िया खाल,बरहा खाल,देवीखाल, गैंडा खाल इत्यादि जगह प्रसिद्ध है। 
वही गढ़वाल मंडल में जिन स्थानों के नामो के साथ "खाल" जुड़ा है उसका अर्थ ऐसे भूभाग से है जो पहाड़ी के शिखर यानी पहाड़ी की चोटी के नजदीक होता है साथ ही गहरा और समतल होने के वजह से इस स्थान से पहाड़ के दोनों ओर के भूभाग को आसानी से देखा जा सकता है। गढ़वाल मंडल के इन स्थानों में द्वारी खाल,केतखाल, खजीरी खाल,जेहरी खाल, कसरकसखाल,किनगोड़ी खाल,बिरुखाल, हिंडोल खाल,चौबट्टाखाल, कल्जी खाल,बुवा खाल,मठाणखाल,रिखड़ी खाल,सौराखाल,पांडुआ खाल,कालिंदी खाल,इत्यादि प्रसिद्ध है।