यूपी उपचुनाव: नुकसानदेह साबित हुई सपा के लिए कांग्रेस से दूरी! भाजपा ने उठा लिया फायदा,चल गया योगी का बटेंगे तो कटेंगे का नारा
यूपी के विधानसभा की नौ सीटों के उपचुनाव परिणाम ने साबित कर दिया कि सपा को कांग्रेस से दूरी भारी पड़ी है। उपचुनाव में तमाम प्रयास के बाद भी विपक्ष सियासी ऊर्जा नहीं बना पाया। इससे दलित और अति पिछड़े वर्ग के वोटों में बिखराव हुआ। भाजपा ने इसका फायदा उठाया। इस चुनाव परिणाम ने यह भी संदेश दिया है कि विपक्ष की गोलबंदी के लिए कांग्रेस का सियासी रसायन जरूरी है। वही प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव की परीक्षा में भाजपा को सात सीटों पर मिली जीत न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं को हताशा से उबारेगी, बल्कि 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा का सहारा भी बनेगी। खासतौर से मुरादाबाद की कुंदरकी और अयोध्या से सटी अंबेडकरनगर की कटेहरी जैसी सीटों पर तीन दशक बाद कमल का खिलना न सिर्फ भाजपा नेता व कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने वाला है, बल्कि जनता के बीच भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में मददगार साबित होगा। इतना ही नहीं इसके साथ योगी का बटेंगे तो कटेंगे नारा कामयाब रहा है। इसने हिंदुओं में चेतना पैदा की है। जिससे हिंदुत्व जीत रहा है और जाति हार रही है। यूपी के उपचुनाव और ताजा चुनाव परिणामों को यह भी माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को हुए का नुकसान की भरपाई करते हुए जनता ने यह संदेश देने की भी कोशिश की है कि राष्ट्रहित में अब वे न बटेंगे न कटेंगे।
नौ सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने पांच सीटें मांगी थी, लेकिन सपा ने सिर्फ खैर और गाजियाबाद दी। कांग्रेस ने चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया। सपा अकेले मैदान में रही। दोनों दल दावा करते रहे कि सभी कार्यकर्ता पूरे मनोयोग से मैदान में डटे हैं। सपा ने गाहे-बहागे अपने पोस्टल बैनर पर कांग्रेस नेताओं की भी तस्वीरें लगाईं, लेकिन हकीकत यह रही कि गाजियाबाद छोड़़कर अन्य किसी भी जनसभा में कांग्रेस के नेता सपा के मंच पर नजर नहीं आए। कांग्रेस नेताओं ने दबी जुबान से यह स्वीकार किया कि उन्हें बुलाया ही नहीं गया। सम्मान और स्वाभिमान खतरे में देख संगठन के जुड़े ज्यादातर नेता पहले वायनाड और फिर महाराष्ट्र के चुनाव में चले गए। राहुल गांधी एक भी जनसभा उत्तर प्रदेश में नहीं हो सकी। इसका सीधा असर सियासी ऊर्जा पर पड़ा। लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने संविधान, जाति गणना, आरक्षण सीमा बढ़ाने जैसे मुद्दे उठाकर दलितों और अति पिछड़ी जातियों को गोलबंद किया था। सियासी जानकारों का कहना था कि सपा को उम्मीद थी कि यह गोलबंदी कायम रहेगी, लेकिन कांग्रेस नेताओं के साथ नहीं रहने से दलितों में संशय रहा। वोटों का बिखराव हुआ। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला। सामाजिक चेतना फाउंडेशन न्यास के अध्यक्ष पूर्व जिला जज बीडी नकवी कहते हैं कि विपक्षी एकजुटता नहीं होने से भाजपा का हौसला बुलंद रहा। तमाम सीटों पर अल्पसंख्यक बूथ तक नहीं पहुंच पाए। इसका भी नुकसान हुआ है। हाईकोर्ट के अधिवक्ता महेंद्र मंडल कहते हैं कि उपचुनाव के परिणाम देखें तो मीरापुर में 30 हजार से रालोद उम्मीदवार विजयी रहा, जबकि यहां आजाद समाज पार्टी करीब 22 हजार और आल इंडिया मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमईआईएम) को 18 हजार वोट मिले। यदि विपक्ष एकजुट रहता तो यह सीट आसानी से जीती जा सकती थी। कुंदरकी में भी आजाद समाज पार्टी को 14 हजार और एआईएमईआईएम को आठ हजार वोट मिला। इसी तरह कटेहरी में भाजपा 34514 वोट से विजेता रही, जबकि यहां बसपा करीब 41 हजार और आजाद समाज पार्टी करीब पांच हजार वोट हासिल की। फूलपुर में 11 हजार से भाजपा जीती तो यहां बसपा करीब 20 हजार आजाद समाज पार्टी करीब 4500 और कांग्रेस से बगावत कर मैदान में निर्दल उतरे सुरेश यादव 1300 वोट हासिल किए। यही हाल अन्य सीटों पर भी रहा है।