बेलगाम शिक्षा व्यवस्था: निजी स्कूलों में किताबों पर कमीशन का खेल शुरू,बुक सेलर दे रहे हैं लाखों का लालच,शिक्षा विभाग अनजान

Unbridled education system: The game of commission on books has started in private schools, book sellers are luring lakhs of rupees, education department is unaware.

शिक्षा विभाग का नया सत्र आरंभ होने में अभी लगभग तीन माह का समय बाकि है, लेकिन निजी स्कूलों में तैयारियां आरंभ हो चुकी हैं। शहर के सड़कों और गलियों में दाखिला शुरू होने के होर्डिंग लगने आरंभ हो चुके हैं। वहीं निजी स्कूलों में बच्चों के लिए किताबें, ड्रेस, बेल्ट, ब्लेजर बेचने के लिए विभिन्न दुकानदारों  के प्रतिनिधि स्कूल संचालकों के साथ मिलकर सांठ-गांठ में जुट गए हैं। एक तरफ जहां मोटा कमीशन का खेल शुरू करने की तैयारियां हो रही हैं, वहीं दूसरी तरफ शिक्षा विभाग हमेशा की तरह सुस्त पड़ा हुआ है। विभाग की इस सुस्ती के कारण अभिभावकों को इस वर्ष भी इन स्कूलों के चंगुल से छुटकारा मिलने की संभावना नहीं दिखाई दे रही हैं।


रुद्रपुर में निजी स्कूलों की मनमानी कार्यप्रणाली से अभिभावकों को हर वर्ष भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसमें से कुछ स्कूल जहां बच्चों को स्कूल के अंदर से ही किताब और ड्रेस आदि लेने के लिए मजबूर करते हैं, तो कुछ स्कूल शहर के एक-दो चुनिंदा किताब से सांठ-गांठ कर अभिभावकों को इन्हीं दुकानों से किताब खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। हर वर्ष इन स्कूलों के द्वारा सिलेबस भी बदल दिए जाते हैं। ऐसे में पुरानी किताबें एक ही घर के बच्चे आगे-पीछे की कक्षाओं में होने के बाद भी उपयोग नहीं कर पाते। किताबों के अलावा निजी स्कूलों में टाई, बेल्ट, ड्रेस, जूते-मोजे, बैच, ब्लेजर खरीद पर भी खुलेआम कमीशन का खेल चलता है। इनके लिए भी स्कूलों की तरफ से दुकानें निर्धारित हो जाती हैं। इन दुकानों पर अभिभावकों को अधिक मूल्य पर सभी समान बेचे जाते हैं। अभिभावक भी बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखकर स्कूल के खिलाफ कुछ नहीं बोलते। वहीं शिक्षा विभाग का यह तर्क होता है कि, अभिभावकों की तरफ से शिकायत नहीं मिलती, शिकायत मिले तो कार्रवाई की जाएगी। शिक्षा विभाग प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें हटाने को लेकर आज तक कोई ठोस पॉलिसी तैयार नहीं कर पाया है। प्रशासन के आला अधिकारी आंखें बंद किए हुए हैं। लोगों का मानना है कि प्राइवेट स्कूल प्रबंधकों के खिलाफ विभाग के अधिकारी कोई भी कार्रवाई करने से डरते हैं। 

वही अधिकांश निजी स्कूल संचालक राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीइआरटी) की किताबें मंगाने में रुचि नहीं दिखाते। जिले में करीब तीन सौ निजी विद्यालयों में से 80 फीसदी विद्यालयों में निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें पढ़ाई जाती हैं। इन किताबों की कीमत एनसीइआरटी से कई गुणा अधिक होती हैं। कई किताबों में तो प्रिंट रेट के ऊपर अलग से प्रिंट स्लिप चिपकाकर प्रकाशित मूल्य से कहीं अधिक वसूली की जाती है। निजी स्कूलों में कमीशन के चक्कर में हर साल किताबें बदलने के साथ अलग अलग प्रकाशकों की महंगी किताबें लगाई जाती हैं अभिभावक भी बच्चों के भविष्य को लेकर ज्यादा विरोध नहीं कर पाते। एनसीआरटी की किताबों में पुस्तक विक्रेताओं को मात्र 15 से 20 फीसद ही कमीशन मिलता है। जबकि अन्य प्रकाशकों से 40 से 60 फीसदी तक कमीशन देते हैं। इसके अलावा स्टेशनरी के ऑफर अलग मिलते हैं। एक पुस्तक विक्रेता ने बताया कि, इस मोटे कमीशन के लालच में स्कूल संचालक प्रकाशकों से सीधा डील कर सीधे स्कूलों में ही किताबें मंगा लेते हैं जिससे पुस्तक विक्रेताओं को मिलने वाली पांच से दस फीसदी का कमीशन भी निजी स्कूलों को मिलता है। या फिर स्कूल द्वारा निर्धारित किए गए पुस्तक विक्रेताओं से अपना कमीशन प्राप्त करते हैं। प्रतिवर्ष होने वाले इस खेल में ही स्कूल संचालकों को लाखों का फायदा होता है। स्कूल संचालकों को पुस्तकों को लेकर पहले भी रूटीन में गाइड लाइन जारी किया जा चुका है। जल्द ही फिर से सभी स्कूलों को लेटर जारी किया जाएगा। शिक्षा विभाग पूरी स्थिति पर नजर बनाए हुए है अगर स्कूल इस तरह के कार्यों में संलिप्त पाए गए तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी।