किताबों पर कमीशन का खेल शुरू! फिर अभिभावकों को लूटने की तैयारी, सीएम धामी के फरमान को पलीता, वायरल लेटर ने उठाए सवाल
हर साल सरकार के प्रतिबंधों के बावजूद प्राइवेट स्कूलों में निजी प्रकाशकों की पुस्तकों का चलन बंद होने का नाम नहीं ले रहा है। मांटेसरी स्कूलों में भी एनसीईआरटी की पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल करने का फरमान पूरी तरह से हवाई साबित हो रहा है। करीब सभी मांटेसरी स्कूलों में निजी प्रकाशकों की पुस्तकें चलाई जाती हैं, जो बाजारों में तय दुकानों पर ही मिलती हैं। पुस्तक विक्रेता स्कूल संचालकों को मोटा कमीशन देकर अभिभावकों की जेबों पर डाका डालने से बाज नहीं आते हैं। कई स्कूल स्वयं बच्चों को कापियां-किताबें व ड्रेस देकर अधिक दाम वसूलते हैं। अफसरों भी स्कूलों को मान्यता देने के बाद वहां संचालित पाठ्यक्रमों व अन्य संसाधनों की जांच करना मुनासिब नहीं समझते है। इससे शिक्षा के नाम पर धन उगाही का कारोबार धड़ल्ले से हर साल बिना किसी रोक टोक फल-फूलता है। ऐसे में मुख्यमंत्री धामी का फरमान जिले के स्कूल संचालकों की मनमानी के सामने दम तोड़ता नजर आता है। बात शुरू करते हैं जनपद ऊधम सिंह नगर के जिलामुख्यालय रुद्रपुर से जहां इन दोनों सोशल मीडिया के माध्यम से एक लेटर एक बुक सेलर का लेटर खूब चर्चाओं में बना हुआ है जिसमें खुलेआम किताबों पर मोटे कमीशन और लालच के खुले खेल का भंडाफोड़ हुआ है। इस लेटर में खुलेआम कई आकर्षित लालच के साथ-साथ साफ तौर पर किताबों पर 60प्रतिशत कमिशन की बात लिखी हुई है जो कॉपी किताबों पर कमीशन के खेल को उजागर कर रहा है।
एक जिम्मेदार न्यूज़ पोर्टल होने के नाते जब हमने वायरल लेटर की जांच पड़ताल के लिए कई विद्यालयों में पहुंचे जहां पर ऐसा ही लेटर मौजूद था नाम न छापने के शर्त पर विद्यालयों के टीचर और प्रबंधकों ने शहर के एक बुक सेलर द्वारा उनको लेटर देने के बात सच बताई गई है। आपको बात दे कि शिक्षा विभाग का नया सत्र आरंभ होने में अभी लगभग तीन माह का समय बाकि है, लेकिन निजी स्कूलों में तैयारियां आरंभ हो चुकी हैं। और शहर के छोटे बड़े स्कूलों में दाखिला लेने की प्रक्रिया भी शुरू होने के होर्डिंग लगने आरंभ हो चुके हैं। निजी स्कूलों में बच्चों के लिए किताबें, ड्रेस, बेल्ट, ब्लेजर बेचने के लिए विभिन्न दुकानदारों के प्रतिनिधि स्कूल संचालकों के साथ मिलकर सांठ-गांठ में जुट गए हैं। एक तरफ जहां मोटा कमीशन का खेल शुरू करने की तैयारियां हो रही हैं, वहीं दूसरी तरफ शिक्षा विभाग हमेशा की तरह सुस्त पड़ा हुआ है। विभाग की इस सुस्ती के कारण अभिभावकों को इस वर्ष भी इन स्कूलों के चंगुल से छुटकारा मिलने की संभावना नहीं दिखाई दे रही हैं।
रुद्रपुर में निजी स्कूलों की मनमानी कार्यप्रणाली से अभिभावकों को हर वर्ष भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसमें से कुछ स्कूल जहां बच्चों को स्कूल के अंदर से ही किताब और ड्रेस आदि लेने के लिए मजबूर करते हैं, तो कुछ स्कूल शहर के एक-दो चुनिंदा किताब से सांठ-गांठ कर अभिभावकों को इन्हीं दुकानों से किताब खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। हर वर्ष इन स्कूलों के द्वारा सिलेबस भी बदल दिए जाते हैं। ऐसे में पुरानी किताबें एक ही घर के बच्चे आगे-पीछे की कक्षाओं में होने के बाद भी उपयोग नहीं कर पाते। किताबों के अलावा निजी स्कूलों में टाई, बेल्ट, ड्रेस, जूते-मोजे, बैच, ब्लेजर खरीद पर भी खुलेआम कमीशन का खेल चलता है। इनके लिए भी स्कूलों की तरफ से दुकानें निर्धारित हो जाती हैं। इन दुकानों पर अभिभावकों को अधिक मूल्य पर सभी समान बेचे जाते हैं। अभिभावक भी बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखकर स्कूल के खिलाफ कुछ नहीं बोलते। वहीं शिक्षा विभाग का यह तर्क होता है कि, अभिभावकों की तरफ से शिकायत नहीं मिलती, शिकायत मिले तो कार्रवाई की जाएगी। शिक्षा विभाग प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें हटाने को लेकर आज तक कोई ठोस पॉलिसी तैयार नहीं कर पाया है। प्रशासन के आला अधिकारी आंखें बंद किए हुए हैं। लोगों का मानना है कि प्राइवेट स्कूल प्रबंधकों के खिलाफ विभाग के अधिकारी कोई भी कार्रवाई करने से डरते हैं।
किताबों पर कमीशन के खेल का आंकड़ों में उदाहरण
मान लीजिए एक निजी स्कूल में मात्र 200 बच्चे हैं। और सबसे छोटी कक्षा के एक बच्चे के किताब का लगभग खर्च 2000 है।
स्कूल में बच्चों की संख्या एक सेट किताब का मूल्य कुल मूल्य
1 2000 1x 2000=2000
200 2000 200 x 2000=400000 (चार लाख रुपए)
500 2000 500 x 2000=1000000 ( दस लाख रुपए)
एक स्कूल को कितना मिलता है कमीशन
400000 (चार लाख) पर 50 प्रतिशत = 200000
400000 (चार लाख) पर 60 प्रतिशत = 240000
1000000(दस लाख रुपए) पर 50 प्रतिशत= 500000
1000000(दस लाख रुपए) पर 60 प्रतिशत= 600000