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CJI पर भगवान विष्णु को लेकर विवादित टिप्पणी करने से नाराज़ होकर जूता फेंकने की कोशिश करने वाले एडवोकेट को बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने किया निलंबित।

The Bar Council of India has suspended an advocate who tried to throw a shoe at the CJI after he made a controversial remark about Lord Vishnu.

विष्णु भगवान पर टिप्पणी करने के पर CJI पर जूता फेंकने की कोशिश करने के मामले में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने वकील राकेश किशोर के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए उनकी वकालत पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। राकेश किशोर ने 6 अक्टूबर, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) न्यायमूर्ति बीआर गवई की ओर जूता फेंकने का प्रयास किया। यह घटना उस समय हुई, जब सीजेआई गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ एक मामले की सुनवाई कर रही थी।  

घटना सुबह करीब 11:35 बजे सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट रूम-1 में घटी। दिल्ली बार काउंसिल के पंजीकृत वकील राकेश किशोर (71 वर्ष), जो दिल्ली के मयूर विहार के निवासी हैं, ने अचानक अपना जूता निकाला और उसे सीजेआई की ओर उछालने की कोशिश की। हालांकि, उनका यह प्रयास विफल रहा, क्योंकि जूता पीठ तक नहीं पहुंचा। जैसे ही किशोर डाइस की ओर बढ़े, सतर्क सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत उन्हें रोक लिया और कोर्ट रूम से बाहर ले गए। इस दौरान किशोर के यह कहने की बात सामने आई कि “सनातन का अपमान नहीं सहेंगे।” सूत्रों के अनुसार, वे हाल ही में भगवान विष्णु की मूर्ति की पुनर्स्थापना से जुड़े एक मामले में सीजेआई की टिप्पणी से नाराज थे।  

इस घटना के बाद सीजेआई गवई ने शांति बनाए रखते हुए कहा, “इस तरह की घटनाओं से विचलित होने की जरूरत नहीं है। हमारा ध्यान न्याय पर केंद्रित रहता है, और ऐसी बातें हमें प्रभावित नहीं करतीं।” उनकी इस प्रतिक्रिया ने न्यायालय की गरिमा को और उजागर किया।  

 

बीसीआई ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए त्वरित कार्रवाई की। बीसीआई के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा ने एक अंतरिम आदेश जारी कर राकेश किशोर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। आदेश में स्पष्ट किया गया कि किशोर का यह व्यवहार न केवल न्यायालय की मर्यादा के खिलाफ है, बल्कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत निर्धारित पेशेवर आचार संहिता का भी घोर उल्लंघन है। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें भारत के किसी भी न्यायालय, प्राधिकरण या अधिकरण में वकालत करने, मुकदमों में पैरवी करने या किसी भी रूप में पेश होने से पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है।