सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला! पति के साथ रहने से इनकार करने वाली पत्नी भी गुजारा भत्ता पाने की हकदार, बशर्ते की...

Supreme Court gave a big decision! A wife who refuses to live with her husband is also entitled to receive maintenance, provided...

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि पति के साथ रहने से इनकार करने वाली पत्नी भी गुजारा भत्ता पाने की हकदार है, बशर्ते कि महिला के पास पति के साथ रहने से इनकार करने का वैध और पर्याप्त कारण हो। सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने इस सवाल पर कानूनी विवाद का निपटारा किया कि क्या वैवाहिक अधिकारों की फिर से बहाली का आदेश पाने वाला पति कानून के अनुसार पत्नी को भरण-पोषण देने से मुक्त हो जाता है, यदि उसकी पत्नी साथ रहने के आदेश का पालन करने और ससुराल लौटने से इनकार कर देती है। जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने झारखंड हाईकोर्ट के अगस्त 2023 के फैसले को खारिज कर दिया। इसमें महिला को भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया गया था। क्योंकि, वह महिला वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश के बावजूद अपने पति के साथ रहने नहीं आई। कोर्ट के पास यह तथ्य रखे गए थे कि पति लगातार अपनी पत्नी के साथ बुरा बर्ताव करता था। कोर्ट ने कहा कि उसके वापस न आने की वजह काफी अच्छी थी। कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह अगस्त 2019 में आवेदन करने के दिन से भरण-पोषण का भुगतान करे।

क्या है पूरा मामला?
अब पूरे मामले पर गौर करें तो एक जोड़े की शादी 1 मई 2014 को हुई थी, लेकिन अगस्त 2015 में उनका रिश्ता टूट गया। पति ने दावा किया कि पत्नी 21 अगस्त 2015 को उसका घर छोड़कर चली गई और फिर कभी वापस नहीं लौटी। पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए रांची में पारिवारिक न्यायालय में याचिका दायर की। पत्नी ने कोर्ट को बताया कि उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और उससे 5 लाख रुपये की मांग भी की गई। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके पति का विवाहेतर संबंध था और 2015 में गर्भपात होने के बाद भी वह उनसे मिलने नहीं गए।

फैमिली कोर्ट ने साथ रहने का दिया था आदेश
पत्नी ने यह भी कहा कि वह वापस जाने को तैयार हैं, लेकिन शर्तों के साथ। उसे घर के टॉयलेट का इस्तेमाल करने और खाना पकाने के लिए लकड़ी के चूल्हे या कोयले के चूल्हे के बजाय गैस का चूल्हे का इस्तेमाल करने की इजाजत दी जानी चाहिए। 23 मार्च 2022 को फैमिली कोर्ट ने दोनों को साथ रहने का आदेश दिया, लेकिन पत्नी ने उस आदेश का पालन नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने भरण-पोषण के लिए झारखंड हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि चूंकि पत्नी ने सहवास आदेश का पालन नहीं किया था और आदेश के खिलाफ अपील नहीं की थी, इसलिए वह भरण-पोषण की हकदार नहीं थी।

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट का आदेश किया रद्द
इसके खिलाफ पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी की अपील स्वीकार कर ली। वहीं, मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा था कि भरण-पोषण को लेकर फैसला मामले की विशिष्ट परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। साथ रहने या न रहने पर नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और फैमिली कोर्ट के 10 हजार रुपये भरण-पोषण के आदेश को बहाल कर दिया। गुजारा भत्ता का बकाया तीन किस्तों में देना होगा।