व्यंग: कुमाऊँ यूनिवर्सिटी नहीं करायत यूनिवर्सिटी कहिए जनाब ! यही तो बना दिया है ..

Satire: Call it Karayat University, not Kumaon University, sir! This is what I have made..

कुमाऊँ यूनिवर्सिटी जिसका उत्तराखंड के शैक्षणिक विकास में एक अहम योगदान रहा है। आज वही यूनिवर्सिटी चंद लोगों के राजनैतिक रसूख के चलते विवादों में आ चुकी है। आलम ये है कि यूनिवर्सिटी के कुलपति खामोशी के साथ तमाशा देख रहे है। आवाज़ इंडिया और कुछ न्यूज चैनलों ने कुलसचिव के पद ग्रहण करने से ठीक एक दिन पहले हुए 36 ट्रांसफर और डॉ महेंद्र सिंह राणा की अवैध नियुक्ति पर ख़बर लगाई थी।

यूनिवर्सिटी में सहायक के तौर पर कार्य करने वाले भूपाल सिंह करायत जो कि कई बार विवि शिक्षणेत्तर कर्मचारी संघ के सचिव प्रदेश संरक्षक और वर्तमान में उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष हैं, यही नहीं राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य अखिल भारतीय विश्वविद्यालय कर्मचारी महासंघ और राज्य आंदोलनकारी भी है। इन्होंने आवाज़ इंडिया पर झूठी और भ्रामक ख़बर चलाने के लिए पहले संपादक को विधिक नोटिस भेजा, जिसमें इन्होंने ख़बर का खंडन करते हुए कहा कि 36 कर्मचारियों के ट्रांसफर में उनका कोई रोल नहीं है क्योंकि वो केवल एक सहायक के तौर पर कार्य कर रहे हैं जबकि सूत्रों के अनुसार विवि में कुलपति के करीबी होने और राजनैतिक रसूख के चलते अधिकतर निर्णयों में भूपाल सिंह करायत की सलाह लेते हैं, इसलिए कुलसचिव के आने से पहले कार्यवाहक कुलसचिव प्रो. अतुल जोशी ने भूपाल सिंह करायत की सलाह पर 36 कर्मचारी इधर से उधर कर दिए जिनमें कई कर्मचारी ऐसे हैं जिनके ट्रांसफर कुछ ही महीने पहले किए गए थे।

जानकारी के अनुसार, कार्यवाहक कुलसचिव न तो नियुक्ति कर सकते हैं और न ही ट्रांसफर, लेकिन वर्तमान कुलपति डॉ0 मंगल सिंह मंद्रवाल के ज्वाइन करने से ठीक एक दिन पहले किये गए 36 ट्रांसफर कहीं न कहीं भूपाल सिंह करायत और कार्यवाहक कुलसचिव प्रो. अतुल जोशी की आपसी सांठगांठ दर्शाता है। प्रो. अतुल जोशी के साथ भूपाल सिंह करायत की दोस्ती पूरे विवि में फेमस है और एक समय में दोनों साथ काम भी कर चुके हैं, इसलिए भीमताल कैंपस में हुए दीक्षारम्भ कार्यक्रम में मुख्य अतिथि अतुल जोशी के साथ भूपाल सिंह करायत मंच पर होस्ट करते हुए दिखाई पड़ते है।

भूपाल सिंह करायत जो एक तरफ ख़बर का खंडन करते हुए कहते हैं कि आवाज़ इंडिया ने उन्हें भ्रष्ट कहा है और उनकी प्रतिष्ठा में दाग लगाया है, जबकि ख़बर विवि के ही सूत्रों और आरटीआई पर आधारित थी जिसमें विवि में मानकों को ताक में रखकर की गई अवैध नियुक्तियों और भूपाल सिंह करायत की दखलअंदाजी का खुलासा किया गया था। भूपाल सिंह करायत जो एक सहायक के तौर पर कार्य करते हुए ट्रांसफर मामले में खुद को ही क्लीन चिट देते हैं और व्यक्तिगत मानहानि की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ आज आवाज़ इंडिया ग्रुप पर कार्यवाही कराने के लिए अपने राजनैतिक रसूख का उपयोग करते हुए विवि का कार्य ठप्प करवाकर सभी कर्मचारियों को आंदोलन पर बैठा देते हैं और कुलपति प्रो. दीवान सिंह रावत खामोशी के साथ आंदोलन होने का तमाशा देखते रहते हैं।

 

इससे अधिक विवि की छवि क्या धूमिल होगी जब एक व्यक्ति विवि के वीसी से ऊपर हो जाता है जो विवि में केवल एक सहायक के तौर पर कार्यरत है लेकिन तमाम संगठनों में पदाधिकारी बना हुआ है वो पूरे विवि के काम को ठप्प करवाकर चौथे स्तम्भ के खिलाफ कार्यवाही की बात करता है और विवि के कुलपति प्रो0  दीवान सिंह रावत जो भ्रष्टाचार मुक्त विवि बनाने की बात करते हैं वो ही अवैध नियुक्तियों और राजनैतिक रसूखदारों के आगे नतमस्तक दिखाई देते हैं। 

एक वर्ष पहले कुमाऊँ यूनिवर्सिटी में कुलपति की नियुक्ति में होने वाली धान्दली पर आवाज़ इंडिया ने ख़बर प्रकाशित की थी जिसमें अलकनंदा अशोक (पूर्व डीजीपी अशोक कुमार की पत्नी) और अवैध नियुक्ति पाए हुए डॉ. पी.एस.बिष्ट नाम कुलपति की दौड़ में था लेकिन ख़बर प्रकाशित होने के बाद प्रो. दीवान सिंह रावत जो महज 52 वर्ष के हैं, को कुमाऊँ विवि का कुलपति बनाया गया।



कुलपति बनने के बाद प्रो. दीवान सिंह रावत के कुछ निर्णयों से लगा कि अब वास्तव में कुमाऊँ विवि के दिन बहूरेंगे लेकिन वर्तमान हालात ये हैं कि चुनाव न हो पाने की वजह से कहीं शिक्षा मंत्री डॉ0 धन सिंह रावत की सांकेतिक अर्थी निकल रही है तो कहीं राजनैतिक रसूख वाले अपने निजी स्वार्थ के लिए विवि को कठपुतली बनाए हुए है, जब जी चाहे विवि का काम बंद करवा दो और जो भी पत्रकार अवैध नियुक्ति फर्जीवाड़े के खिलाफ लिखे उसे विवि की प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर कर्मचारियों को धरने पर बिठा दो। ऐसे में कुमाऊँ विवि में पढ़ने आने वाले छात्रों का भविष्य विवि के प्रोफेसर नहीं बल्कि ऐसे लोग तय करेंगे जो राजनैतिक रसूख के चलते विवि में मनमानी करते है और अवैध नियुक्ति पाए हुए भ्रष्ट कर्मचारियों के खिलाफ आंदोलन करने की बजाय उन्हे प्रोटेक्ट करते हैं।