‘गुरुजी पढ़ा रहे मुख्यमंत्री का नाम अरविन्द पांडे’ का खुलासा करने पर पत्रकारों को भेजा था जेल! सात साल बाद मिला न्याय, कोर्ट ने किया दोषमुक्त

काशीपुर। न्यायिक मजिस्ट्रेट, जसपुर मनोज सिंह राणा की कोर्ट ने साक्ष्यों के आभाव में थाना कुण्डा, मिस्सरवाला निवासी अजीम, काशीपुर निवासी मो. अजहर, राजेश कुमार शर्मा और आईटीआई थाना निवासी योगेश शैली को दोषमुक्त कर दिया है। साल 2018 में एक विद्यालय के प्रधानाचार्य ने पत्रकारों पर ब्लैकमेलिंग के आरोप लगाते हुए पुलिस में तहरीर दी थी जिस पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज करते हुए चार पत्रकारों को जेल भेज दिया था। तब से लेकर अब तक मामला न्यायालय में लंबित था अब इस मामले में कोर्ट ने सबूतों के अभाव में पत्रकारों को दोषमुक्त कर दिया है।
मामले के अनुसार राजकीय प्राथमिक विद्यालय कुदईयोवाला के तत्कालीन प्रिंसिपल गिरवर सिंह ने कुंडा थाने में तहरीर देते हुए कहा था कि 23 जनवरी 2018 को चार व्यक्ति खुद को देहरादून निदेशालय से बताकर उनके विद्यालय में घुसते हैं और न्यूज चैनल की रौब दिखाकर जबरदस्ती विद्यालय के अभिलेख खुलवाते हैं और कमियां निकालते हैं। इस दौरान उक्त लोगों में से एक व्यक्ति अध्यापक से एक के बाद एक सवाल पूछता है और अध्यापक की गलतियां पकड़ने पर धमकाने लगता है। साथ ही सस्पेंड कराने की धमकी देते हुए एक लाख रूपए की मांग करता है। प्रिंसिपल गिरवर सिंह की शिकायत पर पुलिस मुकदमा दर्ज करती है और पत्रकारों को गिरफ्तार करते हुए जेल भेज देती है। तब से लेकर अब तक न्यायालय में मामले की सुनवाई चल रही थी, लेकिन 7 साल बाद अब इस मामले में कोर्ट ने साक्ष्यों के अभाव में सभी पत्रकारों को दोषमुक्त कर दिया है।
इस पूरे मामले में पीड़ित रहे पत्रकार योगेश शैली ने बताया कि वो कुछ पत्रकार साथियों के साथ एक फैक्ट्री की ख़बर बनाने गए हुए थे, लौटने पर फैक्ट्री के नजदीक राजकीय प्राथमिक विद्यालय कुदईयोवाला में प्रदूषण के प्रभाव की जानकारी लेने पहुंचते हैं। जहां उन्हें बाहर मैदान में एक अध्यापक बच्चों को उत्तराखंड के जिलों के बारे में गलत जानकारी पढ़ाते हुए दिखाई देते हैं, जिस पर योगेश शैली अध्यापक को टोकते हैं और कुछ सवाल पूछते हैं, जिसमें खास तौर पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के बारे में पूछा जाता है जिस पर अध्यापक बताता है कि वर्तमान में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री अरविन्द पांडे हैं, जबकि उस समय प्रदेश के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत थे और अरविन्द पांडे शिक्षा मंत्री थे। ये ख़बर शिक्षा विभाग में काफी वायरल हुई थी। योगेश शैली ने बताया कि उनके साथियों को तत्कालीन प्रधानाचार्य ख़बर रुकवाने के लिए लगातार संपर्क कर रहे थे और पत्रकारों पर दबाव बनाने के लिए पुलिस में तहरीर भी दे चुके थे। प्रिंसिपल गिरवर सिंह ने कोर्ट कचहरी से बचने के लिए पुलिस से पत्रकारों के खिलाफ की गई शिकायत वापस मांगी, लेकिन पुलिस ने शिकायत वापस नहीं की और उल्टा शिक्षकों को फर्जी मुकदमे की धमकी देकर वापस भेज दिया। जिसके बाद पुलिस ने योगेश शैली समेत चारों पत्रकारों को षड्यंत्र के तहत फंसाते हुए जेल भेज दिया।
योगेश शैली जो कि पत्रकारिता में मास्टर्स की डिग्री लेने के बाद ईटीवी से लेकर कई प्रतिष्ठित संस्थानों में कार्य कर चुके हैं और वर्तमान में टीवी 24 न्यूज चैनल के उत्तराखंड ब्यूरो हैं उनके अनुसार जब वो उधम सिंह नगर जिले में ईटीवी न्यूज चैनल में कार्यरत थे तब उन्होंने ही एनएच 74 घोटाले के खुलासे की ख़बर ब्रेक की थी, जिसके बाद काशीपुर के तत्कालीन भाजपा विधायक से संबंधित खबरें और काशीपुर में अवैध खनन को लेकर कई महत्वपूर्ण खुलासे भी उनके द्वारा किए गए, जिस वजह से उन्हें कई अधिकारियों और तत्कालीन भाजपा विधायक हरभजन सिंह चीमा से धमकियां मिली थी, जिसके साक्ष्य आज भी उनके पास मौजूद हैं। इसी कारण योगेश शैली भाजपा सरकार की हिट लिस्ट में आ गए और पुलिस ने आधारहीन तथ्यों को आधार बनाकर योगेश शैली और अन्य पत्रकारों को षड़यंत्र में फंसाते हुए जेल भेज दिया, ताकि भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होने से रोका जा सके।
पत्रकारों को जेल भेजने का मामला कोई नया नहीं है जब भी कोई पत्रकार सरकार की गलत नीतियों भ्रस्टाचार बेरोजगारी आदि का खुलासा करता है तो वह सरकार की हिट लिस्ट में आ जाता है और फिर मौका देखकर पुलिस उसे किसी भी केस में फंसाकर जेल दर्शन करवा देती है। इस मामले में भी चारों पत्रकार ख़बर करने गए थे, लेकिन उलटे पत्रकारों पर ब्लैकमेलिंग के आरोप लगा दिए गए और आनन-फानन में एफआईआर दर्ज कर जेल भेज दिया गया। पत्रकारों ने ‘गुरुजी पढ़ा रहे... मुख्यमंत्री का नाम अरविन्द पांडे’ टाइटल के साथ ख़बर प्रकाशित की जो कि काफी वायरल हुई थी। जब ख़बर प्रकाशित हो गई तो ब्लैकमेलिंग के आरोप वैसे ही खारिज हो जाते हैं, लेकिन विडंबना देखिए शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलने के लिए जहां पत्रकारों को सम्मानित किया जाना था, वहीं सरकार के दबाव में हमारी मित्र पुलिस षड्यन्त्र करते हुए पत्रकारों को जेल भेज देती है। जबकि पत्रकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्त गाइडलाइन है कि खबरों के मामले में पुलिस सीधे एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती है। एफआईआर दर्ज करने से पहले पुलिस को जांच करना और सबूत पक्के करना जरूरी है, बावजूद इसके सरकार की नीतियों की आलोचना और भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करना उत्तराखंड में पत्रकारों को जेल दर्शन करवा रहा है।