होली विशेषः गौरवशाली इतिहास समेटे है पहाड़ की होली! ढोल की थाप पर होता है रामायण और महाभारत काल की गाथाओं का वर्णन, नैनीताल में मुस्लिम समुदाय के लोग भी निभाते हैं अनूठी परंपरा

Holi Special: Holi of the hills has a glorious history! The stories of Ramayana and Mahabharata are narrated to the beat of the drum, people of the Muslim community in Nainital also follow this uniqu

रिपोर्ट-सुनील बोरा

नैनीताल। यूं तो पूरे देश में होली का पर्व मनाया जाता है, लेकिन कुमाऊं की खड़ी होली का अपना ही अलग रंग है। गौरवशाली इतिहास समेटे पहाड़ की होली का ऐसा रंग कुमाऊं में ही देखा जाता है। ढोल और रागों पर झूमने के साथ इस होली में गौरवशाली इतिहास का वर्णन होता है। होल्यारों के साथ ही हर शख्स होली के रंगों में रंग जाते हैं। हालांकि पिछले कुछ सालों में रितिरिवाज, परम्पराओं में बदलाव आए, पर आज भी इन ये होली नजीर बनी हुई है। पहाड़ों में आज भी खड़ी होली की परम्परा कायम है।

कुमाऊं की खड़ी होली का नजारा हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है। ढोल की थाप पर होल्यार रंगों के इस पर्व पर रंगे नजर आ रहे हैं। देशभर में खेली जाने वाली होली से कई मायनों में अलग ये होली शिवरात्री के बाद चीर बंधन के साथ शुरू होती है जो छलडी तक चलती है। मन्दिर से शुरू हुई इस होली में होल्यार गांव के हर घर में जाकर गायन करते हैं, जिसके बाद आशीष भी परिवार को देते हैं।

चन्द शासन काल से चली आ रही ये परम्परा आज भी अपने महत्व को कुमाऊं की वादियों में समेटे हुये है। बता दें कि कुमाऊं की इस होली का इतिहास 400 साल से ज्यादा पुराना है। ढोल की थाप के साथ कदमों की चहल कदमी और राग-रागिनियों का समावेश इस खड़ी होली में होता है। कुमाऊं में चम्पावत, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर में इस होली का आयोजन किया जाता है। राग दादरा और राग कहरवा में गाये जाने वाले इस होली का गायन पक्ष में कृष्ण राधा राजा, हरिशचन्द्र, श्रवण कुमार समेत रामायण और महाभारत काल की गाथाओं का वर्णन किया जाता है।

नैनीताल में होली महोत्सव का आयोजन 26 वर्ष पूर्व से किया जा रहा है जिसका मुख्य उद्देश्य लुप्त हो रही संस्कृति को बचाने का प्रयास है। जब से होली महोत्सव के दौरान ग्रामीण होल्यारों का दल प्रतिभाग कर रहा है, पूरी तैयारी के साथ पूरी वेशभूषा के साथ प्रतिभाग कर रहे हैं। जिसमें बुजुर्गों के साथ युवा पीढ़ी भी कदम से कदम और स्वर से स्वर मिलाते नजर आ रहे हैं। कुमाऊं में हाली का इतिहास सदियों पुराना रहा है।

करीब डेढ़ सौ साल पहले रामपुर के उस्ताद अमानत हुसैन ने कुमाऊं में होली गीतों की शुरूआत की थी। तब से लेकर आज तक कुमाऊं में बैठकी और खड़ी होली इसी अंदाज में मनाई जाती है। एक और पक्ष है जो कुमाऊं की होली को विशेष बनाता है और वह है कि यहां होली। यहां की होली किसी धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं है। नैनीताल में पिछले 40 सालों से होली की अनूठी परंपरा को मुस्लिम समुदाय के लोग निभाते आ रहे हैं। मुस्लिम होल्यारों का मानना है कि होली जैसे त्योहार को धर्म और समुदाय से जोड़ता गलत है। जबकि होली समाज को जोड़ती आई है।