क्या आप जानते हैं? इम्यूनिटी पावर बढ़ाता है ‘हवन’! वेदों में भी मिलता है वर्णन, शरीर के अंदर तक पहुंचकर ज्यादा असर करती हैं औषधियां

Do you know? 'Havan' increases immunity power! It is also mentioned in Vedas, medicines are more effective when they reach inside the body

जीवाणु जनित रोग एवं उपचार के लिए ‘हवन’ का धुआं एवं गंध रामबाण का काम करती है। यह खुलासा अजमेर के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में पहली बार माइक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा ‘हवन’ पर किए गए शोध में हुआ। यह शोध पिछले साल 2024 में किया गया था। शोध के बाद बताया गया कि गुणवत्तापूर्ण सामग्री एवं औषधियों से किया गया हवन हमारे आसपास के वातावरण में उपलब्ध जीवाणुओं को खत्म कर देता है एवं व्यक्ति की इम्यूनिटी पावर को बढ़ाता है। जेएलएन मेडिकल कॉलेज, अजमेर के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. विजयलता रस्तोगी के मुताबिक जीवाणु जनित बीमारियों के निदान के लिए ‘हवन’ कारगर साबित हुआ है। 

बता दें कि यज्ञ चिकित्सा भारत की अति प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। इसका वेदों में भी वर्णन मिलता है। यह सूक्ष्म रूप मे कार्य करती है, इसकी औषधियां शरीर के अंदर पहुंचकर ज्यादा असर करती हैं। विशिष्ट मंत्रों की शक्ति के साथ जब औषधि युक्त सामग्री से हवन किया जाता है तो हवन का धुआं रोम छिद्रों, मुंह और नाक के माध्यम से शरीर के भीतर पहुंच कर लाभ देता है और शरीर को रोग मुक्त करता है। तिब्बत में आज भी सर्दी-जुखाम, माइग्रेन, सर दर्द, मिर्गी, हृदय व फेफड़ो से संबंधित रोग में जड़ी-बूटी के धुएं से उपचार किया जाता है। यज्ञ में डाली गई आहुति का धुआं घर का वातावरण शुद्ध करता है तथा हवा में फैले 90 प्रतिशत रोगाणु और विषाणु सहित मच्छरों को नष्ट करता है। आज भी अनेक प्राचीन तीर्थ स्थलों पर स्थित आश्रमों में प्रतिदिन यज्ञ होते देखे जा सकते हैं।


भारतीय करते हैं एंटीबायोटिक का सर्वाधिक सेवन
जरा सा दर्द होने, कफ-कोल्ड, बुखार या एलर्जी होने पर व्यक्ति तुरंत एंटीबायोटिक खाता है। बहुत से लोग तो कई-कई दिन तक एंटीबायोटिक पर ही डिपेंड रहते हैं। इसमें भारतीयों का नंबर शीर्ष पर है। लेकिन जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक का इस्तेमाल शरीर को खतरे में डाल सकता है। एक अध्ययन के अनुसार देश में हर साल करीब 7.5 लाख नवजात की मृत्यु होती हैं, जिसमें 20.8 फीसदी यानि 1.56 लाख मौत का कारण इंफेक्शन होता है, जो कि एंटीबायोटिक दवाओं के असर नहीं होने के वजह से होती हैं। रिसर्च में भी यह बात सामने आई है कि ज्यादा एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक एंटीबायोटिक के ज्यादा इस्तेमाल से 'एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस' का रिस्क बढ़ रहा है। जो वाकई में किसी महामारी से भी बड़ा खतरा है। एंटी माइक्रो-बियल रेजिस्टेंस' (AMR) से दुनिया में हर साल 50 लाख लोगों की मौत हो जाती है। यही हाल रहा तो साल 2050 तक ऐसी मौतों का आंकड़ा एक करोड़ के पार चला जाएगा।