हरेला पर होगा वृहद वृक्षारोपण कार्यक्रम

उत्तराखंड अपनी संस्कृति व त्यौहारों के चलते देश में अपनी एक अलग पहचान रखता है, हिंदी कैलेंडर के अनुसार हर माह की पहली तिथि को यहां कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है, ऐसे ही त्यौहारों में शुमार हरेला, श्रावण मास की पहली तिथि को मनाया जाता है, जो कि इस बार 17 जुलाई को मनाया जायेगा| वैसे तो हरेला पूरे उत्तराखंड में प्रचलित है, लेकिन यह विशेष तौर पर कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है| श्रावण मास लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में हरेला बोने के लिए चौड़ी पत्तियों वाले पेड़ो से पत्ते तोड़कर उन्हें टोकरीनुमा बनाकर उसमें मिट्टी डालकर 5 या 7 प्रकार के बीजों को बो दिया जाता है, नौ दिन तक इन टोकरियों में सुबह-शाम पानी छिड़कते रहते हैं| इन टोकरिनुमा पात्रों में उगे 4 से 6 इंच लंबे अनाज के पौंधों को ही हरेला कहा जाता है, दसवें दिन इसे काटा जाता है। घर से सदस्य इसे आदर के साथ अपने शीश पर रखने के साथ ही घर के दरवाजे व खिड़कियों के ऊपर भी इसे गाय के गोबर के साथ लगाते हैं। इसके साथ एक मान्यता यह भी जुड़ी है कि हरेला जितना बड़ा होगा, फसल उतनी ही अच्छी होगी। सात ही भगवान से अच्छी फसल की कामना की जाती है।
पिछले कुछ समय से राज्य सरकार हरेला पर्व को पर्यावरण संरक्षण, नदियोॆ व जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिए वृहद वृक्षारोपण कर मना रही है। इस वर्ष भी मुख्यमंत्री 16 जुलाई को रिस्पना पुनर्जीवन के लिए 100 बीज बम रिस्पना नदी में फेंकेंगे। साथ ही रिस्पना से ऋषिपर्णा अभियान के तहत हरेला पर्व पर मोथरावाला में खाली जमीन पर दो हजार से अधिक पौंधे लगाए जाएंगे। वन-विभाग भी 16 जुलाई से 21 जुलाई तक हरेला महोत्सव के रुप में मना रहा है। मुख्य वन संरक्षक जयराज ने बताया कि इस वर्ष 16 जुलाई से हरेला महोत्सव मनाया जाएगा जिसके तहत एक सप्ताह के भीतर प्रदेशभऱ में डेढ करोड़ से अधिक पेड़ लगाए जाएंगे, और इसके लिए जनसहभागिता पर जोर दे रहे हैं। साथ ही उन्होंने प्रदेशवासियों से अपील करते हुए कहा कि अधिक से अधिक लोग इस कार्यक्रम का हिस्सा बनें जिससे इस तरह के कार्यक्रम को सफल बनाया जा सके।