शिल्प कला को रोजगार का जरिया बनाकर युवाओ को आईना दिखा रहे जसपाल

पहाड़ में शिल्प कारीगरी विलुप्ति की कगार पर हैं, ऐसे बहुत कम कलाकार हैं, जो पहाड़ी क्षेत्रो में रहकर लकड़ी पर नक्काशी का काम कर रहे  हैं, इन्हीं में एक हैं पौड़ी के रहने वाले जसपाल रमोला भी हैं जो लकड़ी तराशकर उसे मूर्ति स्वरूप देने में माहिर हैं, जसपाल पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते शिल्पकला का काम छोड़ चुके थे, उन्होंने करीब 26 साल बाद दोबारा से इस काम को शुरू किया है,जसपाल चाहते हैं कि जो भी युवा इस कला में रुचि रखता है, उसे इस ओर काम करना चाहिए,वह उन लोगों को सिखाकर आने वाली पीढ़ी को इसकी जानकारी देना चाहते हैं,जसपाल का कहना है कि उनकी यह कला काफी रोजगार परक है, इस काम में मेहनत और वक्त तो जरूर लगता है, लेकिन तैयार सामग्री की बाजार में काफी अच्छी कीमत मिल सकती है, जसपाल ने बताया कि उन्होंने यहा कला किसी से नहीं सीखी है, साल 1993 में पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते उन्होंने यह काम छोड़ दिया था, इस काम में काफी अधिक समय और मेहनत लगती है, आज करीब 26 साल बाद इस काम को शुरू कर रहे हैं,जसपाल ने बताया कि बीते एक महीने से वह लगातार विभिन्न प्रकार की मूर्तियां बना रहे हैं, इसमें हनुमान, अल्मोड़ा के प्रसिद्ध गोलू देवता, मां धारी देवी आदि की मूर्तियां बना चुके हैं, मूर्ति को बनाने के लिए वह अखरोट, तुन और रीठा की लकड़ी का प्रयोग करते है, इसके साथ ही उन लकड़ियों का प्रयोग करते है जो जंगलों में बेकार पड़ी होती हैं, इस काम के लिए वह प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं करते है। अब वे पौड़ी में एक आर्ट गैलरी की शुरुआत करने की तैयारी में है जिसे देखने के लिए दूर दराज से लोग यहां पहुंचे। उनका कहना है कि आज जो युवा पीढ़ी रोजगार के साधन ढूंढ रही है वह इससे प्रेरित होकर इस क्षेत्र में अपनी रुचि दिखाए,  युवा इस कला को सिखाकर आने वाली पीढ़ी तक इस कला को पहुंचाने का काम भी करेंगे।