शिक्षा का मंदिर बना वसूली का अड्डा

बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के निमार्ण के लिए हर माता-पिता बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ने भेजते हैं  जहां बच्चों के शिक्षित, समाजिक व न्यायिक भविष्य की शुरुआत होती है,लेकिन यदि शिक्षा के यही मंदिर अपराध और अराजकता करने पर आमादा हो जाये तो सोचिए आपके बच्चे का क्या होगा।कैसा होगा वो भविष्य जिसके निर्माणकर्ता शिक्षक के बजाए लुटेरे बन जाये, जो लूट-खसोट और अराजकता पर उतारू हों, जहां शिक्षक पढ़ाने पर कम और कमाई के तरीकों पर ही ध्यान देने लगे। क्या आप भेजना चाहेंगे ऐसे किसी भी स्कूल में अपने बच्चे को। देहरादून का एक ऐसा स्कूल जिसमे चलती है डायरेक्टर और प्रिंसपल की तानाशाही। जहां अध्यापकों का काम पढ़ाना नही बल्कि कमाई और वसूली में लगे रहना है।उत्तराखंड ही नही पूरे देश मे शिक्षा के व्यवसायिक करण को लगाम लगाने के लिए सरकारें लगातार नियम बना रही हैं और कई स्कूल उनका पालन भी शुरू कर चुके हैं लेकिन कहते है चिराग तले अंधेरा होता है वैसे ही पहाड़ी सूबे के शिक्षा विभाग की सख्ती के बाद राज्य के कई नामी विद्यालयों ने नियमो को निभाना भी शुरू कर दिया है लेकिन राजधानी में ही ऐसा भी विद्यालय है जिसे किसी नियम या शासनादेश से सरोकार नही विद्यालय के अपने कानून है और उसको जो नही मानता तो प्रिंसिपल उसको बाहर का रास्ता दिखाने में भी देर नही लगाती फिर चाहे वो कोई जिम्मेदार व अनुभवी टीचर हो या फिर हिटलरशाही के खिलाफ जाने वाला कोई अभिवावक। राजधानी देहरादून के इंदिरा नगर कॉलोनी में स्थित स्कूल माउण्ट फोर्ड एकेडमी की, जिसका जिम्मा तो बच्चों को शिक्षा दे कर नेक और ईमानदार नागरिक बनाना है पर असल मे नैतिकता से ये कोसो दूर है शिक्षा के नाम पर वसूली करने का अड्डा बना दिया है। टीचिंग स्टाफ हो या प्रबंधन सबका एक सूत्रीय ही काम है वसूली।इनका एक सूत्रीय कार्यक्रम है अभिवावक को लूटना, जिसके लिए बच्चों की किताबो से लेकर यूनिफार्म तक स्कूल के निर्देशों पर मनचाही जगह से ही मिलती है। स्कूल मनमाने दरों पर किताबे खुद बेचता है और यूनिफार्म मिलती है एक चुनिंदा प्रतिष्ठान से। अब ये देखना होगा कि शिक्षा विभाग ऐसे स्कूलों पर कब तब कार्रवाई करता है।