विश्व पुस्तक दिवस-पढ़ने के शौकीनों का दिवस

हर इन्सान का किताबों से जुड़ा अपना एक अलग ही इतिहास होता है।कोई पढ़ने का ज्यादा शौकीन हो तो किताबी कीड़ा तक कहलाता है,स्कूल जाने की उम्र होते ही हम सभी का किताबों से एक रिश्ता सा जुड़ जाता है, जो शायद हमारी जिन्दगी में ताउम्र रहता है।बुढापे में नजरे भले ही कमजोर हो चुकी हों ,लेकिन अगर कुछ दिलचस्प बातें कहीं लिखी दिख जायें ,तो चश्मा लगाकर लोग पढ़ ही लेते है।आजकल नेटवर्किंग का नया ज़माना है, किताबों मे जो कुछ भी लिखा होता है, आपके एक गूगल करने पर वो सब कुछ स्क्रिन पर आपके सामने हाजिर हो जाता है।ये एक बहुत बड़ी वजह है जिससे लोगों में किताबें रखने और पढ़ने की दिलचस्पी कम होती जा रही है ,इसी दूरी को कम करने के लिये यूनेस्कों ने 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस मनाने का निर्णय लिया, क्योंकि 23 अप्रैल 1564 को एक ऐसे  महान लेखक इस दुनिया से रूख्सत हुये थे, जिनकी कृतियों से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं।महान लेखक शेक्सपियर आज ही के दिन इस दुनिया को अपनी जिन्दगी की सबसे कीमती जमा पूंजी उनकी रचनायें दे कर हमेशा के लिये सो गये थे।शेक्सपियर की जितनी भी रचनायें रहीं उनका ज्यादातर हर भाषा में अनुवाद किया गया था।





भारत में 2001 से विश्व पुस्तक दिवस मनाने की घोषणा की गयी थी ताकि पुस्तक प्रेमी इस दिन को खास तौर पर याद रख सकें साथ ही हमारे जीवन में पुस्तकों का क्या महत्व है ये भी हम जान सकें।वास्तव में अगर किताबें न होंती तो हमारी जिन्दगी किसी जानवर या कीड़े मकौड़े से कम नही होतो ना ज्ञान होता ना हमें लिखना ही आता,इन्सान ने इतने अविष्कार भी ना किये होते। आज जो जिन्दगी आप और हम जी रहें हैं, वो आज से हजारो साल पुरानी ही जिन्दगी जीते अगर किताबें ना होती तो।यूं ही नहीं पूजी जाती हैं किताबे और धार्मिक पुस्तकें इनमें ज्ञानवर्धक बातें लिखी होती हैं, जीवन को नयी दिशा देने वाले शब्द लिखें होते हैं।कहते हैं बिना गुरू के ज्ञान नहीं मिलता ना ही जीवन सफल होता है ,पर अगर आपके पास एक अच्छी ज्ञानवर्धक पुस्तक है ,तो वो सौ दोस्तो और गरुओं के बराबर ही है।एक पुस्तक में अपने अनुभव लिख देने से कई लोगों की जिन्दगी में बदलाव लाया जा सकता है।भारत के प्रसिद्ध लेखक विनोबा भावे ने पुस्तकों के महत्व को समझते हुये 1960 में सर्वोदय साहित्य भंडार की स्थापना की थी, जहां आज भी महात्मा गांधी और खुद विनोबा भावे की लिखी हुयी किताबों के अलावा भारतीय ज्ञानपीठ की किताबें आपको पढ़ने के मिल जायेंगी।इस साहित्य भंडार का मुख्य उद्देश्य आज की युवा पीड़ी को ज्ञानवान,चरित्रवान, और संस्कारित बनाना है।

किताबों का अस्तित्व कभी खत्म नहीं हो सकता ।आज भले ही ज़माना कितना भी माॅर्डन क्यों ना हो गया हो, पर अगर आपके पास किताब नहीं भी है ,तो आपको नये ज़माने की नयी टैक्निक में यानी कंप्यूटर,लैपटाॅप, फोन इत्यादि में ही ढेरों पुस्तकें गूगल करने मात्र से ही मिल जायेंगी।पर जिन्हें किताबें पढ़ने का शौक होता है, उनका मन फोन या कंप्यूटर पर पढ़ने से नहीं भरता, फिर भले ही उन्होंने वही बात पहले कहीं और से क्यों न जान ली हो,जब तक वो खुद किताबों में उस बात को नहीं पढ़ लेते उन्हें चैन नहीं आता।

हर वर्ग हर उम्र की अपनी अपनी दिलचस्पी होती है।1985 से लेकर 2005 के दौर के बच्चों और युवाओं में काॅमिक्स और नाॅवल पढ़ने का दीवानापन हद से ज्यादा हावी रहा।वहीं धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने का दौर कभी गया ही नहीं।फिल्मी मैगजीन का भी अपना अलग क्रेज है ,तो राजनीति से सम्बन्धित किताबों का भी अपना अलग मजा है।आप भी पढ़ने के शौकीन हैं ,तो आपके लिये ढेरों पुस्तकालय दुनिया भर मे मौजूद हैं ,जहां हर तरह की किताबें आपको मिल सकती हैं ,और अगर आप उन पुस्तकालयों तक नहीं जा सकते तो गूगल है ना।