रुद्रपुर में बच्चे के डिलीवरी ने नाम पर माता पिता की भावनाओं से खिलवाड़

आजकल जैसा स्वास्थ्य विभाग का हाल है उसे जानकार शायद अच्छा भला इंसान भी बीमार पड़ जाए। एक तरफ जहाँ प्राइवेट अस्पतालों के रूप में लूट मची हुई है , सरकारी अस्पताल में मरीजों के लिए जगह नहीं है। फिर भी हम आशा करते है एक दिन सब बदलेगा। लेकिन जब बात बच्चे की डिलीवरी की हो तो हमें मज़बूरन प्राइवेट अस्पतालों में जाना पड़ता है । और प्राइवेट अस्पताल भी इस बात का खुलकर फायदा उठाते है ।इतना ही नही आज प्राइवेट अस्पतालों में लोगो की भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है । बिल के नाम पर लूट का खेल , पूरा पैसा ना मिलने पर भगवान माने जाने वाले ये डॉक्टर बदसूलुकी व बत्तमीजी पर उतर आते है ।
ताजा मामला ऊधम सिंह नगर रुद्रपुर के एक बहुत बड़े अस्पताल का है जो किच्छा रोड पर स्थित है जिसने अपने उद्घाटन में ये कहा था कि शहर के लोगो और गरीबो लोगो को इस अस्पताल से लाभ मिलेगा ।लाभ तो छोड़िए आज इस अस्पताल में बच्चे के डिलीवरी होने के बाद उसके माता पिता की भावनाओ से खिलवाड़ किया जा रहा है । सूत्रों की माने तो बीते दिन इस अस्पताल में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने मानवता को शर्मसार कर दिया । डिलीवरी होने के बाद कुछ दिन बीत जाने के बाद जब बच्चे के पिता ने छुटी की मांग की तो भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर ने कहा अगर पैसे नही हैं, तो अपने बच्चे को बेच दो , और पैसे नही थे तो बच्चा पैदा ही क्यों किया । आप अन्दाज़ा लग सकते है कि एक पिता के दिल पर क्या बीती होगी यह बात सुनकर। लेकिन उस डॉक्टर ने पैसों के लिए बिल्कुल गुरेज नही की इस बात को कहने में ।
नॉर्मल डिलीवरी में खतरा बता सिजेरियन का दबाब बनाना तो प्राइवेट अस्पतालों का पुराना हथकंडा है। लेकिन अब तो पैसों के लालच में ये संस्थान नन्हे मासूमों तक को नहीं छोड़ रहे। शहर के कई प्राइवेट अस्पतालों में स्वस्थ नवजात शिशु को सीरियस बताकर एनआईसीयू में भर्ती कर वसूली का खेल खेला जा रहा है। डिलीवरी के तुरंत बाद परिजनों को बताया जा रहा कि शिशु ने गर्भ में गंदा पानी पी लिया है जिसके चलते उसे पीलिया हो गया है। इस कारण उसे एनआईसीयू में रखना पड़ेगा। बच्चे की जान पर खतरा सुनते ही घबराए परिजन भी इन डॉक्टर्स की बातों में आ जा रहे हैं। ऐसे ज्यादातर केसेज में बच्चे को दो से तीन दिन एनआईसीयू में रखा जा रहा है जिसके एवज में प्राइवेट अस्पताल एक दिन के ही 20 से 25 हजार रुपए वसूल ले रहे हैं।और जब बच्चे के परिजन कुछ दिन बाद कहते कि डॉक्टर साहब अब में ये खर्च नही उठा पा रहा हूँ तो डॉक्टर बदसुलूकी करते हुए ये कहता है कि बच्चे को बेच दो ।
60 प्रतिशत केसेज भेजे जाते एनआईसीयू
तमाम केसेज सामने आने के बाद दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने प्राइवेट अस्पतालों के इस खेल की पड़ताल की तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। पता चला कि शहर के प्राइवेट अस्पतालों में जन्म लेने वाले करीब 60 फीसदी नवजात शिशुओं के गंदा पानी पीने की वजह बता ये अतिरिक्त फीस वसूली जाती है। मजबूरी में परिजन पैसा जमा कर देते हैं। स्वास्थ्य विभाग इन प्राइवेट अस्पतालों पर लगाम नहीं लगा पा रहा है। आलम यह है कि ज्यादा कमाई के चक्कर में डॉक्टर परिजनों को नवजात शिशु की हालत गंभीर बता देते हैं जिससे उनकी परेशानी बढ़ जाती है। इसी मजबूरी का फायदा उठाकर उनसे भारी रकम वसूल कर अपनी जेब भरी जाती है.
मानक तय नहीं, चल रही मनमानी
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक शहर में कुल 306 प्राइवेट अस्पताल और नर्सिग होम संचालित हो रहे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इनमें कई जगहों पर नॉर्मल डिलीवरी की जगह सिजेरियन का ही दबाव डाला जाता है। वहीं, करीब 60 फीसदी स्वस्थ नवजात शिशुओं को कोई न कोई कारण बताकर एनआईसीयू में भर्ती कर दिया जाता है। जहां ऑक्सीजन, बेड, मॉनिटर चार्ज के अलावा डॉक्टर और आरएमओ का चार्ज लगाकर चार से पांच हजार रुपए एक दिन की फीस का बिल बना दिया जाता है। जबकि स्वास्थ्य विभाग के पास इसका कोई मानक नहीं फिक्स है। इसी का नतीजा है कि ये अस्पताल मनमाने तरीके से इलाज के नाम पर हजारों रुपए ले रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं है डिटेल
जिले के स्वास्थ्य विभाग के पास जिला महिला अस्पताल को छोड़ कर जिले के प्राइवेट अस्पतालों में नॉर्मल डिलीवरी, सिजेरियन और कितने नवजात शिशु जन्म लेते हैं इसका ब्योरा ही नहीं है। जबकि जिम्मेदारों का दावा है कि बार- बार विभाग द्वारा प्राइवेट अस्पतालों से डिटेल मांगी जाती है।