मुग़ल सम्राट अकबर भी जिसकी मृत्यु पर रो पड़ा,महाराणा प्रताप सिंह जैसा राजपूत ना हुआ आजतक ना होगा।

भारत का इतिहास वीर योद्धाओं की कहानियों से भरा पड़ा है, जब भी किसी पराक्रमी और शूरवीर राजाओं की बात होती है तब महाराणा प्रताप सिंह का ज़िक्र ज़रूर आता है।महाराणा प्रताप सिंह इकलौते ऐसे राजपूत राजा थे जिन्होंने मुग़ल बादशाह अकबर के अधीनता स्वीकार नही की थी।खुद अकबर भी इस शूरवीर योद्धा की मौत पर खूब रोया था।आज इसी वीर पुरूष की पुण्यतिथि है,आईये जानते है महाराणा प्रताप सिंह के बारे में कुछ रोचक तथ्य।
महाराणा प्रताप सिंह का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान में महाराणा उदय सिंह और महारानी जयवंता बाई के घर हुआ था।महाराणा प्रताप उच्च घराने के होने के बावजूद भी धन दौलत से ज़्यादा मान सम्मान को तरजीह देते थे,उनकी इसी बात पर मुग़ल दरबार के प्रसिद्ध कवि अब्दुर रहमान ने लिखा था,"दुनिया मे एक दिन सब ख़त्म हो जाएगा,धन दौलत भी ख़त्म हो जाएगी,लेकिन इंसान के गुण हमेशा ज़िंदा रहेंगे"।ये कथन अब्दुर रहमान ने महाराणा प्रताप सिंह की जिंदादिली और इंसानियत को देखते हुए लिखी थी।
महाराणा प्रताप का भाला जितना भारी हुआ करता था उतने ही वो खुद भी वजनी थे उनका वजन 110 किलो था,और वो 7 फ़ीट 5 इंच लम्बे थे।उनका भाला भी 81 किलो का था जिसे देखकर ही दुश्मन थर्रा जाता था।महाराणा प्रताप की छाती का कवच 72 किलो का हुआ करता था,सभी चीज़ों के साथ जब महाराणा प्रताप सिंह जंग के मैदान में उतरते थे तब उनका कुल वजन 208 किलो हो जाता था,जोकि किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिए इतना भार उठा कर युद्ध मे लड़ना असंभव था।आज भी महाराणा प्रताप सिंह की तलवार,कवच,और अन्य युद्ध मे प्रयोग किये जाने वाले समान उदयपुर के राज्य संग्रहालय में सुरक्षित रखे हैं।राजपूत महाराणा प्रताप के प्रताप से मुग़ल सम्राट अकबर भी खासे प्रभावित थे अकबर ने महाराणा प्रताप को प्रस्ताव भेजा था कि अगर वो अकबर के सामने हार मान लेते है तो उन्हें आधा भारत दे दिया जाएगा,लेकिन शूरवीर महाराणा प्रताप सिंह ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और जवाब में कहा कि वो मरते दम तक भी मुग़लो के सामने सर नही झुकायेंगे।
हर योद्धा के पास घोड़ा होना बहुत आवश्यक हुआ करता था ,बिना घोड़े के युद्ध सम्भव नही हुआ करता था ,महाराणा प्रताप के पास भी उन्ही के जैसा ताकतवर घोड़ा था जिसकी कहानियां आज भी लोग सुनाते हैं,उनके घोड़े का नाम चेतक था जिसकी रफ्तार हवा जितनी थी वो इतना बलशाली था कि उसने युद्ध मे एक बार अपना पैर हाथी के ऊपर रख दिया था ,युद्ध मे घायल हुए महाराणा प्रताप सिंह को चेतक अपने ऊपर लिए 26 फ़ीट लम्बे नाले के ऊपर तक से कूद गया था।
हल्दीघाटी के युद्ध मे हालांकि न तो अकबर ही जीत पाया था न महाराणा प्रताप ही जीते लेकिन इस युद्ध को इतिहास के पन्नो में आज भी भयंकर युद्ध माना जाता है।महाराणा प्रताप कई दिनों तक मायरा की गुफाओं में भी रहे थे जहां उन्होंने घास से बनी रोटियां खा कर भी दिन गुज़ारे थे।
19 जनवरी 1597 को महाराणा प्रताप दुर्घटना ग्रस्त हो गए थे जिसमें उनकी मृत्यु हो गयी थी,
राजपूत राजघराने की परम्परा रही है कि पिता के स्वर्गवास होने पर युवराज दाहसंस्कार के समय उपस्थित नहीं रहते। लेकिन उस प्राचीन परम्परा को तोड़कर उनके पुत्र अमरसिंह ने महाराणा प्रताप सिंह की अन्त्येष्टि क्रिया सम्पन्न की। महाराणा प्रताप का अंतिम संस्कार चावण्ड से 3 कि.मी. दूर बण्डोली ग्राम के पास स्थित केजड़ के तालाब में किया गया था जहां अब पुल बन गया है। वहां मुगल शासकों के वैभवपूर्ण स्मारक से इतर सफेद पत्थर की आठ खंभों वाली एक साधारण छतरी है , जो प्रताप के महान व्यक्तित्व का प्रतीक है। "महाराणा यश प्रकाश " के अनुसार जब प्रताप की मृत्यु का समाचार (लाहौर में) अकबर के पास पहुंचा , तो वह स्तब्ध और उदास हो गया। उसका यह हाल देखकर दरबारी ताज्जुब में पड़ गए , वहां मौजूद प्रसिद्ध चारण कवि दुरसा आढ़ा ने सम्राट की भावना को ठीक तरह से समझा और उसी समय कहा-
आ लैगो अणदाग ,
पाघ लेगो अणनामी ,
गौ आड़ा गवड़ाय ,
जिको बहतो धुर कामी।
नवरोजे नह गयो ,
न गौ आंतसा नवल्ली ,
न गौ झरोखा हेठ ,
जेठ दुनियाण दहल्ली।
गहलोत राण जीती गयो ,
दसाण मूंद रसणा डसी ,
नीलाक मूक भरिया नयन ,
तो मृत भाह प्रताप सी।।
अर्थात् "तूने अपने घोडे़ को (शाही) दाग नहीं लगने दिया। अपनी पगड़ी तूने कभी भी किसी के सामने नहीं झुकाई। तू अपने यश के गीत गवा गया। अपने राज्य के धुरे को तू अपने बाएं से चलाता रहा। तू न तो नवरोज में गया और न शाही डेरों में। तू शाही झरोखे के नीचे नहीं गया। तेरी श्रेष्ठता के कारण दुनिया ही दहलती रही। हे प्रतापसिंह! तेरी मृत्यु पर शाह (अकबर) ने दांतों के बीच जीभ दबाई। नि:स्वासें छोड़ीं और आंखों में आंसू भर गए। गहलोत राणा (प्रताप) तेरी ही विजय हुई। तू जीत गया"।