भागवत पुराण की कथा को सबसे पहले किसने और किस स्थान पर सुनाया, देखे हमारी यह खास रिपोर्ट

कर्म किए जा फल की चिंता मत कर ए इंसान ये ज्ञान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था यही ज्ञान भागवत कथा का सार है भागवत कथा में जीवन की वास्तविकता का दर्शन है कहा जाता है कि भागवत कथा सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है पर क्या आप जानते है कि हिन्दू धर्म के 18 पुराणों में से एक भागवत पुराण की कथा को सबसे पहले किसने और किस स्थान पर सुनाया था तो हम आपको आज वह जगह भी बताएंगे और दिखाएंगे भी जन्हा सबसे पहले पृथ्वी पर भागवत कथा को सुनाया गया था।
सामाजिक धार्मिक और लौकिक मर्यादाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण भागवत पुराण को माना गया है भागवत को ज्ञान और भक्ति, वैराग्य का सबसे महान ग्रंथ माना जाता है यह भी कहा जाता है कि भागवत पुराण में कलयुग में होने वाली घटनाओं की भविष्यवाणी की गई है काल की गणना तक भागवत में की गई है सिध्स्रोत मंदिर के मुख्य पुजारी का कहना है कि इस स्थान का इतिहास अनादि काल से है महाभारत के केदारखंड में इसका वर्णन है भगवान शिव के गण नंदी द्वारा यहां पर तप किया गया और ब्रह्मा के पुत्र मरीचि ऋषि ने तप किया उसके बाद संकादित ऋषियों ने ज्ञान बैरागी और भक्ति को श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण कराया उसके बाद सुखदेव मुनि जी द्वारा यहां पर तप किया गया इसी स्थान से जाकर उनके द्वारा शुक्रताल में महाराजा परीक्षित को कथा सुनाई थी तब से आज तक यहां कोई ना कोई संत तप करता है यहां पर जिनके द्वारा भी तप किया गया वह सभी सिद्ध पुरुष हुए।
मंदिर के मुख्य पुजारी का कहना है कि सर्वप्रथम ज्ञान बैरागी और भक्ति को श्रीमद्भागवत की कथा संकादित ऋषियों द्वारा इसी स्थान पर सुनाई थी उसके बाद सुखदेव जी ने 200 वर्ष बाद शुक्रताल पर महाराजा परीक्षित को सुनाएं बाद में 88 हजार ऋषियों को सूत जी महाराज ने नेम सारणी में कथा सुनाई तब से आज तक श्रीमद् भागवत कथा को सुनाई जा रही है यही वह स्थान है जहां पर सबसे पहले कथा सुनाई गई और यह भागवत कथा के प्रचार प्रसार का स्थान बन गया इस स्थान पर भगवान शिव के भक्तों ने तब किया नंदी शिव के गाने हैं महा ऋषि ऋषि भी शिव के ही भक्त है और सुखदेव जी भगवान शिव के शिष्य है क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम श्रीमद्भागवत की कथा भगवान शिव के मुख से सुनी इसलिए इस स्थान पर भगवान शिव की आराधना की जाती है इसका पुराणों में वर्णन है महाभारत में वर्णन है जिस समय महाभारत की रचना हुई इस स्थान का इतिहास उससे भी पुराना है यहां के स्रोतों का अलग ही महत्व है इनको आनंद गंगा बोलते हैं और यह आनंद गंगा के संगम पर स्थान बना हुआ है और यहां पर जप तप करने से उसका फल सो गुना प्राप्त होता है।
सिध्स्रोत यानी धरती का स्वर्ग इस स्थान को धरती का स्वर्ग भी माना जाता है सिध्स्रोत हरिद्वार नजीबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर पर्वतो की तलहटी में बसा हुआ है यह स्थान बेहद ही रमणीक है और इस स्थान पर कई पर बहुत ही खूबसूरत स्रोत और नदिया बहती है यंहा आनंद गंगा नाम की भी एक नदी बहती है जो वास्तव में आनददायक है मान्यता है कि इस स्थान पर पर पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है भक्तो का मानना है कि यंहा आकर मन को असीम शांति का अनुभव होता है यह पौराणिक स्थान जितना खूबसूरत है यंहा तक पंहुचना उतना ही दुर्गम मुख्य मार्ग से करीब 3 किलोमीटर अंदर जंगल मे बेहद पथरीले और रेतीले रास्ते से होकर मंदिर तक पंहुचना पड़ता है मगर भक्त तमाम कष्ट उठाकर भी इस सिद्ध स्थान पर आते है और मन्नत मांगते है मान्यता है कि यंहा पर भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने से सभी मान्यताये पूरी होती है।
मान्यता है कि भागवत कथा सुनने मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है यही कथा देवलोक में भगवान शिव ने संत सुखदेव मुनि जी को सुनाई थी जिसे पृथ्वी लोक पर सबसे पहले संकादित ऋषियों ने ही हरिद्वार में नील पर्वतो की तलहटी में बेहद दुर्गम घने जंगलों के बीच सिध्स्रोत नामक स्थान पर सुनाई थी यही वह स्थान है जन्हा पर धरती पर सबसे पहले भागवत कथा का ज्ञान मनुष्यों को प्राप्त हुआ इस स्थान पर आकर लोग अलग ही अनुभूति प्राप्त करते हैं और जो एक बार इस स्थान के दर्शन करता है उसके मन में बार-बार यहां आने की प्रेरणा जागती रहती है इसीलिए इस स्थान का इतना महत्व है।