भयावह वास्तविकता आजादी के 74 साल बाद भी सड़क से वंचित है नैनीताल का यह गाँव

वही बात करें स्वास्थ्य सुविधाओं की ,तो ग्रामीणों को छोटी से छोटी बीमारी के लिए जिला मुख्यालय नैनीताल का रुख करना पड़ता है और वही अगर किसी बुजुर्ग या गर्भवती महिला को कोई दिक्कत होती है तो डोलियों के माध्यम से जंगल भरे पहाड़ी रास्तों से जान हथेली में रखकर मुख्य मार्ग तक पहुंचाया जाता है कभी-कभी तो मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देता है।
ग्रामीण बताते हैं कि उनके गांव में 1984 में सड़क निर्माण का काम पीडब्ल्यूडी विभाग को दिया गया लेकिन आज तक उनके गांव में सड़क निर्माण का काम शुरू नहीं हो सका 1984 से पहले उनके गांव में सड़क पैदल चलने लायक थी, लेकिन जब से सड़क पीडब्ल्यूडी को हस्तांतरित हुई है इस सड़क पर चलना तक मुश्किल हो गया है इतना ही नहीं ग्रामीण बताते हैं कि उनका गांव दो विधानसभा नैनीताल और कालाढूंगी को भी जोड़ता है और दोनों विधानसभाओं में साल भर विभिन्न प्रकार की फल और फसलो का उत्पादन होता इसके बावजूद भी राज्य सरकार के द्वारा अब तक उनकी गांवों को मुख्य मार्ग से नहीं जोड़ा गया जिस वजह से ग्रामीण क्षेत्र के किसानों की फसल खेतों में ही बर्बाद हो रही है और उत्पादित साग सब्जियों को खच्चर की मदद से रोड तक पहुंचाना होता है ,जिसके चलते ग्रामीणों की लागत मूल्य में खासा वृद्धि हो जाती है जिससे गांव के गरीब काश्तकारों को लाखों रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है ।
गांव के ही एक बुजुर्ग ग्रामीण नारायण सिंह मेहरा बताते हैं कि अगर इस सड़क का निर्माण हो गया तो ग्रामीणों के साथ साथ सड़क का फायदा भारतीय सेना को भी मिलेगा और सेना इस रास्ते से पिथौरागढ़,धारचूला चीन सीमा तक करीब 4 घंटे पहले पहुंच सकेगी वही समय की भी बचत होगी, ब्रिटिश काल में भी अंग्रेजों की फौज इस रास्ते का प्रयोग किया करती थी लेकिन आजादी के बाद यह रास्ता पूरी तरह से गुमनामी में खो गया।
सड़क निर्माण को लेकर स्थानीय लोग कई बार विधायक समेत मंत्रियों से मिल चुके हैं मगर आज तक ग्रामीणों की समस्या का समाधान नहीं हुआ वहीं उत्तराखंड के परिवहन मंत्री यशपाल आर्य कहते हैं कि मामला उनके संज्ञान में है और सड़क निर्माण को लेकर सभी सैद्धांतिक औपचारिकता पूरी कर ली गई है जल्द ही सड़क निर्माण को लेकर टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी और जल्द ही ग्रामीणों की समस्या का समाधान होगा।