पौराणिक सीता माता व लक्ष्मण मन्दिर का ऐतिहासिक इतिहास की बदलेगा कोट ब्लॉक की तस्वीर

पौड़ी जनपद के सितोन्स्यू फलस्वाडी क्षेत्र के दिन अब जल्द ही बदलने जा रहे हैं उत्तराखण्ड सरकार की घोषणा चलते ये पूरा क्षेत्र जल्द ही धार्मिक पर्यटन से जुड़कर लक्ष्मण, सीता माता और महर्षि बाल्मीकि के उस पौराणिक इतिहास का गवाह बनकर श्रद्धालु पर्यटक और जन जन के बीच उस अनभिज्ञ व्यथा से परिचित करवाएगा जिसकी जानकारी आज तक इतिहास के पन्नों में सीमट कर रह गई थी आखिर क्या है रामायण की वो व्यथा इस रिपोर्ट में पढ़िए।
उत्तराखण्ड जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है उसी देवभूमि में भगवान राम लक्ष्मण और सीता सहित बाल्मीकि का वो इतिहास भी मौजूद है जिसका वर्णन रामलीला तक में नही किया जाता जी हाँ ये इतिहास पौड़ी जनपद के कोट ब्लॉक के सीतोन्स्यू और फलस्वाड़ी क्षेत्र में ही मौजूद है सीतोंस्यूं यानी वो क्षेत्र जहाँ जिसका नाम सीता के वन में पहुचने से पड़ा है इसी लिए इसका नाम सीतोन्स्यू पड़ा ये वही क्षेत्र हैं जहाँ माता सीता ने अपने अंतिम क्षण इस क्षेत्र में बिताये थे और इसी स्थान पर माता सीता के दो पुत्र लभ कुष का जन्म भी हुवा था और अंत में माता सीता ने इसी क्षेत्र में भूसमाधि भी ले ली थी तब से ये स्थान पौराणिक मान्यताओ के अनुरूप काफी पवित्र माना जाता है इस स्थान पर देहरादून देवप्रयाग पौड़ी होते हुए हैं दिल्ली मेरठ नजिमाबाद सतपुली पौड़ी होते हुए इस स्थान पर आसानी के साथ पहुंचा जा सकता इस पवित्र स्थान की पौराणिक मान्यताओ के अनुसार माता सीता को इस क्षेत्र तक भगवान राम के भाई लक्ष्मण लाये थे और यहाँ माता सीता को महर्षि बाल्मीकि की शरण में छोडने के बाद लक्ष्मण ने जिस स्थान पर विश्राम किया था वो स्थान भी यहीं मौजूद है जिसे लक्ष्मण मन्दिर के नाम से जाना जाता है इन स्थानों में मौजूद शिलाएं कलाकृतिया इस बात का वर्णन बखूबी करती है यहाँ रामायण का अंत भी इसी स्थान पर हुवा ऐसा माना जाता है फलस्वाडी में मौजूद लक्ष्मण मन्दिर में कई क्लाकृतिया और पौराणिक शिलाएं मौजूद है वहीँ इस क्षेत्र से कुछ ही दूरी पर मौजूद पानी के कुवें में भी ऐसी कलाकृति है जो उस दौर के पौराणिक इतिहास का वर्णन करती है बताया जाता है की इसी स्थान से माता सीता जल भरा करती थी जबकि उस वक्त पूरा क्षेत्र वनाच्छादित यानी जंगलो से घिरा हुवा करता था जानकार ये भी बताते हैं की देवप्रयाग में भगवान राम का रघुनाथ मन्दिर भी इस बात का प्रमाण है की भगवान राम भी देवप्रयाग तक आये थे माता सीता की इस पावन धरती पर हर साल मनसार का मेला भी माता सीता की याद में लगता है जिसमे माता सीता के भूसमाधि लेने की उस घटना को दर्शाने के साथ ही ग्रामीणों को माता सीता को भूसमाधि लेने से रोकने के प्रयास एक लोड़ी को माता सीता मानकर किया जाता है हैरत की बात ये है की ये लोड़ी यानी पत्थर कार्तिक द्वादशी को इसी स्थान पर मिलती है जबकि अन्य दिन कितना भी जमीन खोदने पर ये लोडी नही मिलती है ऐसे में लोडी के इस स्थान पर मिलने का एक निश्चित दिन कार्तिक द्वादशी है तब से पूरे एक सप्ताह के लिए दर्शन देने पर इसे माता सीता मानकर मन्दिर समिति और श्रधालुओ द्वारा पूजा जाता है जिस पर मनसार का मेला भी यहाँ लगता है इस मेले के अंत में माता सीता के धरती में समाकर भूसमाधि लेने के दौरान ग्रामीणों की भावुकता भी साफ़ नजर आती है जिस पर माता सीता को ऐसा करने से रोका भी जाता है इन मान्यताओ और इतिहास को जानकार अब श्रद्धालु भी धीमे धीमे इस स्थान का महत्व समझकार यहाँ पहुचने लगे हैं। इस पावन स्थान जहाँ माता सीता ने भू समाधि ली थी साथ ही महर्षि बाल्मीकि का ये स्थान जहाँ सीता ने अपने अंतिम क्षण बिताये और लभ कुष का जन्म हुवा और भगवान लक्ष्मण ने माता सीता को यहाँ छोड़ने के बाद कुछ दूरी पर विश्राम कर यहीं रात बिताई थी इस स्थान को अब धार्मिक पर्यटन से जोड़ा जाना इस क्षेत्र के लिए सौभाग्य की बात है उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस क्षेत्र का अयोद्ध्या राम मन्दिर की तर्ज पर ही माता सीता का भव्य मन्दिर इस स्थान पर बनाने की घोषणा अपने पौड़ी दौरे में की है जिस और हर व्यक्ति से मन्दिर निर्माण के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ मन्दिर निर्माण के लिए अपने अपने घरो से कुछ शीला दान में देने के साथ ही सहयोग और आस्था के तौर पर दान पात्र देने की गुज़ारिश भी की गई है जिससे भव्य मन्दिर निर्माण के बाद इस क्षेत्र के उस इतिहास से भी वे लोग भी इस पावन स्थान पर पहुंचे जिससे वे अनभिज्ञ थे धार्मिक पर्यटन से इस क्षेत्र को जोड़े जाने से स्थानीय ग्रामीणों में भी ख़ुशी साफ़ छलक रही है जिससे उन्हें रोजगार के साथ ही खाली होते गांव और बंजर होते खेतो के फिर से आबाद होने के साथ ही प्रवासियो को लौटने और आने वाले समय में पर्यटक और श्रधालुओ के यहाँ भी चारधाम यात्रा तरह ही भारी संख्या में यहाँ पहुचने की आश भी जगी है। सीता सर्किट के तौर जल्द धार्मिक पर्यटन से जुड़ने वाले सीतोन्स्यू और फलस्वाडी क्षेत्र में सीता माता के पावन स्थान और अनसुनी रामायण को उन पन्नों की जानकारी को आने वाले समय पर पर्यटक यहाँ पहुँच कर आसानी से इस क्षेत्र में पहुंकर आसानी से जानकारी तो ले ही पाएंगे साथ पुन्य के भागीदार भी बनेंगे अब इंतज़ार है तो उस दिन का जब मन्दिर भव्य रूप लेकर श्रद्धालुओं को आस्था के साथ यहाँ बुलाएगा।