न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खाती मृतक बीएसएफ जवान की पत्नी।

देश की रक्षा में तैनात हमारे जवान कभी दुश्मन से लोहा लेते हुए,तो कभी किसी रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम देते हुए वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं। देश के किसी भी कोने से जवान के शहीद होने की खबर आती है, तो पूरे देश की आखें उसकी शहादत की खबर सुनकर नम हो जाती हैं, और शासन प्रशासन भी शहीद को अपनी श्रद्धांजलि देते हर उनके परिवार को हरसंभव मदद देने की बात करता है।समय के साथ शहीद का परिवार जीवनभर के लिए मिले इस गम को भुलाने का प्रयास करता है, तो वहीं शासन प्रसाशन समय के साथ अपने वादों को ही भूल जाता है।
ऐसा ही वाकया रामनगर के उदयपुर छोई निवासी बीएसएफ जवान स्व. दीवान नाथ के परिवार के साथ हुआ है। डेढ़ वर्ष पूर्व मेघालय में ड्यूटी के दौरान बीएसएफ जवान दीवान नाथ की मेघालय में मौत हो गई थी, एक रात मेघालय बीएसएफ हेडक्वाटर से उनके घर फोन पर उनकी नक्सली मुठभेड़ में शहीद होने की सूचना दी गई थी, और अगले दिन उनका शव उनके घर पहुंचा तो उनके मौत को लेकर कई सवाल उठने लगे और बीएसएफ के अधिकारियों द्वारा उनकी मौत का कारण सहयोगी द्वारा गोली लगना बताया,जिस कारण उन्हें शहीद का दर्जा भी नहीं दिया गया। जबकि जिला प्रशासन इस सवाल पर मौन धारण कर लिया।हालांकि उनको अंतिम विदाई देने स्थानीय विधायक व तत्कालीन जिलाधिकारी भी पहुंचे थे।
लेकिन बीएसएफ जवान की मौत के डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी उनके परिवार को आज तक न्याय नहीं मिला है।आज जवान की पत्नी गीता गोस्वामी ने एक पत्रकार वार्ता के दौरान बताया कि उन्हें अपने पति की मौत के बाद से उनके परिवार को किसी भी प्रकार की सुख सुविधाएं अभी तक नहीं मिली हैं। उन पर परिवार चलाने की जिम्मेदारी आन पड़ी है, घर में दो बेटियां और अपनी सास की जिम्मेदारी उनके कंधों है। वहीं गीता गोस्वामी ने बताया कि डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी बीएसएफ के द्वारा उनके पति की हत्या करने वाले जवान राकेश कुमार के खिलाफ भी कोई विभागीय कार्रवाई नहीं की गई है। इस दौरान उन्होंने बताया कि उत्तराखंड सरकार व आला अधिकारियों के कई चक्कर काटने के बाद भी उन्हें सिर्फ आश्वासन पर आश्वासन दिए जा रहे हैं। जवान की पत्नी ने आरोप लगाया कि परिवार के भरण-पोषण के लिए बीएसएफ के द्वारा नौकरी भी नहीं दी जा रही है, स्वर्गीय जवान की पत्नी ने कहा कि वह स्नातक व उच्च शिक्षा प्राप्त की हुई हैं। लेकिन उन्हें आज तक अधिकारियों के दर पर जाने के बाद भी सिर्फ मौखिक आश्वासन मिले हैं, लेकिन धरातल पर कोई भी आदेश आज तक नहीं आए हैं।
ऐसा ही वाकया रामनगर के उदयपुर छोई निवासी बीएसएफ जवान स्व. दीवान नाथ के परिवार के साथ हुआ है। डेढ़ वर्ष पूर्व मेघालय में ड्यूटी के दौरान बीएसएफ जवान दीवान नाथ की मेघालय में मौत हो गई थी, एक रात मेघालय बीएसएफ हेडक्वाटर से उनके घर फोन पर उनकी नक्सली मुठभेड़ में शहीद होने की सूचना दी गई थी, और अगले दिन उनका शव उनके घर पहुंचा तो उनके मौत को लेकर कई सवाल उठने लगे और बीएसएफ के अधिकारियों द्वारा उनकी मौत का कारण सहयोगी द्वारा गोली लगना बताया,जिस कारण उन्हें शहीद का दर्जा भी नहीं दिया गया। जबकि जिला प्रशासन इस सवाल पर मौन धारण कर लिया।हालांकि उनको अंतिम विदाई देने स्थानीय विधायक व तत्कालीन जिलाधिकारी भी पहुंचे थे।
लेकिन बीएसएफ जवान की मौत के डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी उनके परिवार को आज तक न्याय नहीं मिला है।आज जवान की पत्नी गीता गोस्वामी ने एक पत्रकार वार्ता के दौरान बताया कि उन्हें अपने पति की मौत के बाद से उनके परिवार को किसी भी प्रकार की सुख सुविधाएं अभी तक नहीं मिली हैं। उन पर परिवार चलाने की जिम्मेदारी आन पड़ी है, घर में दो बेटियां और अपनी सास की जिम्मेदारी उनके कंधों है। वहीं गीता गोस्वामी ने बताया कि डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी बीएसएफ के द्वारा उनके पति की हत्या करने वाले जवान राकेश कुमार के खिलाफ भी कोई विभागीय कार्रवाई नहीं की गई है। इस दौरान उन्होंने बताया कि उत्तराखंड सरकार व आला अधिकारियों के कई चक्कर काटने के बाद भी उन्हें सिर्फ आश्वासन पर आश्वासन दिए जा रहे हैं। जवान की पत्नी ने आरोप लगाया कि परिवार के भरण-पोषण के लिए बीएसएफ के द्वारा नौकरी भी नहीं दी जा रही है, स्वर्गीय जवान की पत्नी ने कहा कि वह स्नातक व उच्च शिक्षा प्राप्त की हुई हैं। लेकिन उन्हें आज तक अधिकारियों के दर पर जाने के बाद भी सिर्फ मौखिक आश्वासन मिले हैं, लेकिन धरातल पर कोई भी आदेश आज तक नहीं आए हैं।