नैनीताल में मनाई जाती है आपसी भाईचारे और सौहार्द की होली।

यूं तो पूरे देश में होली का पर्व मनाया जाता है, लेकिन कुमाऊं की खड़ी होली का अपना ही अलग रंग है। गौरवशाली इतिहास समेटे पहाड़ की होली का ऐसा रंग कुमाऊं में ही देखा जाता है। ढोल और रंगों पर झुमने के साथ इस होली में गौरवशाली इतिहास का वर्णन होता है तो होल्यार भी इसके रंग में रंग जाते है। हालांकि पिछले कुछ सालों में रितिरिवाज परम्पराओं में बदलाव आए पर आज भी इन ये होली नजीर बनी हुई है,पहाड़ों में आज भी खड़ी होली परम्परागत तरीके से कायम है।स्वांग रच होलियार पूरे नगर भ्रमण कर होली के लोक गीत गाते दिखाई देते हैं।
कुमाऊं की खड़ी होली का नजारा हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है ढोल की थाप पर होल्यार रंगों के इस पर्व पर रंगे नजर आते है। देशभर में खेली जाने वाली होली से कई मायनों में अलग ये होली शिवरात्री के बाद चीर बंधन के साथ शुरू होती है जो छलडी तक चलती है।मन्दिर से शुरू हुई ये होली गांव के हर घर में जाकर होली का गायन करते है, जिसके बाद आशीष भी परिवार को देते है। चन्द शासन काल से चली आ रही ये परम्परा आज भी अपने महत्व को कुमाऊं की वादियों में समेटे हुये है।कुमाऊं की इस होली का इतिहास 400 साल से ज्यादा पुराना है। ढोल की थाप के साथ कदमों की चहल कदमी और राग-रागिनियों का समावेश इस खड़ी होली में होता है। राग दादरा और राग कहरवा में गाये जाने वाले इस होली का गायन पक्ष में कृष्ण राधा राजा, हरिशचन्द्र, श्रवण कुमार समेत रामायण और महाभारत काल की गाथाओं का वर्णन किया जाता है।
जहूर आलम,युगमंच।
युगमंच के जुड़े जहूर आलम के मुताबिक वो 24 वर्षों से होली की पारंपरिक का आयोजन करते आए है, होली आपसी भाईचारे और सौहार्द का त्यौहार है। मंदिर प्रांगण में खड़ी होली के बाद होलीयारों द्वारा मां नैना देवी मंदिर से राम लीला ग्राउंड तक होली जुलूस निकाला जिसमें महिला होलीयारो भी बढ़-चढ़कर प्रतिभाग करते नज़र आते हैं और सरवर नगरी होली के रंग में डूब जाती है।