नवरात्र स्पेशल- पाक अधिकृत कश्मीर में बसा शारदा शक्तिपीठ।
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चैत्र नवरात्रों की धूम आज से शुरू हो चुकी है।नवरात्रि का आज पहला दिन है घटस्थापना के साथ ही आज व्रत और पूजा अर्चना शुरू हो जाती है इस बार नवरात्रि रेवती नक्षत्र से शुरू हुआ है रेवती नक्षत्र पंचक का पांचवा नक्षत्र है।
मां भगवती के आह्वान के साथ चैत्र नवरात्रों की शुरूआत हो चुकी है।मां के नौ रूपों की पूजा विधि विधान से पूरे नौ दिनों तक की जाती है।नवरात्रों के इस खास अवसर पर आज हम आपको मां के एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जो देवी शक्ति के 18 महाशक्तिपीठों में से एक है इस पीठ का नाम है शारदा पीठ जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में स्थित है।सनातन परम्परा के अनुसार मां का ये मंदिर पांच हजार साल से भी पुराना माना जाता है।
सनातन धर्म के अनुसार भगवान शंकर ने सती के शव के साथ जब तांडव किया था उसमें सती का दाहिना हाथ पर्वतराज हिमालय के तराई कश्मीर में गिरा था।इस मंदिर को लेकर इतिहासकारों का मानना है कि शारदा पीठ मंदिर अमरनाथ और अनंतनाग के मार्तंड सूर्य की तरह ही कश्मीरी पंडितों के लिये आस्था का बहुत बड़ा केन्द्र है।एक दौर ऐसा भी रहा जब कश्मीरी हिन्दू वैदिक धर्म से जुड़ी शिक्षा के लिये इस मंदिर को बेहतरिन केन्द्र मानते थे।
भारतीय नियंत्रण रेखा से महज 17 मील की दूरी पर और कुपवाड़ा से तकरीबन तीस किमी दूर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में अब इस मंदिर के मात्र अवशेष ही बचे हैं जबकि धर्मशास्त्रों के अनुसार ये शक्ति पीठ 52 शक्ति पीठों में नहीं बल्कि 18 महाशक्तिपीठों में गिना जाता है।शारदा पीठ में पूजा और पाठ दोनो हुआ करता था।शैव संप्रदाय के जनक कहे जाने वाले शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य दोनों ने ही यहां पर अपने जीवन की कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की।आज इस मंदिर की जो हालत है वो प्राकृतिक आपदाओं और विदेशी आक्रमणों के कारण हुई है 2005 में यहां जब भूकंप आया तो ये मंदिर और ज्यादा तबाह हो गया ना तो तब पाकिस्तान सरकार ने ही कोई सूध ली ना ही भारतीय सरकार ने।आखिरी बार इस मंदिर की मरम्मत उन्नीसवीं शताब्दी में महाराजा गुलाब सिंह ने करवाई थी।भारत पाक बंटवारे के बाद ये जगह पश्तून ट्राइब्स के कब्जे में रही उसके बाद से इस जगह को पीओके सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया।पर इसकी देख रेख का जिम्मा छोड़ दिया।
देवी सती के दाहिने हाथ गिरने से ये शक्तिपीठ कहलाता है पर पिछले सत्तर सालों से इस मंदिर में पूजा नहीं हुई है।अबुल फजल ने अपनी किताब आइन- ए- अकबर में लिखा था कि' मुजफ्फराबाद में मधुमती नदी के तट पर शारदा देवी का मंदिर है जिसे पूरा इलाका काफी पूजनीय और चमत्कारी मानता था।
कश्मीरी पंडित मानते हैं कि मुनि शांडिल्य जो ब्राह्मण नहीं थे उन्होंने यहां पर मां शारदा की प्रार्थना पूरे समर्पण भाव से की थी और मां शारदा ने उन्हें खुद दर्शन दिए थे। देवी शारदा ने उन्हें शारदा जंगलों की देखभाल करने का आदेश भी दिया था। जब मुनि शांडिल्य रास्ते में थे तो उन्हें पहाड़ी के पूर्वी छोर पर भगवान गणेश के दर्शन हुए। यहां से वह किशनगंगा पहुंचे थे और नदी में स्नान किया। इसके बाद उनका पूरा शरीर सोने का हो गया था। इसी समय देवी शारदा ने अपने तीनों स्वरूपों के दर्शन उन्हें कराए थे और फिर उन्हें अपने घर आने का आमंत्रण भी दिया। जब शांडिल्य मुनी धार्मिक क्रिया की तैयारी कर रहे थे तभी उन्होंने महासिंधु नदी से पानी लिया और आधा पानी शहद में बदल गया था। यहां से जो धारा निकली उसे ही मधुमति धारा के नाम से जाना गया।
कश्मीरी पंडित शारदा मां को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं।शारदा पीठ न सिर्फ हिंदुओं बल्कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी बहुत अहम है। यहां से कालहाना और आदि शंकर जैसे दार्शनिक निकले हैं। कश्मीरी पंडित शारदा पीठ को काफी अहम मानते हैं और कहते है कि ये तीन देवियों से मिलकर बनी मां शक्ति का का स्वरूप है- शारदा, सरस्वती और वागदेवी जिसे भाषा की देवी मानते हैं।
इसके अलावा कई किताबों में इस पीठ का जिक्र मिलता है जैसे 11वीं शताब्दी में लिखी गयी संस्कृत ग्रन्थ राजतरंगनी में शारदा देवी के मंदिर का काफी उल्लेख है।इस्लामी विद्वान अलबरूनी ने भी शारदा देवी और इस केन्द्र के बारे में अपनी किताब में लिखा है।ये मंदिर कब और कैसे बना ये किसी किताब में देखने को अब तक नहीं मिल पाया है, लेकिन ये मंदिर 5000 साल से भी पहले बना था इस बात का जिक्र किताबों मे जरूर देखने को मिलता है और पुरातत्व विभाग भी ये मानता है कि ये मंदिर करीब 5000 साल पुराना ही है।
जम्मू कश्मीर चैप्टर के इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस (आईसीसीआर) के रीजनल डायरेक्टर नाजकी के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि मंदिर, अच्छाई और बुराई का प्रतीक है और माना जाता है कि देवी शारदा ने ज्ञान के पात्र को बचाया था और फिर वह उसे अपने सिर पर लेकर इन्हीं पहाड़ों से होकर गुजरीं। इसके बाद उन्होंने इस पात्र को जमीन खोद कर गाड़ दिया और इसे छिपा दिया। उन्होंने बताया कि इसके बाद देवी शारदा खुद एक पत्थर में परिवर्तित हो गई ताकि वह इस ज्ञान पात्र को ढंक सकें। इसलिए ही शारदा मंदिर के फर्श पर एक चौकोर पत्थर रखा है जो मंदिर की फर्श को ढंकने का काम करता है।
सम्राट अशोक के काल से भी इस मंदिर का इतिहास जुड़ा है एसा कुछ विद्वानों का मानना है।
कहा जाता है इस मंदिर में विशेष कर नवरात्रों में बहुत भीड़ रहा करती थी पर दोनों देशों के बंटवारे के बाद तनाव बढ़ने के बाद अब यहां विदेशी पर्यटकों के आने जाने की भी मनाही हो गयी थी पिछले कुछ समय से पाकिस्तान ने इस मंदिर के दर्शन के लिये भारतवासियों को अनुमति देने पर विचार किया और भारत सरकार से बात भी की है शारदा पीठ कोरिडोर को अब पाकिस्तान सरकार मंजूरी देने पर विचार कर रहा है