धर्म की आड़ में तीर्थनगरी में हो रहा राष्ट्रीय नदी मां गंगा का दोहन

सदियों से जीवन दायनी गंगा अपने जल से हजारो किलोमीटर कृषि क्षेत्र को जल प्रदान करती आ रही है जिसके चलते आज गंगा के तटों पर मानव सभ्यता भी बहुतायत रूप से बस गयी है जिसका असर सीधे तौर पर गंगा पर पड़ रहा है। आज जहा गंगा अपने अस्तित्व से कोसो दूर हो रही है वही एनजीटी के गठन से कुछ उम्मीद गंगा के अस्तित्व को बचाने की उम्मीद जगी है। सदियों से गंगा किनारे धर्मनगरियो का अधिपत्य रहा है लेकिन गंगा को कैसे दोहन से बचाते हुए शुद्ध रखा जाये इस और किसी धार्मिक संस्था ने कोई कदम नहीं उठाया है जिसके कारण आज गंगा में प्रदूषण की मात्रा ने हमें सोचने पर विवश कर दिया है।
हम बात कर रहे है तीर्थनगरी ऋषिकेश की जो आज गंगा के नाम पर तो पहचाना जाता है। लेकिन आज तीर्थनगरी के आश्रमों के साथ ही गंगा से सटे व्यवसायिक संस्थान गंगा के जल का दोहन करने में भी पीछे नहीं है जो बेखौफ रूप से गंगा तटों पर मोटरें लगाकर गंगा के जल का दोहन कर जल की सप्लाई सीधे आश्रमों और व्यवसायिक होटलो में कर रहे है। आप देख सकते है गंगा किनारे लगी मोटर जो सीधे तौर पर गंगा के जल का दोहन कर अपनी आपूर्ति कर रहे है ऐसा नहीं की स्थानीय प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं इसका प्रमाण आप लक्मण झूला स्थित जिलाधिकारी पौड़ी के कैम्प कार्यालय के पास बने आश्रम को ही देख सकते है जहा आश्रम बेखौफ गंगा में मोटर लगाकर राष्ट्रीय नदी माँ गंगा का दोहन कर अपनी आपूर्ति कर रहे है।