ठेंगे का कमाल

आमतौर पर सभी स्निफर डॉग की ट्रेनिंग आईटीबीपी ट्रेनिंग सेंटर में होती है। लेकिन ठेंगा की ट्रेनिंग देहरादून में ही हुई है।नौ नवंबर को पुलिस लाइन में हुई स्थापना दिवस परेड में ठेंगा अपनी काबलियत प्रदर्शित कर चुका है।आग के गोलों से निकलने के साथ अल्प प्रशिक्षण में साक्ष्य को सूंघकर अपराधियों तक पहुंचने के कौशल को देखकर श्वान विशेषज्ञ भी दंग है। परेड के दौरान ठेंगा ने अपराधी के छूटे हुए साक्ष्य को सूंघकर अपनी विशेष क्षमता के बल पर छुपे अपराधी को खोज निकाला।

अब तक बेल्जियम, जर्मन शैफर्ड, लैबरा, गोल्डन रिटीवर आदि विदेशी नस्ल के कुत्ते ही पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों के श्वान दल का हिस्सा होते थे,जिन्हें 30 से लेकर 70 हजार रुपये में खरीदा जाता था। इनकी ट्रेनिंग में काफी खर्च आता है।अमूमन आम घराें में भी गली के बजाय विदेशी नस्ल के कुत्ताें को ड्राइंग रूम का हिस्सा बनाया जाता है।आईजी संजय गुंज्याल ने इस मिथक को तोड़कर एक गली से दो माह के कुत्ते को उठाकर श्वान दल को सौंपा था। करीब छह माह के प्रशिक्षण के बाद ठेंगा विदेशी नस्ल के कुत्तों को मात दे रहा है।बीते शुक्रवार को दिल्ली में दिल्ली,बिहार,उत्तराखंड,आसाम आदि राज्यों के पुलिस महानिदेशकों की बैठक में ठेंगा का सफल प्रयोग सुर्खियों में रहा। उत्तराखंड के प्रतिनिधि के तौर पर बैठक में शामिल आईजी संजय गुंज्याल ने बताया कि इस नए प्रयोग को लेकर बैठक में चर्चा हुई।कई राज्यों के प्रतिनिधि जल्द देहरादून आकर इस सफल प्रयोग का अवलोकन करेंगे।