जोखिम भरा रास्ता

उत्तराखण्ड प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है यहां अनेक देव देवताओ वास करते है। देवभूमि उत्तराखण्ड के जनपद हरिद्वार से गंगा निकलती है जिसमे करोड़ो लोगों की आस्था बस्ती है। इसी गंगा पर अनेको पुल बने हुए है जिनमे से कई पुल पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके है कई पुल अपनी मियाद खत्म कर चुके है तो कई पुल अपनी मियाद से पहले जर-जर हो चुके है। इन्ही पुलो से लोग गुजरने को मजबूर है हालांकि सम्बन्धित विभाग द्वारा पुल पर चेतावनी का बोर्ड भी लगाया गया है लेकिन वैकल्पिक मार्ग ना होने के चलते राहगीर इन्ही पुलो से होकर गुजरते है। ये क्षतिग्रस्त पुल बड़े हादसे का सबब भी बन सकते है लेकिन बावजूद इसके सम्बन्धित विभाग अपनी आँखे मूंदे बैठा है।
आज हम आपको एक ऐसे पुल की खबर से अवगत कराएंगे जो 1980 मे बनाया गया था ये पुल शिक्षा नगरी रुड़की मे पुरानी गंगनहर पर स्थित है। इस पुल को लोग नीले पुल के नाम से जानते है। लगभग 37 साल पहले बना ये नीला पुल पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है पुल मे लगी लोहे की चादरे भी गल चुकी है साथ ही पुल को जंग लग चुका है झूला पुल होने के कारण पुल मे लगे लोहे के रस्से भी ढीले हो चुके है जिसके चलते कोई बड़ी दुर्घटना घट सकती है। स्थानीय लोगों द्वारा पुल की स्थिति से सम्बन्धित विभाग को अवगत कराया गया लेकिन विभाग ने गम्भीरता नही दिखाई मात्र पुल पर चेतावनी बोर्ड लगाकर छोड़ दिया गया। लोग इसी पुल पर जान जोखम मे डालकर चलने को मजबूर है लेकिन विभाग के अधिकारी इस बड़ी समस्या से जान बूझ कर अंजान बने बैठे है। पुल मे बड़े बड़े छेद हो गये है। लोगों की माने तो मजबूरी मे उन्हें इस पुल से गुजरना पड़ता है कई बार लोगों ने अधिकारियों को चेताया लेकिन अधिकारी कुम्भकर्ण की नींद से जागने को तैयार नही है। शायद शासन प्रशासन किसी बड़े हादसे का इंतेज़ार कर रहा है।
वही उत्तरी गंगनहर उपखण्ड के अधिकारियों की अगर बात करे तो वह बजट का रोना रो रहे है उनका कहना है की शासन को पूरी स्तिथि से अवगत कराया जा चुका है लेकिन अभी तक बजट नही भेजा गया जैसे ही बजट आजाएगा तो पुल की मरम्मत करा दी जाएगी।
इस क्षतिग्रस्त पुल ने सम्बन्धित विभाग से लेकर शासन तक को सवालो के घेरे मे लाकर खड़ा कर दिया है। सवाल ये है की क्या आमजन की सुविधाओं से शासन प्रशासन को कोई सरोकार नही है क्या विभाग ओर सरकारे तब जागती है जब कोई बड़ी घटना घट जाती है क्या जनता को मौत के मुँह मे जान बूझ कर धकेला जा रहाहै ऐसे कई सवाल लोग उठा रहे है लेकिन जवाब किसी के पास नही। अब देखने वाली बात ये होगी की कब तक शासन प्रशासन अपनी नींद से जागते है ओर लोगो को इस गम्भीर समस्या से निजात दिलाते है।