कोरोना के कोहराम ने दी गंगा को संजीवनी।

लगभग 35 सालो से मोक्ष दायनी गंगा की सफाई क लिए जिस तरह अरबों रुपए और समय खर्च करने के बाद भी जो 10 प्रतिशत नतीजा हासिल नही हो पाया वह देश में महज 23 दिन के लॉक डाउन में हो गया। वर्ष 1984 में गंगा की निर्मलता के लिए बने गंगा एक्शन प्लान में 1500 करोड़ के पानी में बहने की शुरुआत हुई तो उसके बाद गंगा की सफाई के लिए तो एक के बाद योजनाये शुरु हो गयी।2014 से अब तक भी करोड़ो की योजनाये चल रही पर नतीजे वही ढाक के तीन पात।


कहते है की प्रकृति अपना संतुलन खुद बनाती है। उद्गम से सागर तक गंगा के किनारे 700 शहर और कस्बे है और 30 प्रतिशत आबादी की लाइफ लाइन मानी जाती है। गंगा में खुले सीवर,ओधोगिक कारखानो का केमिकल गंगा को जहर बना चुका है। लॉक डाउन से हालात ऐसे है कि देश में लगभग 91 शहर प्रदूषण से मुक्त हो गए है। हरी की नगरी हरिद्वार में जहां आचमन लायक पानी पीने योग्य नही था वहां पर गंगा जल का स्वरूप बदल गया है।


लगभग 25 से अधिक मॉनिटरिंग सेंटर में गंगा जल नहाने लायक है।गंगा भारतीय संस्कृति की वाहक होने के साथ ही इस पर कई प्रदेशों की आर्थिक और सामाजिक दायित्व भी है।लेकिन सवाल जस का तस है।लॉक डाउन खुलने के बाद क्या होगा। खुद अपनी सफाई के लिए सामर्थ्यवान हो चुकी गंगा दोबारा कारखानो से निकले कबाड़ के बोझ को झेल लेगी।नदी में गिरने वाले नाले रुक पाएंगे। काश साल में कुछ लॉक डाउन गंगा की रक्षा के लिए भी होते हो गंगा और हिमालय को भी नव जीवन मिलता जो कि मानव समाज के लिए बेहतर होता।