कार्बेट में वीआईपी कल्चर खत्म

वर्ष 1936 में अस्तित्व में आए देश के सबसे पुराने कॉर्बेट नेशनल पार्क का प्रबंधन लंबे अरसे से वीआईपी दौरों से परेशान था, सरकारी तंत्र से लेकर राजनीतिज्ञों की ओर से अक्सर कार्बेट पार्क में सफारी के साथ ही वन विश्राम गृह में ठहरने समेत अन्य व्यवस्थाओं की मांग की जाती रही खुद के साथी नाते रिश्तेदारों तक के लिए पत्राचार हो रहा था। सूरतेहाल वीआईपी के लिए व्यवस्थाएं जुटाने को पार्क के अमले को खासी मशक्कत करनी पड़ रही थी, जबकि इसका सरकारी कार्मिकों के दायित्व निर्वाहन से कोई वास्ता नहीं है, वह भी तब जबकि पार्क में कार्मिकों की कमी है| लेकिन अब पार्क में वीआईपी राज खत्म हो गया है| उत्तराखंड राज्य अतिथि नियमावली की सूची-एक में शामिल संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों को छोड़कर अन्य किसी को वीआईपी ट्रीटमेंट नहीं मिलेगा। इस संबंध में पार्क निदेशक संजीव चतुर्वेदी ने आदेश जारी कर दिए हैं पार्क में सफारी और ठहरने के लिए अफसरों और ऊंची पहुंच वाले लोगों के सिफारिशी पत्रों को तुरंत वापस लौटाया जाएगा। यही नहीं अफसरों के पत्रों के बारे में उच्चाधिकारियों को भी अवगत कराया जाएगा कि व्यक्तिगत कार्यों के लिए किस प्रकार अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं| पार्क के निदेशक संजीव चतुर्वेदी की ओर से इस संबंध में जारी आदेश के मुताबिक पार्क प्रबंधन की जिम्मेदारी वास स्थल विकास और सुरक्षा की है, फिर पार्क में ठहरने को पारदर्शी व्यवस्था है। इसके तहत देश के नागरिक तथा विदेशी मेहमान वन विश्राम गृह के लिए ऑनलाइन बुकिंग करा सकते हैं। पार्क से बाहर कई होटल व रिजॉर्टस हैं, और कोई भी व्यक्ति अपनी क्षमतानुसार इनका उपयोग कर सकता है| आदेश में कहा गया है कि कार्बेट पार्क में सफारी और ठहरने के लिए उन पदों के लिए पत्राचार होता है, जो कि राज्य अतिथि सूची के बाहर के हैं। स्पष्ट किया गया है कि अब राज्य अतिथियों की सूची एक को छोड़ अन्य किसी को वीआईपी ट्रीटमेंट नहीं दिया जाएगा यदि सफारी व ठहरने को कोई अधिकारी अथवा अन्य कोई पत्राचार करता है तो उसे पद का दुरुपयोग मानते हुए तुरंत वापस लौटा दिया जाएगा। ऐसे मामलों में उच्चाधिकारियों को भी अवगत कराया जाएगा। यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू हो गए हैं|