कारगिल का वो युद्ध जो देश के जांबाज़ों को अमर कर गया।

वीरों की भूमि उत्तराखंड का सैन्य इतिहास असंख्य वीरगाथाओं के किस्से अपने अंदर समेटे हुये है। उन्हीं वीर गाथाओं में कारगिल का वो युद्ध भी शामिल है जिसे ऑपरेशन विजय नाम से जाना जाता है। भले ही आज कारगिल युद्ध को बीस साल पूरे हो चुके हों लेकिन आज भी उस युद्ध की जीत और देश के जांबाज सिपाहियों का बलिदान शायद ही कोई भूल पाया हो। देश का कोई ऐसा पदक नहीं बचा होगा जो इस युद्ध में उत्तराखंड के शूरवीरों ने ना जीता हो।  1999 के इस युद्ध मे अपने प्राणों की आहूति देकर सदा के लिये अमर होने वाले करीब 75 जांबाज बेटे उत्तराखंड ने खोए थे, जिसमें से एक शहीद मेजर राजेश अधिकारी भी थे। कारगिल के युद्ध में मेजर राजेश सिंह अधिकारी ने दुश्‍मनों के छक्‍के छुड़ा दिये थे।





कारगिल की जंग के दौरान सबसे मुश्किल चुनौती थी टाइगर हिल पर कब्जा जमाए बैठे पाकिस्तानी, जो लगातार बमबारी कर रहे थे और दूसरी ओर से गोलियां चला रहे थे, चोटी पर चढ़कर दुश्मन के ठिकानों को बर्बाद करना ही भारतीय सेना का सबसे पहला लक्ष्य था,इसके लिए सबसे पहले तोलोलिंग से घुसपैठियों का कब्जा हटाने की योजना बनाई गई, दुश्मन 15 हजार फीट की ऊंचाई पर बैठा गोलियां बरसा रहा था, जिस पर काबू पाने के लिए मेजर राजेश सिंह अधिकारी को जिम्मेदारी दी गई थी।

       मेजर राजेश सिंह अधिकारी ने अपनी यूनिट के साथ चढ़ाई की और पाकिस्तानी घुसपैठियों के बंकर को रॉकेट लॉन्‍चर से उलझाए रखा और जैसे ही मेजर अधिकारी को मौका मिला तो उन्होंने बंकर को तबाह कर दिया,पाकिस्तानी घुसपैठियों को भी मार गिराया,इस दौरान पाकिस्तानियों की गोली लगने से मेजर गंभीर रूप से घायल हो गए, गोली लगने के बाद भी मेजर बहादूरी से लड़ते रहे और घायल होने के बाद भी मेजर राजेश अधिकारी ने कई घुसपैठियों को मार कर उनके ठिकानों पर कब्जा कर लिया, 18 ग्रिनेडियर के मेजर राजेश सिंह अधिकारी ने टोलोलिंग पर 30 मई को अपनी बटालियन के साथ चढ़ाई शुरू की, 15 हजार फुट की ऊंचाई पर भारी बर्फ के बीच दुश्मन ने मशीन गन से उनपर 

धावा बोला, गंभीर रूप से जख्मी हालत में दो बंकर ध्वस्त कर मेजर अधिकारी ने प्वाइंट 4590 पर कब्जा किया, जिसके बाद मेजर राजेश सिंह अधिकारी इस जंग में शहीद हो गये, मेजर अधिकारी के इस वीरता और बलिदान के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। 

कारगिल वो जंग थी जिसने देश के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ दी।कारगिल की जंग अब तक की सबसे बड़ी जंग साबित हुई। यूं तो कारगिल की जंग में मातृभूमि की रक्षा में कई वीर योद्धाओं ने अपनी शहादत दी थी, जिनकी कुर्बानी को देश कभी नहीं भुला सकता।

 शहीद मेजर राजेश सिंह अधिकारी का जन्‍म 25 दिसंबर 1970 को नैनीताल में हुआ था। राजेश की स्‍कूली शिक्षा नैनीताल के बिशप शाॅ,सेंट जोसेफ, जीआईसी स्कूल से हुई,जिसके बाद मेजर ने नैनीताल के डीएसबी कालेज से बीएससी की परीक्षा पास की और उसके बाद उनका चयन आईएमए देहरादून के लिए हो गया था। स्कूल के समय से ही मेजर का सेना के प्रति जो जज्बा था वो उन्हें प्रतिष्ठित भारतीय सैन्य अकादमी में ले आया और 11 दिसंबर 1993 को मेजर राजेश सिंह अधिकारी भारतीय सैन्य 

अकादमी से ग्रेनेडियर में कमिशन बने।

आइएमए से पासआउट होने वाला हर 12वां अधिकारी उत्तराखंड से ही है। वहीं भारतीय सेना का हर पांचवा जवान भी इसी वीरभूमि में जन्मा है। देश में जब भी कोई विपदा आई तो यहां के रणबांकुरे अपने फर्ज से पीछे नहीं हटे।

1999 में भारतीय सेना ने पड़ोसी मुल्क की सेना को चारों खाने चित कर विजय हासिल की। कारगिल योद्धाओं की बहादुरी का स्मरण करने व शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए 26 जुलाई को प्रतिवर्ष कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।


गढ़वाल रेजीमेंटल सेंटर के परेड ग्राउंड पर हेलीकॉप्टर से शहीदों के नौ शव एक साथ उतारे गए तो मानो पूरा पहाड़ अपने लाडलों की याद में रो पड़ा था। कारगिल ऑपरेशन में गढ़वाल राइफल्स के 47 जवान शहीद हुए थे, जिनमें 41 जांबाज उत्तराखंड मूल के ही थे। वहीं कुमाऊं रेजीमेंट के भी 16 जांबाज भी शहीद हुए थे। डेढ़ दशक पूर्व इस ऑपरेशन में मोर्चे पर डटे योद्धाओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जवानों ने कारगिल, द्रास, मशकोह, बटालिक जैसी दुर्गम घाटी में दुश्मन से जमकर लोहा लिया। युद्ध में वीरता प्रदर्शित करने पर मिलने वाले वीरता पदक इसी की बानगी हैं। "आवाज24×7उत्तराखंड" की ओर से देश के उन सभी वीरों को शत् शत् नमन जिन्होने अपनी जान की बाजी लगाकर देश की शान बढ़ाई और देश को गौरन्वान्वित किया।

आज हम सुरक्षित हैं तो देश के सिपाहियों की वजह से क्योंकि जब वो सीमा पर दिन रात पहरा देते हैं तभी हम चैन से जी पाते हैं।