केदारनाथ धामः कुदरत ने यहां का भूगोल क्या बदला कि इतिहास बनकर रह गया रामबाड़ा! जहां कभी बसती थी एक ‘दुनिया’, वहां का आज नामो निशां तक बाकी नहीं

-प्रवीण रावत-
रुद्रप्रयाग। 2013 की आपदा के बाद केदारनाथ धाम यात्रा ने नए आयाम स्थापित किए। हर दिन हजारों श्रद्धालु बाबा केदार के दर्शन को पहुंचते है। पूरी केदारपुरी का भव्य रूप से पुनर्निर्माण किया गया। लेकिन केदारनाथ पैदल मार्ग पर एक ऐसा मुख्य पड़ाव था, जिसका 2013 की त्रासदी के बाद नामो निशान तक मिट गया। गौरीकुंड से केदारनाथ पैदल मार्ग पर इसी जगह कभी आबाद बस्ती रामबाड़ा हुआ करती थी।
आपदा के बाद इसका नामो-निशान नहीं बचा। जिसने रामबाड़ा देखा था उसे विश्वास नहीं हो रहा और जिसने नहीं देखा, वह मानने को तैयार ही नहीं कि जिन चट्टानों के बीच मंदाकिनी शांत रूप में बह रही है। यहां कभी खुशहाल बस्ती हुआ करती थी। देखने वाले तो बस यही कह रहे हैं कि कुदरत ने यहां का भूगोल क्या बदला कि रामबाड़ा इतिहास बनकर रह गया।
16-17 जून को आई आपदा ने पूरी मंदाकिनी घाटी को हिला कर रख दिया था। घर, बाजार, खेत-खलिहान सब तबाह हो गए। इन्हीं में रामबाड़ा नामक केदारनाथ पैदल मार्ग का वह महत्वपूर्ण पड़ाव भी था, जिसका आज कहीं नामो-निशान तक नहीं है। यहां गढ़वाल मंडल विकास निगम का होटल, बाबा काली कमली वाले की धर्मशाला समेत दर्जनों होटल और धर्मशालाएं थीं।
यहां ढाई सौ से अधिक दुकानें भी हुआ करती थी। यात्रा के दौरान यहां दस हजार से अधिक यात्री रोजाना रात्रि विश्राम के लिए रुकते थे। उस दिन मंदाकिनी ने ऐसा विकराल रूप धारण किया कि सबकुछ नेस्तनाबूद हो गया। रामबाड़ा इतिहास के पन्नों में दफन होकर रह गया। यहां से गुजरने वाले स्थानीय लोग और रामबाड़ा को पहले देख चुके यात्री अब बस अंदाजा लगाकर ही बता पाते है कि इधर होटल था उधर दुकानें। यहां का भूगोल इस कदर बदल गया है कि ठीक से बता पाना भी मुश्किल है कि कहां क्या था।