ऋषिकेश में गंगा नदी पर हो रहे अतिक्रमण पर हाइकोर्ट ने मांगी राज्य सरकार और प्रदूषण बोर्ड से विस्तृत रिपोर्ट

उत्तराखंड हाई कोर्ट की खंडपीठ ने ऋषिकेश में गंगा नदी के किनारे पर किये गए अतिक्रमण और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से उस पर आश्रम बनाने के मामले में सुनवाई करते हुए, जिला अधिकारी पौड़ी गढ़वाल को आदेश दिए है कि वे मौके का मुयाना करें साथ ही राज्य प्रदूषण बोर्ड से पूछा कि आश्रम में कितने कमरे बने हुए हैं आश्रम का शिवरेज कहा डाला जा रहा है अगर 20 से अधिक कमरे है तो शिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगा है या नही? कहीं शिवरेज को गंगा में डाला तो नही गया? कोर्ट ने जिला अधिकारी प्रदूषण बोर्ड व राज्य सरकार से 2 सप्ताह में जांच कर विस्तृत रिपोर्ट कोर्ट में  पेश करने को कहा है। कोर्ट ने सचिव रेबनयु को स्वतः संज्ञान लेकर पक्षकार बनाया है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता द्वारा कोर्ट को बताया गया कि आश्रम में आठ सौ कमरे बैंकेट हाल आदि अतिक्रमण करके बनाये गए है परन्तु नोटिस देने के बाद भी अतिक्रमण नही हटाया गया है ,क्योंकि इस आश्रम के मालिक अपने को कानून से ऊपर मानते है यहाँ देश विदेश के जानीमानी हस्तियाँ आती जाती रहती है।          

मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधिश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ में हुई। मामले के अनुसार हाई कोर्ट के अधिवक्ता हरिद्वार निवासी विवेक शुक्ला ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन स्वर्गा आश्रम द्वारा गंगा के किनारे 70 मीटर में कब्जा कर लिया है,जो कि सरकार की भूमि है, साथ ही गंगा में पुल का निर्माण कर नदी में एक मूर्ति भी बनाने के साथ ही व्यवसायिक भवन का निर्माण किया गया है जो बैंक एवं अन्य लोगों को किराए पर दी गई है। जिनका किराया आश्रम द्वारा लिया जा रहा है,जिससे सरकार को राजस्व की हानि हो रही है,और इनसे होने वाले कूड़े को गंगा नदी में डाला जा रहा है जिससे गंगा प्रदूषित हो रही है।  इस पर रोक लगाने के साथ इस स्थान को अतिक्रमण मुक्त किया जाए।