ऊपर वाला भी रोया जब मासूमों ने भूख मिटाने के लिये खाई मिट्टी और खो दी अपनी जान


बीते रविवार ऊपर आसमान वाला भी रोया होगा जब दो मासूम भूख मिटाने के लिये मिट्टी खा बैठे और अपनी हमेशा के लिये अपनी भूख शांत कर गये ।

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में सिर्फ तीन साल के संतोष और उसकी चचेरी बहन वेनेला भूख से तड़प तड़प कर मिट्टी खाने को मजबूर हो गये । छः महिने पहले ही संतोष की मौत भूखमरी के चलते हुई थी, और अब वेनेला की मौत भी भूखमरी की वजह से ।

देश में आज भी भुखमरी के कारण मौत हो रही है ,देश की विकास की बड़ी बड़ी बातें करने वाले नेता जो आज भारत को विश्व गुरु बनाने पर तुले हुए है लेकिन भारत की वास्तविकता कुछ और है जिसका हमें तब पता चलता है जब कोई अप्रिय घटना या फिर हादसा हो जाता है ,वैसे तो इस देशमें आयोगों की कोई कमी नहीं है लेकिन मानवधिकार आयोग की बात की जाये तो क्या मानवाधिकार  के पास गरीबी और भुकमरी से सम्बंधित कोई पैमाना या धरातल की रिपोर्ट नहीं है और अगर ऐसा है तो आयोग  की क्या जरुरत है ? चाइल्ड वेलफेयर के नाम पर करोड़ो का धंधा करने वाले जाने किस कुम्भकर्णी नींद में सोते है  जो उन्हे देश के तमाम गरीब बच्चों की चीखें कभी नहीं सुनाई देती है और न बच्चे दिखाई देते है जो आज भी भूख से तड़प  रहे हैं और कुछ जान से हाथ धो बैठते है और कुछ कुपोषण का शिकार हो जाते है । राजनैतिक रोटियां सेकनें वालों के लिए भी भुखमरी कभी मुद्दा बन नहीं पाती .


संबन्धित तस्वीर ।

 जिन दो बच्चो की मौत हुई है भूखमरी से उनके माता पिता नागमणि और महेश गरीबी रेखा से नीचे की जिंदगी कुमारावंदलापल्ले गांव में रहते हुये गुजार रहे है । अपने बच्चो का पेट पालने के लिये रोज की दिहाड़ी पर दोनो मजदूरी किया करते थे, नागमणि और महेश के तीन साल के बेटे संतोष की भूखमरी के कारण हुई मौत को छः महिने ही हुये थे कि अब संतोष की मौसेरी बहन वेनेला भी भूख से तड़प तड़प कर चल बसी । ना घर, ना खाना ,सोच कर देखिये इस देश में ऐसे भी लोग जी रहे हैं, और ऊपर कुर्सी पर बैठे हमारे जन प्रतिनिधि आलीशान बंगलो में चैन की नींद भी सोते हैं,और राजसी खाना भी खाते हैं। देश के विकास के बड़े बड़े दावों की पोल बीते  रविवार को खुल तो गई, पर एक दावा हम भी करते हैं कि ये खबर कुछ ही दिन चलेगी, फिर प्रशासन अपने कामों में, पैसा बनाने में ,एक दूसरे की पार्टी को कोसने में ,या सीधी सी भाषा में कहें  तो अपना उल्लू सीधा करने में लग जायेगा।

जिन दो बच्चों की मौत की बात हम कर रहे हैं, उनके बारे में पुलिस ने बताया है कि इनके माता पिता दिन भर घर से बाहर रहते थे, बच्चे अक्सर भूख सहन ना कर पाने की वजह से कीचड़ तक खा लेते थे। अनंतपुर जिला कलेक्टर के निर्देश पर जब घटना की जांच की गयी, तो पाया कि महेश और उसकी पत्नी सास के साथ मिलकर रोजाना शराब पीते थे । अब सवाल ये उठता है कि जिनके बच्चे भूख से बिलख रहे हो उनके माता पिता क्या शराब इत्यादि का सेवन कर सकते है ? हो सकता है जांच रिपोर्ट सही हो या ये भी हो सकता है कि सत्ताधारी पार्टी या फिर प्रशासन अपनी कमियों को छुपाने के लिए सारा दोष  बच्चों के माता पिता पर डालना चाह रहा है प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार - बच्चों  को न तो खाना मिलता था और ना ही उनकी देखरेख की जाती थी । यहां तक जब बच्चे बीमार  हुये तो उन्हे अस्पताल तक नहीं ले जाया गया । 

"बलाला हक्कुला संघम" की अध्यक्ष अच्युता राॅव ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखकर बच्चो को न्याय दिलाने और मौतो की जिम्मेदार सरकारी सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की है।अब जब इन दो बच्चो की  मौत का मामला तूल पकड़ने लगा तब प्रशासन की आंख कुछ देर के लिये खुली है, और इस परिवार के सभी बचे हुये बच्चों को एक स्थानीय आंगनबाड़ी केन्द्र में भिजवा दिया गया है।