उत्तराखंडHC:चारधाम देवस्थानम एक्ट को निरस्त करने की याचिका पर रुलक संस्था ने रखा अपना पक्ष मनुस्मृति के अध्याय 7 का दिया हवाला

उत्तराखंड हाई कोर्ट में भारतीय जनता पार्टी के राज्य सभा सांसद सुब्रहमण्यम स्वामी द्वारा उत्तराखंड सरकार के चारधाम देवस्थानम एक्ट को निरस्त करने को लेकर दायर जनहित याचिका पर आज सुनवाई हुई। सुनवाई में रुलक संस्था के अधिवक्ता ने अपना पक्ष रखते हुए अपनी सुनवाई पूरी की। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को  6 जुलाई को पुनः सुनने का मौका दिया है।  रुलक संस्था की तरफ से आज कोर्ट में मनुस्मृति पेश की गई जिसके अध्याय 7 में कहा गया कि राजा खुद सर्वोपरी है वह अपने दायित्व किसी को भी सौप सकता है।संस्था द्वारा एटकिंशन का गजेटियर भी पेश किया जिसमें कहा गया कि बद्रीनाथ मन्दिर में क्रप्शन है इसलिए यहां एडमिनिस्ट्रेशन की जरूरत है ,संस्था ने मदन मोहन मालवीय द्वारा 1933 में लोगो से की गयी अपील भी कोर्ट में पेश की,  जिसके बाद  सेक्युलर मैनेजमेंट और रिलिजेस एक्ट 1939 में लाया गया,  जिसमें सेक्युलर मैनेजमेंट आफ टेम्पिल राज्य को दिया गया था जबकि रिलिजेस मैनेजमेंट मंदिर पुरोहित को दिया गया है। संस्था ने अयोध्या मन्दिर का निर्णय भी कोर्ट में पेश किया जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि गजेटियरों को भी साक्ष्य के रूप में माना जा सकता है। जो नया एक्ट राज्य सरकार द्वारा लाया गया है इसमें कही भी हिन्दू धर्म की भावनाएं आहत नही होती। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में हुई।

        देहरादून की रुलक संस्था ने राज्य सभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर जनहित  याचिका को चुनौती दी है जिसमे कहा गया था प्रदेश सरकार द्वारा चारधाम के मंदिरों के प्रबंधन को लेकर लाया गया देवस्थानम् बोर्ड अधिनियम असंवैधानिक है। देवस्थानम् बोर्ड के माध्यम से सरकार द्वारा चारधाम व 51 अन्य मंदिरों का प्रबंधन लेना संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 का उल्लंघन है। संस्था ने इस जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा है कि चारधाम यात्रियों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने देवस्थान बोर्ड अधिनियम बनाकर चारधाम व अन्य मंदिरों का प्रबंध लिया गया है उससे कही भी हिदू धर्म की भावनाएं आहत नही होती, लिहाजा सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर याचिका पूरी तरह से निराधार है